Wednesday, 21 November 2012

हँसो हँसो जल्दी हँसो...-- रघुवीर सहाय




Raghuvir Sahay (रघुवीर सहाय) (1929–1990) was a versatile Hindi poet, short-story writer, essayist, literary critic, translator, and journalist. He remained the chief-editor of noted, political-social, Hindi weekly, Dinmaan, 1969–82.
He was awarded the 1984 Sahitya Akademi Award in Hindi for his poetry collection, Log Bhool Gaye Hain (लोग भूल गये हैं)
His other noted works are Atmahatya Ke Viruddh (आत्महत्या के विरुद्ध),  and Seedhiyon Par Dhoop Mein (सीढ़ियों पर धूप में)
please read his famous poem.....Hanso Hanso Jaldi Hanso...

हँसो हँसो जल्दी हँसो.....
हँसो तुम पर निगाह रखी जा रही हैं

हँसो, अपने पर न हँसना क्योंकि उसकी कड़वाहट, पकड़ ली जाएगी
और तुम मारे जाओगे
ऐसे हँसो कि बहुत खुश न मालूम हो
वरना शक होगा कि यह शख्स शर्म में शामिल नहीं
और मारे जाओगे

हँसते हँसते किसी को जानने मत दो किस पर हँसते हो
सब को मानने दो कि तुम सब की तरह परास्त होकर
एक अपनापे की हँसी हँसते हो
जैसे सब हँसते हैं बोलने के बजाए

जितनी देर ऊंचा गोल गुंबद गूंजता रहे, उतनी देर
तुम बोल सकते हो अपने से
गूंज थमते थमते फिर हँसना
क्योंकि तुम चुप मिले तो प्रतिवाद के जुर्म में फंसे
अंत में हँसे तो तुम पर सब हँसेंगे और तुम बच जाओगे

हँसो पर चुटकलों से बचो
उनमें शब्द हैं
कहीं उनमें अर्थ न हो जो किसी ने सौ साल साल पहले दिए हों

बेहतर है कि जब कोई बात करो तब हँसो
ताकि किसी बात का कोई मतलब न रहे
और ऐसे मौकों पर हँसो
जो कि अनिवार्य हों
जैसे ग़रीब पर किसी ताक़तवर की मार
जहां कोई कुछ कर नहीं सकता
उस ग़रीब के सिवाय
और वह भी अकसर हँसता है

हँसो हँसो जल्दी हँसो
इसके पहले कि वह चले जाएं
उनसे हाथ मिलाते हुए
नज़रें नीची किए
उसको याद दिलाते हुए हँसो
कि तुम कल भी हँसे थे !

raghuveer sahai

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