Tuesday, 13 November 2012

दोस्तों आज दीपावली है






दोस्तों आज दीपावली है . अन्धकार पर प्रकाश का पर्व . कहते हैं राम के रावण बध के उपरान्त अयोध्या वापस आने की प्रसन्नता के कारण अयोध्या वासियों ने दिवाली मना कर इस आलोक पर्व का प्रारम्भ किया  था। रावण तम का प्रतीक है, आसुरी शक्ति का प्रतीक है एक निरंकुश सता का , अहंकार से ओत प्रोत.   राम  प्रतीक हैं आलोक के , दैवी शक्तियों के . अन्धकार  कितना भी सघन हो, एक दीप उसे भेद देता है और अपने अस्तित्व का भान करा देता है . अच्छाई और बुराई का संघर्ष सदैव चलता रहता है . घना से घना अन्धकार पराजित होता है .यह एक शाश्वत सत्य है।

इस आलोक पर्व दीपावली पर मेरी शुभकामना है की आप के मन का तम  मिट़े और एक दिव्य प्रकाश से  आप दीप्तिमान हों .
इस अवसर पर कृपया नीरज की यह प्रसिद्ध कविता पढ़े ...

अंधियार ढल कर ही रहेगा /
-- गोपालदास "नीरज"

अंधियार ढल कर ही रहेगा
आंधियां चाहें उठाओ,
बिजलियां चाहें गिराओ,
जल गया है दीप तो अंधियार ढल कर ही रहेगा।

रोशनी पूंजी नहीं है, जो तिजोरी में समाये,
वह खिलौना भी न, जिसका दाम हर गाहक लगाये,
वह पसीने की हंसी है, वह शहीदों की उमर है,
जो नया सूरज उगाये जब तड़पकर तिलमिलाये,
उग रही लौ को न टोको,
ज्योति के रथ को न रोको,
यह सुबह का दूत हर तम को निगलकर ही रहेगा।
जल गया है दीप तो अंधियार ढल कर ही रहेगा।

दीप कैसा हो, कहीं हो, सूर्य का अवतार है वह,
धूप में कुछ भी न, तम में किन्तु पहरेदार है वह,
दूर से तो एक ही बस फूंक का वह है तमाशा,
देह से छू जाय तो फिर विप्लवी अंगार है वह,
व्यर्थ है दीवार गढना,
लाख लाख किवाड़ जड़ना,
मृतिका के हांथ में अमरित मचलकर ही रहेगा।
जल गया है दीप तो अंधियार ढल कर ही रहेगा।

है जवानी तो हवा हर एक घूंघट खोलती है,
टोक दो तो आंधियों की बोलियों में बोलती है,
वह नहीं कानून जाने, वह नहीं प्रतिबन्ध माने,
वह पहाड़ों पर बदलियों सी उछलती डोलती है,
जाल चांदी का लपेटो,
खून का सौदा समेटो,
आदमी हर कैद से बाहर निकलकर ही रहेगा।
जल गया है दीप तो अंधियार ढल कर ही रहेगा।

वक्त को जिसने नहीं समझा उसे मिटना पड़ा है,
बच गया तलवार से तो फूल से कटना पड़ा है,
क्यों न कितनी ही बड़ी हो, क्यों न कितनी ही कठिन हो,
हर नदी की राह से चट्टान को हटना पड़ा है,
उस सुबह से सन्धि कर लो,
हर किरन की मांग भर लो,
है जगा इन्सान तो मौसम बदलकर ही रहेगा।
जल गया है दीप तो अंधियार ढल कर ही रहेगा।

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