Monday 19 November 2012

A Poem... यह मुहब्बत भी अजब है










A Poem...
यह मुहब्बत भी अजब है
यह मुहब्बत भी गज़ब है


कितने खेल, खिलाती है
तमाशे, खूब दिखाती है
हंस कर, कभी ये दे खुशियाँ
कभी, ग़मगीन बनाती है

सलाम करे, झुक झुक के कभी
गिरा दे, कभी ये नज़रों से
कभी छुपा ले, दिल में अपने
कभी बना दे, अफ़साने दिल के

कभी दे मन को, ढाढस जी भर
कभी यह दिल को तडपाती है
कभी बचाए काँटों से , और,
कभी फूलों से ज़ख्म लगाती है

अक्सर ख्वाब ख्यालों में
क्यूँ मन का चैन चुराती है ?
कभी बनाए किसी को अपना
ठुकराती है कभी अपनों को

न करना कभी वफ़ा दोस्तों
अब तो वफ़ा, खता. है  दोस्तों
-vss

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