Wednesday, 21 November 2012

A poem - जो तुम मेरी आँखों से ख्वाब देखो,


A poem.....
जो तुम मेरी आँखों से ख्वाब देखो,
तो एक रात भी , न सो सकोगे 
तुम लाख चाहो, न हंस सकोगे 
रोना भी चाहो तो, न रो सकोगे .

ये ख्वाब क्या है ? अजाब हैं ये,.
दुखों की मेरी किताब है ये
सिलसिला, उन से छूटता रहा
प्यार उन का अब रूठता रहा

पनपतीं हैं वहशते सी, उन में
फूटती हैं अजीयतें भी उन में
इन्ही के सर से खिजा हैं जज्बे
इन्ही से शाखें सी टूटतीं हैं

ग़मों के साए में स्वप्न मेरे
दुखों की बारिश में ख्वाब मेरे
उबल रहा है गज़ब का लावा
हैं अजब आग, ये ख्वाब मेरे

झुलस गए हैं ख़याल सारे ,
सुलगती ख्वाहिश हैं स्वप्न मेरे
उखड्ती साँसे हैं , ज़िंदगी की
साजिश हैं लहू के, ये स्वप्न मेरे

जो देखो ख्वाब तुम , आँखों से मेरे
तो एक रात भी,न सो सकोगे ......

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