Wednesday 21 November 2012

A poem by me... सुन लो तो इनायत है











A poem...
Sun lo to inaayat hai.....

एक शख्श को चाहा था ,
अपनों की तरह हमने ,
एक शख्श को समझा था ,
फूलों की तरह हमने .

वो शक्श्स क़यामत था ,
क्या उसकी करें बातें ,
दिन उसके लिए पैदा ,
और उसकी ही थी रातें .

कम मिलता किसी से था ,
पर हम से थी मुलाकातें .
रंग उसका शहाबी था ,
जलवों में भी थी मह्कारें ,

आँखें थीं कि, जादू ,
पलकें थीं कि , तलवारें ,
दुश्मन भी अगर देखे ,
तो जान से जी हारें ,

कुछ तुम से वो मिलता था ,
बातों में शबाहत थी ,
हाँ तुम सा ही था ,
शोखी में शरारत में ,

लगता तो तुम्ही सा था ,
इश्क में ,चाहत में ,
वोह शक्श्स हमें एक दिन
अपनों की तरह भूला ,

तारों की तरह डूबा ,
फूलों की तरह टूटा ,
फिर हाँथ न आया , वोह ,
हम ने बहुत ढूंढा ,

कब तुमसे ज़रुरत है ,
कब तुमसे शिकायत है ,
एक ताज़ा हाकायत है ,
सुन लो तो इनायत है ,
--(vss)
 — w

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