Saturday 6 May 2023

मणिपुर विवाद और हिंसा / विजय शंकर सिंह


मणिपुर में हिंसक घटनाओं में व्यापक वृद्धि हुई है और वहां के हालात, बेहद गंभीर हैं। सरकार को हिंसा की गंभीरता का अंदाजा है। एक असामान्य कदम उठाते हुए केंद्र सरकार ने, मणिपुर को संविधान के अनुच्छेद 355 के अंतर्गत प्राप्त शक्तियों का उपयोग करते हुए, कानून व्यवस्था का मामला, राज्यपाल के माध्यम से अपने आधीन ले लिया है। राज्यपाल ने, हालात की गंभीरता को देखते हुए, देखते ही गोली मारने का आदेश दे दिया है। हालात अभी भी गंभीर बने हुए हैं। इस आर्टिकल के लागू होने के बाद केंद्र ने पूरे प्रदेश की सुरक्षा व्यवस्था अपने हाथ में ले ली है ताकि प्रदेश की हिंसा पर नियंत्रण पाया जा सके।

मणिपुर में आर्टिकल 355 लागू होने के बाद सीआरपीएफ के पूर्व डायरेक्टर जनरल कुलदीप सिंह को मणिपुर सरकार का सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया गया है। बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मियों को प्रदेश में तैनात किया गया है, ताकि हिंसा पर काबू पाया जा सके। मणिपुर में बीजेपी की सरकार है, इसके बावजूद केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार ने प्रदेश में अनु. 355 को लागू किया है। देश के इतिहास में ऐसा पहली बार है जब केंद्र और प्रदेश में एक ही दल की सरकार हो और केंद्र ने अपनी ही सरकार के खिलाफ फैसला लेते हुए प्रदेश में अनु. 355 को लागू किया है।

संविधान के अनुसार राज्य में शांति और क़ानून व्यवस्था बनाए रखना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। लेकिन किसी राज्य पर बाहरी आक्रमण या गंभीर आंतरिक हिंसा और अशांति होने पर केंद्र सरकार को उस राज्य की कानून व्यवस्था सुधारने के लिए दखल देने का अधिकार  अनुच्छेद 355 के तहत है। मणिपुर का वर्तमान संघर्ष,  आदिवासी बनाम गैरआदिवासी का है, लेकिन धर्म केंद्रित राजनीति करने वाली, राजनीतिक ताकतें, इस वास्तविक मुद्दे से, ध्यान हटाने के लिए इसे, धर्म के मुद्दे,   ईसाई बनाम हिंदू के सांप्रदायिक संघर्ष का रूप देने लगी हैं।  

यह बात बिल्कुल सच है कि, मणिपुर के अधिकांश आदिवासी, अपने मूल आदि धर्म को छोड़ कर, ईसाई बन गए हैं, और उनकी संख्या वहां अच्छी खासी है। वहीं  मेइती की अधिकांश जनसंख्या जो 53% हैं, हिंदू धर्म के मानते हैं। लेकिन  मेइती, मणिपुर की केवल 10 प्रतिशत भूमि पर रहते हैं और, आदिवासी भूमि के रूप में संरक्षित वन क्षेत्र के 90% भाग में फैले हैं और वन भूमि का उपयोग करते हैं। 

मेइती भी खुद को आदिवासी समाज की तरह, अनुसूचित जनजाति की श्रेणी चाहते हैं। उच्च न्यायालय ने, इस मामले में, उनके पक्ष में फैसला भी दिया है। आदिवासी और गैर आदिवासी के इस मुद्दे को, साम्प्रदायिक रंग देकर ध्यान भटकाने की कोशिश की जा रही है। इसी क्रम में, लगभग 40 चर्चों पर हमला किया गया है और, इस संघर्ष में, दोनों पक्षों की तरफ से मौतें भी हुई हैं। अब इस व्यापक हिंसा के बाद, यह एक जटिल मुद्दा बन गया है। इसका समाधान  करने के बजाय, निहित राजनीतिक स्वार्थ वाले लोग, इसे सांप्रदायिक रंग दे रहे हैं।

(विजय शंकर सिंह)

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