Wednesday 3 May 2023

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने आईबी की आपत्तियों को दरकिनार कर जजों की नियुक्ति के प्रस्ताव भेजे / विजय शंकर सिंह

हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति को लेकर, सरकार और सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम में पहले से ही विवाद चला आ रहा है। कानून मंत्री के सुप्रीम कोर्ट पर अक्सर ऐसे बयान आते रहते हैं, जो बेहद तीखे होते हैं। सरकार, लगभग सभी संस्थाओं और यहां तक कि, राज्य सभा के सभापति और लोकसभा के स्पीकर को भी मनमाफिक बना लेने के बाद, इस उम्मीद में है कि, वह उच्च न्यायपालिका को भी अपने प्रति प्रतिबद्ध करने की ओर बढ़े। पर इसमें सबसे बड़ी बाधा, सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम सिस्टम है। कॉलेजियम सिस्टम, भी ऐसा नहीं है कि, वह त्रुटिरहित हो, लेकिन सरकार की मर्जी से जजों की नियुक्ति का निर्णय तो पूरी न्यायपालिका को, सरकार के एक विभाग में बदल कर रख देगा। इसी टकराव के चलते अक्सर कॉलेजियम की सिफारिशों और सरकार में मतभेद उभर आते हैं। इसी प्रकार के एक मतभेद आईबी की रिपोर्ट को भी लेकर हुआ है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर, अपने कई प्रस्तावों को दुबारा भेजा, जिसे कुछ सरकार ने माने हैं और कुछ अभी भी सरकार के पास लंबित है। 

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 2 मई को एडवोकेट फिरोज पूनीवाला को बॉम्बे हाई कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नति की सिफारिश की थी। इस पर अभिसूचना ब्यूरो (IB)  की आपत्ति थी कि, फिरोज पूनावाला के सीनियर, जिनके अधीन पूनीवाला, काम करते थे,  ने 2020 में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए एक लेख लिखा है।

इस आपत्ति को दरकिनार करते हुए, सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने अपने प्रस्ताव में कहा है कि, "उनके वरिष्ठ द्वारा लिखे गए लेख का उनकी अपनी योग्यता, योग्यता या साख से कोई संबंध नहीं है। इंटेलिजेंस ब्यूरो ने, हालांकि हरी झंडी दिखाई है कि श्री पूनीवाला ने पहले एक वकील के अधीन काम किया था। यह बताया गया है कि उक्त अधिवक्ता ने 2020 में एक प्रकाशन में एक लेख लिखा था जिसमें देश में बोलने/अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की कथित कमी पर चिंता व्यक्त की गई थी। श्री पूनीवाला के एक पूर्व वरिष्ठ द्वारा व्यक्त किए गए विचारों का बॉम्बे के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए उनकी अपनी क्षमता, क्षमता या साख पर कोई असर नहीं पड़ा है।" 

कॉलेजियम ने यह भी कहा कि एक जूनियर और एक सीनियर के बीच कोई नियोक्ता-कर्मचारी संबंध नहीं होता है। प्रस्ताव में आगे कहा गया है कि, 
"कोलेजियम ने नोट किया कि श्री पुनीवाला और उनके पूर्व वरिष्ठ बॉम्बे उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस करते हैं। लेकिन, एक सीनियर के चैंबर से जुड़े जूनियर वकील का, अपने सीनियर के साथ नियोक्ता-कर्मचारी के रिश्ते में नहीं होते हैं। क्योंकि, जूनियर वकील जो सीनियर के चैंबर से जुड़े हुए होते हैं, वे अपना काम करने के लिए स्वतंत्र हैं और सभी इरादों और उद्देश्यों के साथ स्वतंत्र कानूनी प्रैक्टिस के हकदार हैं। पदोन्नति के लिए उम्मीदवार की उपयुक्तता को दर्शाते हुए यह कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं।"

भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और केएम जोसेफ वाले कॉलेजियम ने यह भी कहा कि खुफिया ब्यूरो ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि "उनकी एक अच्छी व्यक्तिगत और पेशेवर छवि है और उनकी सत्यनिष्ठा के संबंध में कुछ भी प्रतिकूल नहीं आया है और यह कि  वह किसी भी राजनीतिक दल से जुड़े नहीं हैं।  सलाहकार-न्यायाधीशों ने राय दी है कि वह पदोन्नति के लिए उपयुक्त है। एलेवेशन के लिए उम्मीदवार की उपयुक्तता पर प्रतिबिंबित करने वाली कोई प्रतिकूल टिप्पणी फ़ाइल में नहीं की गई है। उम्मीदवार का बार में व्यापक प्रैक्टिस है और उसे वाणिज्यिक कानून में विशेषज्ञता प्राप्त है। उम्मीदवार पारसी पारसी धर्म को मानता है और अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित है।" 

पूनीवाला के अलावा, कॉलेजियम ने अधिवक्ताओं शैलेश प्रमोद ब्रह्मे और जितेंद्र शांतिलाल जैन को बॉम्बे उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की भी सिफारिश की थी।

जितेंद्र शांतिलाल जैन के संबंध में भी, आईबी ने लगभग 20 साल पहले, टैक्सेशन के सीनियर के कक्ष में उनके काम से संबंधित एक मुद्दे का उल्लेख किया था।  इस आपत्ति को दरकिनार करते हुए, कॉलेजियम ने कहा, "जानकारी करने से, यह संकेत मिलता है कि, हालांकि यह सही है कि, जैन ने उस सीनियर के कक्ष में काम करना बंद कर दिया था, बाद में वह बार में एक प्रसिद्ध वरिष्ठ वकील के कक्ष में शामिल हो गये। इससे, उसकी क्षमता, योग्यता या सत्यनिष्ठा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।"
शैलेश प्रमोद ब्राह्मे के बारे में, कॉलेजियम ने कहा, "वह सिविल, आपराधिक, संवैधानिक और सेवा कानून मामलों में लगभग तीस वर्षों के अनुभव के साथ एक सक्षम वकील हैं। और उनके खिलाफ कोई प्रतिकूल इनपुट प्राप्त नहीं हुआ।"

यह पहली बार नहीं हुआ है जब कॉलेजियम ने सार्वजनिक रूप से आईबी की आपत्तियों को खारिज किया हो। जनवरी में, एससी कॉलेजियम ने आईबी की आपत्तियों को खारिज करने के अपने कारणों को, शायद पहली बार सार्वजनिक किया था। कॉलेजियम के प्रस्ताव में वरिष्ठ अधिवक्ता सौरभ किरपाल, अधिवक्ता सोमशेखर सुंदरसन और अधिवक्ता जॉन सत्यन की पदोन्नति के संबंध में आईबी की आपत्तियों का निपटारा किया गया था। 

किरपाल के बारे में, जिन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय में पदोन्नत करने की सिफारिश की गई थी, कॉलेजियम ने कहा कि उनके यौन अभिविन्यास और उनके विदेशी साथी के संबंध में आईबी की आपत्ति का कोई मतलब नहीं है।
सोमशेखर सुंदरेसन (बॉम्बे उच्च न्यायालय के लिए अनुशंसित) के बारे में कॉलेजियम ने आईबी की आपत्ति को खारिज कर दिया कि उन्होंने सरकार की आलोचनात्मक लेख लिखा था।
जॉन सथ्यन (मद्रास उच्च न्यायालय के लिए अनुशंसित) के संबंध में, कॉलेजियम ने आईबी की आपत्ति को खारिज कर दिया कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करते हुए एक लेख सोशल मीडिया पर साझा किया था। जनवरी के प्रस्तावों में कोलेजियम द्वारा उनके नामों को दोहराए जाने के बावजूद केंद्र सरकार ने अभी तक इन नामों को नियुक्ति के लिए अधिसूचित नहीं किया है।

बाद में, कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कोलेजियम द्वारा आईबी के इनपुट को सार्वजनिक करने पर नाराजगी व्यक्त की।  "रॉ या आईबी की गुप्त या संवेदनशील रिपोर्ट को सार्वजनिक डोमेन में रखना एक गंभीर चिंता का विषय है, जिस पर मैं उचित समय पर प्रतिक्रिया दूंगा। मैं इतना ही कह सकता हूं, अगर संबंधित अधिकारी, जो देश के लिए काम कर रहा है या  गोपनीय तरीके से, दो बार सोचेंगे कि उनकी रिपोर्ट सार्वजनिक डोमेन में होने जा रही है। इसका प्रभाव होगा।"

आईबी की रिपोर्ट एक जरूरी और महत्वपूर्ण रिपोर्ट होती है। उनकी गोपनीयता बनाए रखना आवश्यक भी है और यह सभी का दायित्व भी है। लेकिन रिपोर्ट के विषय पर यह निर्भर करता है कि, किस अंश को सार्वजनिक किया जाय और किसे नही। जजों की उम्मीदवारी के संदर्भ में की गई आईबी की रिपोर्ट न तो देश की सुरक्षा से जुड़ी होती है और न ही वह संवेदनशील होती है। वह एक प्रकार की पुलिस वेरिफिकेशन रिपोर्ट की तरह होती है, जिसमे, उम्मीदवार की पृष्ठभूमि, राजनीतिक प्रतिबद्धता, सामान्य प्रतिष्ठा की छवि, चालचलन आदि पर टिप्पणी होती है। कॉलेजियम इसका अध्ययन करता है और फिर यह निर्णय लेता है कि, इसे नियुक्ति हेतु सरकार को भेजा जाय या नहीं। इन्ही में से कुछ अंश कॉलेजियम के कुछ प्रस्तावों में सार्वजनिक किए गए हैं। सरकार को आपत्ति इसी पर है। ऊपर जिन आईबी रिपोर्ट के अंशों का उल्लेख किया गया है, उनमें से कोई भी अंश ऐसा नहीं लगता है कि, वह संवेदनशील हो। एक तरफ हम कॉलेजियम से यह उम्मीद भी रखते हैं कि, वह पारदर्शी बने और दूसरी तरफ जब कॉलेजियम, अपनी सिफारिश के संबंध में, तर्क, आधार और प्रमाण सार्वजनिक करता है तो हम उस पर गोपनीयता भंग का आरोप मढ़ सकते है। कोई भी सरकार और तंत्र पारदर्शी नहीं होना चाहता है, क्योंकि ऐसे में उसके अपने हितों के प्रभावित होने का खतरा होने लगता है।

(विजय शंकर सिंह)

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