Monday 8 May 2023

मणिपुर हिंसा का वर्तमान मामला, मणिपुर हाईकोर्ट के एक फैसले का भी परिणाम है / विजय शंकर सिंह

मणिपुर उच्च न्यायालय की सिंगल जज पीठ में कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एम.वी.  मुरलीधरन ने, एक याचिका की सुनवाई के बाद राज्य सरकार को एक विवादित आदेश के माध्यम से निर्देश दिया था कि "राज्य अनुसूचित जनजातियों की सूची में मेइती समुदाय को शामिल करने की सिफारिश करने पर विचार करे।"
मणिपुर हिंसा का वर्तमान मामला, मणिपुर हाईकोर्ट के उसी फैसले का परिणाम है। उक्त आदेश के ही कारण, मणिपुर मौजूदा अशांति से जूझ रहा है।  

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार, 8 मई को, एक याचिका की सुनवाई के दौरान, यह मौखिक टिप्पणी की कि "मणिपुर के उच्च न्यायालय के पास राज्य सरकार को अनुसूचित जनजाति सूची के लिए एक जनजाति की सिफारिश करने का निर्देश देने का अधिकार नहीं है।" 
यह टिप्पणी तब की गई, जब मुख्य न्यायाधीश सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ, मणिपुर राज्य में चल रही अशांति से संबंधित मामलों की सुनवाई कर रही है।

सुप्रीम कोर्ट की यह पीठ, मणिपुर से संबंधित, दो याचिकाओं पर विचार कर रही है, एक, मणिपुर ट्राइबल फोरम दिल्ली द्वारा दायर एक याचिका जिसमें हिंसा की एसआईटी जांच और पीड़ितों के लिए राहत की मांग की गई है, और दूसरा, मणिपुर विधान सभा की पहाड़ी क्षेत्र समिति (HAC) के अध्यक्ष, डिंगांगलुंग गंगमेई द्वारा दायर एक अन्य याचिका, मणिपुर उच्च न्यायालय के निर्देश को चुनौती देते हुए कि केंद्र सरकार को अनुसूचित जनजाति सूची में मेइती समुदाय को शामिल करने की सिफारिश को आगे बढ़ाया जाए। उल्लेखनीय है कि मेइती को एसटी दर्जे से जुड़े मुद्दे पर पिछले हफ्ते राज्य में दंगे भड़क गए थे।

हिल एरिया कमेटी के अध्यक्ष, गंगमेई ने अपनी याचिका ने यह तर्क दिया है कि, "किसी राज्य सरकार को अनुसूचित जनजाति ST सूची में किसी समुदाय को एक जनजाति के रूप में शामिल करने का निर्देश देने या सिफारिश करने का अधिकार, उच्च न्यायालय को नहीं है।"
इस प्रकार, मणिपुर हाईकोर्ट ने, ऐसा निर्देश देकर, अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण किया है। ऐसे अनाधिकृत निर्देश का ही परिणाम है कि, आज मणिपुर जल रहा है और वहां की कानून व्यवस्था, संविधान के अनुच्छेद 355 के अंतर्गत फिलहाल केंद्राधीन है। 

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष, वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े इस मामले में मूल याचिकाकर्ता (उच्च न्यायालय के समक्ष) की ओर से पेश हो रहे थे। सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा कि, "सुप्रीम कोर्ट के ऐसे कई फैसले हैं, जिनमें कहा गया है कि हाई कोर्ट किसी समुदाय को एसटी का दर्जा देने का कोई निर्देश नहीं दे सकता है।" 
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि, "याचिकाकर्ता को, जब हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई चल रही थी, तो, सुप्रीम कोर्ट के ऐसे, निर्णयों को, उच्च न्यायालय के संज्ञान में लाना चाहिए था। सुप्रीम कोर्ट के यह निर्णय, हाईकोर्ट के लिए बाध्यकारी हैं।

मुख्य न्यायाधीश ने एडवोकेट हेगड़े से कहा, "आपने हाईकोर्ट को कभी नहीं बताया कि उसके पास यह शक्ति नहीं है। यह राष्ट्रपति की शक्ति है।"  
सीजेआई चंद्रचूड़ ने महाराष्ट्र राज्य बनाम मिलिंद मामले में दिए गए फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि "राज्य सरकारें या अदालतें या न्यायाधिकरण या कोई अन्य प्राधिकरण अनुच्छेद 342 के खंड (1) के तहत जारी अधिसूचना में निर्दिष्ट अनुसूचित जनजातियों की सूची को संशोधित, या बदल नहीं सकते हैं।"

हिल एरिया कमेटी के याचिकाकर्ता, गंगमेई द्वारा दायर याचिका में तर्क दिया गया है कि इस आदेश के परिणामस्वरूप मणिपुर में अशांति फैल गई है, जिसके कारण 60 लोगों की मौत हुई है और व्यापक स्तर पर लोगों का नुकसान हुआ है।"
याचिका के अनुसार, "दिए गए आदेश के कारण दोनों समुदायों के बीच तनाव हुआ और राज्य भर में हिंसक झड़पें होने लगीं जो अब भी हो रही हैं। इसके परिणामस्वरूप अब तक 60 आदिवासी मारे गए हैं, राज्यों में विभिन्न स्थानों को अवरुद्ध कर दिया गया है, इंटरनेट पूरी तरह से बंद कर दिया गया है और  अधिक लोगों को अपनी जान गंवाने का खतरा है।"

मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने का निर्णय एक राजनीतिक निर्णय या कोई राजनीतिक चुनावी वादा है या नही, बिना इस विषय पर विचार किए यह कहा जा सकता है कि, फिलहाल तो यह अशांति हाईकोर्ट के ऐसे आदेश का परिणाम है, जो उसके क्षेत्राधिकार के बाहर दिया गया है। इसका खमियाजा, आज पूरा मणिपुर भुगत रहा है। अनुसूचित जाति जनजाति में शामिल करने या उसकी समीक्षा करने का अधिकार आयोग की सिफारिश पर सरकार और सरकार के अनुरोध पर राष्ट्रपति को है, न कि, हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट को। जिस तरह से हाईकोर्ट  में यह मामला उठाया गया और हाईकोर्ट को, सुप्रीम कोर्ट की उन रुलिंग्स से अवगत नहीं कराया गया, से यह संकेत मिलता है कि, इस याचिका का उद्देश्य राजनीतिक है और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अदालत के कंधे पर बंदूक रखी गई है। अभी सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं की सुनवाई चल रही है।

० विजय शंकर सिंह


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