Friday 18 November 2022

"राज्य की पूरी ताकत के बावजूद, आप एक सत्तर साल के कैदी को, उसके घर में, नजरबंद नहीं रख पा रहे हैं।" - सुप्रीम कोर्ट, गौतम नवलखा की घर में नजरबंदी पर / विजय शंकर सिंह

यलगार परिषद के एक्टिविस्ट, गौतम नवलखा को, उनकी उम्र और स्वास्थ्य के कारण, सुप्रीम कोर्ट ने, जेल के बजाय, घर में नजरबंद रखने का आदेश, 10 नवंबर को दिया था। इस आदेश का अनुपालन, मुंबई की विशेष एनआईए अदालत को करना था। एनआईए ने, जो जगह, गौतम नवलखा ने अपने लिए नजरबंदी हेतु चुनी थी, उस पर एनआईए ने ऐतराज जताया तो, विशेष जज ने, नजरबंदी का आदेश रोक लिया। मामला फिर सुप्रीम कोर्ट में गया और, सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सुनवाई की। सुनवाई के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार 18 नवंबर को, एनआईए, राष्ट्रीय जांच एजेंसी द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें एक्टिविस्ट, गौतम नवलखा को मुंबई की तलोजा जेल से, हटा कर, घर में ही नजरबंद रखने की अनुमति देने वाले आदेश को रद्द करने की मांग की गई थी, जहां वह, इस समय, भीमा कोरेगांव मामले में, बंद हैं।

जस्टिस केएम जोसेफ और हृषिकेश रॉय की पीठ ने, सत्तर साल की उम्र में, घर में नजरबंदी के लिए कुछ अतिरिक्त शर्तों को भी शामिल किया, जैसे कि रसोई के दरवाजे को निकास बिंदु तक ले जाना और हॉल की ग्रिल को बंद करना था। पीठ ने कहा कि, नवलखा ने दोनों निकास बिंदुओं पर सीसीटीवी कैमरे लगाने की शर्त का पालन किया है। पीठ ने निर्देश दिया कि 10 नवंबर को पारित आदेश, जिसमें नवलखा को जेल से हाउस अरेस्ट में स्थानांतरित करने की अनुमति दी गई थी, को 24 घंटे के भीतर निष्पादित किया जाना चाहिए।"

अदालत को लगा कि, एनआईए जानबूझकर, अदालत का नजरबंदी आदेश नहीं मानना चाहती है और जांच एजेंसी, किसी न किसी बहाने, गौतम नवलखा को, जेल में ही बंद रखना चाहती है। सुनवाई के दौरान, पीठ ने मौखिक रूप से एनआईए से कहा, "यदि आप आदेश में, कुछ खामियों को ढूढने की कोशिश कर रहे हैं, तो हम इसे बहुत गंभीरता से लेंगे। अगर आप पूरे पुलिस बल के साथ 70 साल के, एक बीमार आदमी पर नजर नहीं रख सकते हैं, तो, अपनी कमजोरी के बारे में सोचें ... कृपया ऐसी बात न कहें। राज्य की पूरी ताकत के बावजूद, आप एक सत्तर साल के व्यक्ति को, उसके घर में, नजरबंद नहीं रख पा रहे हैं। एक 70 वर्षीय बीमार व्यक्ति घर में ही तो बंद है।" पीठ ने एनआईए की आपत्तियों के बारे में मौखिक रूप से टिप्पणी की।

भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने, अदालत में कहा कि, "गौतम  नवलखा द्वारा उद्धृत मेडिकल रिपोर्ट, जिस पर कोर्ट ने उन्हें राहत देने के लिए भरोसा किया था, पक्षपातपूर्ण हैं क्योंकि वे जसलोक अस्पताल द्वारा तैयार किया गया है, जहां के मुख्य चिकित्सक, डॉ एस कोठारी हैं, जो उनके बहनोई हैं।"
एसजी ने कहा कि, "नवलखा, न्यायालय के इक्विटी क्षेत्राधिकार का उल्लंघन करते हुए, जसलोक अस्पताल में, अपने और मेडिकल सुपरिटेंडेंट के बीच के परिवारिक रिश्ते का खुलासा करने में विफल रहे।"
सॉलिसिटर जनरल का कहना था कि, गौतम नवलखा ने जसलोक अस्पताल में, अपने बहनोई की नियुक्ति की बात छुपाई है। गौतम नवलखा के बहनोई डॉ कोठारी, मुंबई के जसलोक अस्पताल में मुख्य चिकित्सा अधीक्षक हैं। वहीं से नवलखा की, मेडिकल रिपोर्ट बनी थी। 

न्यायमूर्ति जोसेफ ने, एसजी की इस दलील पर कहा कि, "इस पहलू पर सुनवाई की गई थी। यहाँ, सॉलिसिटर जनरल, हम आपको कुछ बताना चाहते हैं। जब इस विंदु पर सुनवाई हो रही थी तो, आपका प्रतिनिधित्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने किया था। ये सभी तर्क, कि, डॉक्टर उनके बहनोई हैं, और इन सभी बातो पर, हम उस दिन, विचार कर चुके हैं। क्या आपको ऐसा लगता है कि, यह आदेश आपको सुने बिना पारित किया गया था? जबकि पूरी दलील रखी गई थी। " 
न्यायमूर्ति जोसेफ ने यह पूछते हुए कहा कि, "क्या एनआईए आदेश की समीक्षा की मांग कर रही है?
एसजी ने कहा कि, "वह अपने सहयोगी, एएसजी एसवी राजू की क्षमताओं पर संदेह नहीं कर रहे हैं, लेकिन यह भी कहा कि बाद के जो घटनाक्रम हैं, उनकी तरफ, अदालत का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं।"
जस्टिस जोसेफ ने कहा, "एएसजी, मिस्टर राजू आखिरी क्षण तक डटे रहे और हम सभी शर्तों से सहमत थे, और इस अर्थ में यह एक सहमत आदेश था।"
"नहीं", एसजी ने तुरंत हस्तक्षेप किया। "मेरे विद्वान मित्र इस तरह के आदेश के लिए कभी सहमत नहीं होंगे।"

गौतम नवलखा ने, रहने के लिए जो जगह चुनी है वह कम्युनिस्ट पार्टी के दफ्तर वाले भवन में है। इस पर, खंडपीठ का कहना है कि, "वह स्थान कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा नियंत्रित पुस्तकालय के ऊपर एक हॉल में है, यह कोई चौंकाने वाली बात नहीं है।"
न्यायमूर्ति जोसेफ ने फिर एनआईए द्वारा की गई आपत्ति के अगले आधार का उल्लेख किया कि "हाउस अरेस्ट के लिए चुना गया स्थान कम्युनिस्ट पार्टी के नियंत्रण में एक पुस्तकालय है। कम्युनिस्ट पार्टी भारत की एक मान्यता प्राप्त पार्टी है। इस पर क्या आपत्ति है, हम नहीं समझ पा रहे हैं?" 
एसजी ने कहा, "अगर इससे इस अदालत को कोई झटका नहीं लगता है, तो मैं इसे उस पर छोड़ दूंगा।"
"यह निश्चित रूप से हमें इस तथ्य से कोई झटका नहीं लगा है।" न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा।

एसजी ने पूछा, "माओवादी होने के नाते और एक गंभीर आतंकवादी कृत्य में शामिल होने का आरोपी व्यक्ति, किसी राजनीतिक दल के कार्यालय में रह रहा है। इस संस्था में रहने के लिए उसे किस लिए प्रेरित किया जा रहा है?"
इस मौके पर, न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय ने यह कहते हुए हस्तक्षेप किया कि, "मेडिकल रिपोर्ट से संबंधित तर्कों को उठाने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि सभी आपत्तियों पर विचार करते हुए आदेश पारित किया गया था।"  
जस्टिस रॉय ने कहा कि, "कोर्ट चुने गए स्थान से संबंधित आपत्तियों पर विचार कर सकती है।"

एएसजी राजू ने कहा कि, "नवलखा द्वारा दी गई सूचना यह थी कि, भूतल पर एक पुस्तकालय था और पहली मंजिल पर एक निजी आवास है.  लेकिन स्थान एक राजनीतिक दल के नियंत्रण में एक पुस्तकालय निकला।"
"क्या यह इसलिए है क्योंकि पुस्तकालय एक राजनीतिक दल से संबंधित है जिस पर आप आपत्ति कर रहे हैं?", जोसेफ ने पूछा।

एएसजी ने कहा, "मेरी आपत्ति यह नहीं है कि यह x, y या z से संबंधित है। मेरी आपत्ति यह है कि भ्रामक बयानों की एक श्रृंखला है और इसका मतलब है कि उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। समझ यह थी कि, वह किसी से नहीं मिलेंगे। लेकिन अब उसने एक ऐसा स्थान ,चुना है, एक ऐसी जगह, जहां वह, लोगों से आसानी से मिल सकता है। यह सुझाव दिया गया था कि, बाहर निकास पर एक सीसीटीवी होगा और रहने का एक छोटा कमरा होगा। हम सभी का मानना ​​था कि, यह एक निकास द्वार वाला फ्लैट होगा। लेकिन यह झूठ था। जबकि, यह दो निकास वाली जगह है। उद्देश्य यह था कि, वह यह कहकर हमें गुमराह करना चाहता था कि केवल एक निकास है।" 

जस्टिस रॉय ने तब कहा, "वह तब तक वहां नहीं जा सकते थे, जब तक कि पुलिस अधिकारियों द्वारा रेकी नहीं कर ली जाती। अब रेकी की गई है, ताकि, कोई दिक्कत हो तो, उसे दूर किया जा सके।"
एएसजी ने कहा, "हमारे द्वारा की गई बाद की खोज से कोई फर्क नहीं पड़ता। आदेश के समय क्या मायने रखता है, इसका खुलासा नहीं किया गया था।"

एएसजी ने आगे कहा कि, "किसी के भी प्रवेश के लिए कमरे की ग्रिल तोड़ी जा सकती है। साथ ही छत पर कराटे की क्लास भी होती है और ऐसे लोग होते हैं जो ऊपर-नीचे आते जाते रहते हैं।  इसलिए किसी से भी, वहां जाकर मिलना आसान है। यह सुझाव दिया गया था कि, यह एक कमरे का फ्लैट होगा। लेकिन यह एक आवासीय इलाका नहीं है। यह एक पुस्तकालय है और शीर्ष मंजिल पर एक अस्थायी आवास बनाया गया है। इस जगह की निगरानी करना असंभव है। केवल एक कैमरा लगाकर यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है। यह निगरानी एक दिखावा है। परिसर को देखें, क्या यहां इस तरह की बीमारी वाला व्यक्ति रह सकता है ? यह मेरे इस कथन को पुष्ट करता है कि मेडिकल रिपोर्ट एक दिखावा है।"

गौतम नवलखा की तरफ से, वरिष्ठ अधिवक्ता नित्या रामकृष्णन ने कहा कि, "यह पहले न्यायालय को बताया गया था कि, रहने का स्थान, पुस्तकालय के ऊपर एक हॉल होगा, जिसमें एक रसोईघर और एक बाथरूम होगा। 14 नवंबर को प्रवेश द्वार पर एक सीसीटीवी कैमरा लगाया गया था। उन्होंने कहा कि पुलिस आयुक्त ने 14 तारीख को दूसरे सीसीटीवी कैमरे के मसौदे को स्वीकार नहीं किया। 15 तारीख, को कुछ अधिकारी निरीक्षण के लिए आए। एनआईए ने स्थानीय लोगों के साथ भी दुर्व्यवहार किया और उन्हें किताबें आदि निकालने के लिए कहा। मैं इसमें नहीं पड़ना चाहती। एनआईए ने कहा कि रसोई का उपयोग नहीं किया जा सकता है.. अब रसोई का उपयोग वर्जित है।"  उन्होंने यह भी कहा कि "दूसरे निकास द्वार पर सीसीटीवी कैमरा लगा दिया गया है।"

"आप कम्युनिस्ट पार्टी के बारे में क्या कहते हैं?" जस्टिस जोसेफ ने कहा।
नवलखा के वकील ने कहा, "बुनियादी राजनीतिक समझ वाला कोई भी व्यक्ति जानता है कि, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, माओवादियों से अलग है। कम्युनिस्ट पार्टी खुद माओवादियों की निंदा करती है। समकालीन राजनीति की बुनियादी समझ रखने वाले किसी भी व्यक्ति को पता है कि, सीपीआई (एम) एक मान्यता प्राप्त राजनीतिक पार्टी है। पुस्तकालय बीटी रणदिवे द्वारा स्थापित है और सीपीआईएम द्वारा संचालित है।"

रामकृष्णन ने आगे बताया कि, "आवेदन में नवलखा ने स्पष्ट रूप से कहा था कि, उन्होंने जसलोक अस्पताल को प्राथमिकता क्यों दी। क्योंकि उनके रिश्तेदार वहां थे।" रामकृष्णन ने हलफनामे के उस हिस्से को पढ़ा, जिसमें, उन की बहन के, अस्पताल से संबंध के बारे में बताया गया था।
न्यायमूर्ति जोसेफ ने पूछा, "यह दलीलें दिखाती हैं कि अस्पताल और बहन के बीच एक संबंध है, जो वास्तव में है तो यह फिर छुपाया कहां गया है?
एएसजी ने कहा कि, "हलफनामे में केवल यह कहा गया है कि, उनकी बहन अस्पताल में "काम करती है" और यहां नवलखा के बहनोई के अस्पताल के प्रमुख होने के बारे में कोई खुलासा नहीं किया गया है।"
एएसजी ने कहा, "जीजाजी के बारे में कोई कानाफूसी नहीं है। अगर यह बात छुपाई नहीं गई है, तो मेरे पास कहने के लिए और कुछ नहीं है।"

इस मौके पर एएसजी ने अपनी 90 वर्षीय सास के बीमार होने की बात कहते हुए व्यक्तिगत परेशानी का हवाला देते हुए सुनवाई सोमवार तक स्थगित करने का अनुरोध किया। 
"किस उद्देश्य के लिए हम स्थगित कर रहे हैं", जस्टिस जोसेफ ने पूछा।
सॉलिसिटर जनरल ने तब कहा कि, "गौतम नवलखा महज 70 साल के व्यक्ति नहीं हैं, बल्कि आईएसआई और आतंकवादी संगठन के साथ संबंध रखने वाले आरोपी भी हैं।"

नवलखा की वकील, रामकृष्णन ने प्रस्तुत किया कि, "आदेश में सभी शर्तों का अनुपालन किया गया है और एनआईए को जल्द से जल्द निर्देश पर अमल करने का आदेश दिया जाना चाहिए।" 
इस बिंदु पर, पीठ ने एएसजी से अतिरिक्त शर्तों के बारे में पूछा।
एएसजी ने कहा कि, "हॉल में बेड सीसीटीवी से दूर है।  हालांकि, पीठ ने कहा कि यह निजता का मुद्दा है।" रामकृष्णन ने इस बात पर प्रकाश डाला कि, "नवलखा की पार्टनर भी उनके साथ रह रही है। घर में महिला है। उन्हें बेहतर पता होना चाहिए। निजता क्या होती है।"
एएसजी की मांग को मानने से इनकार करते हुए जस्टिस जोसेफ ने कहा, "अगर आप कैमरे को वैसे ही रखेंगे तो आपको बिस्तर की झलक दिखेगी।"  

हालांकि, एएसजी द्वारा की गई अन्य मांगों को आदेश में अतिरिक्त शर्तों के रूप में जोड़ा गया। नवलखा द्वारा चुने गए स्थान पर एनआईए द्वारा आपत्ति जताए जाने के बाद मुंबई की विशेष एनआईए अदालत ने बुधवार को नवलखा की नजरबंदी पर अमल करने का आदेश पारित करने से इनकार कर दिया गया था। तब यह मामला पुनः सुप्रीम कोर्ट में आया और सुप्रीम कोर्ट ने, घर में नजरबंदी के अपने आदेश को, बरकरार रखा है।

(विजय शंकर सिंह)

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