Monday 14 November 2022

प्रवीण झा / 1857 की कहानी - दो (14)

हिंदुओं और मुसलमानों के मध्य दरार को भुनाने का एक रास्ता अंग्रेजों के पास हमेशा से था। लेकिन, घिरे होने की वजह से बात नहीं हो पा रही थी। पहले ब्लेनमैन नामक एक जासूस दो-तीन बार छावनी से बाहर रसोइए के भेष में गए थे। उनका रंग भूरा था, तो भारतीयों में मिल जाते; मगर एक दिन वह भी पकड़े गए। हिंदी में बात कर और कुछ बहाने बना कर जैसे-तैसे बच कर छावनी में आए।

24 जून को एक दूसरे यूरेशियाई जोनास शेपहर्ड ने जनरल व्हीलर से कहा कि वह छुप कर नाना साहेब के पास जाना चाहते हैं। शेपहर्ड के लिखे संस्मरण बाद में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ बने। उन्हें अपने बीवी-बच्चों की चिंता हो रही थी, जो अब छावनी में मरणासन्न हो रहे थे। उन्होंने कहा कि वह जान पर खेल कर नाना साहेब से बातचीत करेंगे। 

व्हीलर ने कहा, “तुम जाकर नन्ने नवाब से मिलो। वह मेरा पुराना दोस्त है, और मुझे लगता है कि नाना साहेब से उसकी नहीं बनती। वह नाना से नेतृत्व छीनना चाहता है।”

यह शक बेबुनियाद नहीं थी। नन्ने नवाब लखनऊ के रईस थे, जिन्होंने अपने भाई निजाम-उद-दौला के साथ नाना साहेब से हाथ मिलाया था। सेंट जॉन गिरजाघर के सामने हज़ार मुसलमानों की फ़ौज के साथ वह तैनात थे। नाना साहेब ने जब दो तोपों की चोरी के बाद निजाम-उद-दौला को बर्खास्त किया था, तभी से कुछ मनमुटाव था। बाद में गोमांस को लेकर भी दोनों धर्मों में मतभेद पनपे। हालाँकि दोनों साथ मिल कर अपने-अपने लक्ष्य से अंग्रेजों के ख़िलाफ़ लड़ रहे थे, मगर व्हीलर इनको तोड़ने की उम्मीद में थे।

शेपहर्ड ने अपने बाल छोटे कर लिए, रसोइए का भेष बना कर, शरीर पर घासलेट पोत लिया, और पगड़ी बाँध ली। शेपहर्ड जैसे ही छावनी से निकल कर भारतीय रसोई की तरफ़ बढ़े, पकड़े गए। वह चाहते भी यही थे कि उन्हें पकड़ कर नाना साहेब या नन्ने नवाब तक ले जाया जाए। मगर उन्हें बाँध कर एक तंबू में बिठा दिया गया। उनसे पूछताछ हुई, जिससे पता लगा कि व्हीलर संधि करना चाहते हैं। 

25 जून की शाम को एक गोरी स्त्री अपनी छाती में शिशु को लगाए ब्रिटिश छावनी की ओर बढ़ने लगी। वह जब करीब आयी तो लेफ़्टिनेंट थॉमसन ने कहा, “यह तो मिसेज ग्रीनवे है। कोई संदेश लेकर आयी है।”

चिट्ठी अंग्रेज़ी में थी,

“आदरणीय महारानी विक्टोरिया के आप सभी नागरिकों के नाम,

आप में से जो भी लॉर्ड डलहौज़ी के निर्णयों से ताल्लुक नहीं रखते, और अपने हथियार डालना चाहते हैं, उन्हें हम सुरक्षित इलाहाबाद पहुँचाने का प्रस्ताव रखते हैं।”

व्हीलर ने पढ़ कर कहा, “इस पर किसी के हस्ताक्षर क्यों नहीं? नाना साहेब की मुहर लगवा कर लाइए।”

अगली सुबह एक अन्य यूरेशियन महिला मिसेज जैकोबी नाना साहेब के हस्ताक्षर लेकर आयी। व्हीलर ने सभी अफ़सरों से मंत्रणा की। उनमें से अधिकांश ने कहा कि नाना साहेब पर भरोसा नहीं किया जा सकता। 

कैप्टन मूर ने हस्तक्षेप किया, “इस वक्त सभी महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा महत्वपूर्ण है। हमें प्रस्ताव मान लेना चाहिए।”

दोपहर को दोनों खेमों के मध्य मीटिंग तय हुई। भारतीयों की तरफ़ से अज़ीमुल्ला ख़ान और ज्वाला प्रसाद आए, और अंग्रेज़ों की तरफ़ से व्हीलर और उनके चार अफ़सर आए। वहीं छावनी के सामने कुर्सियाँ लगायी गयी। अज़ीमुल्ला ख़ान ने अंग्रेज़ी में वार्ता शुरू की तो ज्वाला प्रसाद ने टोका, “अंग्रेज़ी में नहीं, देसी भाषा में बोलिए। हमको अंग्रेज़ी नहीं समझ आती।”

व्हीलर ने कहा, “हाँ हाँ! क्यों नहीं? हम सब यहाँ की भाषा बोलते हैं।”

अज़ीमुल्ला ख़ान ने कहा, “आप सबको हम नावों से इलाहाबाद पहुँचाएँगे। बारिश के लिए ऊपर से नाव ढकी होगी। भोजन की व्यवस्था होगी। बदले में आप सबको छावनी के सभी हथियार हमारे हवाले करने होंगे।”

कैप्टन मूर ने कहा, “हमारे पुरुषों के पास कुछ छोटी बंदूक और साठ राउंड लायक कारतूस रहने दें। यहाँ से आगे निकलने के बाद अगर कोई हमला हो…”

एक घुड़सवार सावदा हाउस में नाना साहेब तक प्रस्ताव लेकर गए। उन्होंने संदेश भेजा कि वह तैयार हैं। व्हीलर ने कहा कि सामान बाँधने के लिए एक दिन का वक्त दिया जाए, और इस मसौदे पर सभी के हस्ताक्षर हो जाएँ। यह सभी औपचारिकताएँ पूरी कर ली गयी। 

ब्रिटिश छावनी में खुशी की लहर आ गयी। वहाँ मौजूद युवती एमि होर्न ने लिखा, “उस रात हम खूब नाचे-गाए। कई दिनों बाद दाल-चपाती खाया (संभवत: भारतीय खेमे से भेजा गया)। कुएँ से कई बाल्टियाँ निकाल कर लोगों ने खूब पानी पीया।”

26 जून की दोपहर तक 40 नाव सतीचौरा घाट पर लग गए थे। उनमें कई के ऊपर बारिश से बचने के लिए तिरपाल लगा था। नाना साहेब ने लगभग सवा लाख रुपए और कुछ अन्य चीजें भी भिजवायी। साथ में उन्होंने संदेश भिजवाया, “आज शाम की बजाय कल सुबह आप लोग निकलें। हम कुछ बग्घियों की व्यवस्था कर रहे हैं, जो आपके बीमार और घायल लोगों को घाट तक पहुँचाएँगे।”

स्वयं ज्वाला प्रसाद ब्रिटिश छावनी में आकर सोए ताकि किसी को कोई शंका न हो। संस्मरणों के अनुसार ज्वाला प्रसाद उनसे खूब बतियाये कि जो हुआ, अब भूल जाएँ। अंग्रेज़ नयी सुबह के इंतज़ार में सो गए। 

यह खूबसूरत रात उनकी आख़िरी रात थी। 
(क्रमश:) 

प्रवीण झा
© Praveen Jha 

1857 की कहानी - दो (13) 
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/11/1857-13.html 

No comments:

Post a Comment