Friday 15 July 2022

दिल्ली मामले में आल्ट न्यूज के जुबैर को सेशन कोर्ट से जमानत मिली / विजय शंकर सिंह

दिल्ली की पटियाला हाउस सत्र न्यायालय ने आल्ट न्यूज के मोहम्मद जुबैर को, उनके खिलाफ दायर एक मामले में, आज जमानत दे दी है। पर जुबैर पर अभी उत्तर प्रदेश में भी मुकदमे हैं, जिनमें उन्हे अभी जमानत नहीं मिली है। पटियाला सेशन कोर्ट के जज ने जमानत आदेश में यह टिप्पणी की है, 

"स्वस्थ लोकतंत्र के लिए असहमति की आवाज जरूरी है।  इसलिए, केवल किसी भी राजनीतिक दल की आलोचना के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 153A और 295A लागू करना उचित नहीं है," 

हाल ही में 2018 में किए गए अपने ट्वीट के माध्यम से धार्मिक भावनाओं को आहत करने और समाज में वैमनस्यता को बढ़ावा देने के आरोप में दिल्ली पुलिस द्वारा हाल ही में दर्ज एक एफआईआर, के संबंध में गिरफ्तार जुबैर की जमानत अर्जी पर यह फैसला दिया है। यह टिप्पणी इस आरोप के संदर्भ में की गई थी कि जुबैर ने "2014 से पहले" और "2014 के बाद" दो शब्दों के साथ एक तस्वीर ट्वीट की थी, जिससे धार्मिक भावनाएं आहत हुई।

अभियोजन की तरफ से, सरकारी वकील ने यह तर्क दिया था कि,
"2014 से पहले" और "2014 के बाद" के शब्द सत्तारूढ़ राजनीतिक दल की ओर इशारा करते हुए पूर्वाग्रही तरीके से, ट्वीट में इस्तेमाल किए गए हैं।"
पटियाला हाउस कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश देवेंद्र कुमार जांगला ने अपने फैसले में कहा,
"भारतीय लोकतंत्र में, राजनीतिक दलों की आलोचना की जा सकती है और की भी जाती रही है। वे अपनी आलोचना के लिए खुले हैं। राजनीतिक दल अपनी नीतियों की आलोचना का सामना करने के लिए जनता पर कभी ऐतराज भी नहीं जताया हैं।"
अदालत का यह भी विचार था कि,  
"पुलिस उक्त ट्विटर उपयोगकर्ता की पहचान स्थापित करने में विफल रही है, जिसने आरोपी के ट्वीट से खुद को आहत महसूस किया था।  इसके अलावा, 2018 से आज तक, कोई अन्य शिकायत प्राप्त नहीं हुई थी कि जुबैर का  उपरोक्त ट्वीट आपत्तिजनक था।"

दिल्ली पुलिस के अनुसार,
"एक अज्ञात ट्विटर हैंडल से एक शिकायत प्राप्त होने के बाद मामला दर्ज किया गया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि जुबैर ने "एक विशेष धर्म के भगवान का जानबूझकर अपमान करने के उद्देश्य से एक संदिग्ध छवि" वाली ट्वीट की थी। प्राथमिकी के अनुसार, हिंदू भगवान हनुमान के नाम पर 'हनीमून होटल' का नाम बदलने पर 2018 से जुबैर द्वारा की गई ट्वीट, उनके धर्म का अपमान था।"

कोर्ट ने कहा, 
"इस पीड़ित व्यक्ति/गवाह का धारा 161 सीआरपीसी के तहत बयान अभी तक दर्ज नहीं किया गया है। पुलिस किसी अन्य व्यक्ति या गवाह के बयान को भी दर्ज करने में विफल रही है, जिसने आरोपी के ट्वीट से, खुद को, आहत महसूस किया है।"  
अदालत ने कहा, 
"भारतीय दंड संहिता के अपराध की जांच आपराधिक प्रक्रिया संहिता, सीआरपीसी 1973 में, निर्धारित सिद्धांत और प्रक्रिया द्वारा ही होती है और की जा सकती है। पुलिस अधिकारी सीआरपीसी के प्रावधानों के अनुसार ही जांच में आगे बढ़ने के लिए बाध्य हैं।"

आगे यह देखते हुए कि,
"लोकतंत्र खुली चर्चा के माध्यम से काम करने वाली शासन प्रणाली है"
कोर्ट ने आगे कहा कि, 
"लोकतंत्र न तो काम कर सकता है और न ही समृद्ध हो सकता है, जब तक कि लोग अपने विचारों को साझा करने के, निडर होकर अपनी बात अभिव्यक्त नहीं करते हैं। विचारों का मुक्त आदान-प्रदान, बिना किसी रोक-टोक के सूचना का प्रसार, ज्ञान का प्रसार, विभिन्न दृष्टिकोणों का प्रसारण, बहस करना और अपने विचार बनाना और उन्हें व्यक्त करना, एक स्वतंत्र और सभ्य समाज के मूल संकेतक भी हैं। अपने स्वयं के विचारों और विचारों को उचित आधार पर तैयार करने और एक स्वतंत्र समाज में अपने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अधिकारों का एक सम्मानपूर्वक तरीके से प्रयोग करने के लिए, जनता को संविधान ने, विभिन्न मौलिक अधिकार दिए हैं।" 

कोर्ट ने आगे कहा कि 
" हिंदू धर्म सबसे पुराने और सबसे सहिष्णु धर्मों में से एक है और हिंदू धर्म के अनुयायी भी सहिष्णु हैं। हिंदू धर्म इतना सहिष्णु है कि इसके अनुयायी गर्व से संस्था/संगठन/सुविधाओं का नाम अपने पवित्र देवी, देवताओं के नाम पर रखते हैं। बड़ी संख्या में हिंदू गर्व से अपने बच्चों का नाम अपने पवित्र भगवान के नाम पर रखते हैं। कॉर्पोरेट मंत्रालय की वेबसाइट  मामलों, भारत सरकार से पता चलता है कि पवित्र हिंदू भगवान या देवी के नाम पर कई कंपनियां भी पंजीकृत हैं। इसलिए किसी संस्थान, सुविधा या संगठन या बच्चे का नाम हिंदू देवता के नाम पर रखना, आईपीसी की धारा 153ए और 295ए का उल्लंघन नहीं है, जब तक कि ऐसा द्वेष/दोषी इरादे से नहीं किया जाता है। कथित कृत्य अपराध की श्रेणी में तभी आते हैं, जब यह दोषी इरादे से किया गया हो।"

इस पहलू पर कि जुबैर ने वर्ष 1983 में रिलीज़ हुई एक फिल्म "किसी से ना कहना" के दृश्य की तस्वीर पोस्ट की थी, अदालत ने इस पर कहा, 
"इस फिल्म को केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड द्वारा प्रमाणित किया गया था, जो भारत सरकार का एक वैधानिक निकाय है और तब से जनता के देखने के लिए उपलब्ध है। आज तक एक भी कोई शिकायत दर्ज नहीं की गई है कि, फिल्म के उक्त दृश्य से किसी व्यक्ति या समुदाय को चोट पहुंची है या आहत हुआ हो।"
कोर्ट ने कहा कि,
"सभी सबूत दस्तावेजी प्रकृति के थे और जुबैर को पहले ही पांच दिनों की पुलिस हिरासत में लिया गया था और अब वह न्यायिक हिरासत में है।  इसलिए, कोर्ट का विचार है कि, आगे और पूछताछ की अब, आवश्यकता नहीं है। इसलिए आवेदक/अभियुक्त को सलाखों के पीछे रखने से कोई उपयोगी उद्देश्य अब नहीं रहा।"
जुबैर को 27 जून को गिरफ्तार किया गया था और तब से वह हिरासत में है।  मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट स्निग्धा सरवरिया द्वारा 2 जुलाई को जमानत देने से इनकार करने के बाद उन्होंने सत्र न्यायालय में अपनी जमानत की अर्जी दाखिल की थी।

उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए आईपीसी (धर्म आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना) और धारा 295 आईपीसी (किसी भी वर्ग के धर्म का अपमान करने के इरादे से पूजा स्थल को नुकसान पहुंचाना या अपवित्र करना) के तहत गिरफ्तार किया गया था। बाद में, 295A आईपीसी, 201 और 120बी आईपीसी की धाराएं और बढ़ाई गई। 

जुबैर के खिलाफ विदेशी अंशदान (विनियमन), एफसीआरए अधिनियम, 2010 की धारा 35 लागू की गई थी। जुबैर के खिलाफ एफसीआरए के 35 में, कोर्ट ने पाया कि, जुबैर ने हर लेनदेन का रिकॉर्ड रखा है जो उसकी वेबसाइट (ऑल्ट न्यूज़) पर यह विशेष रूप से मौजूद है। उसने केवल भारतीय बैंक खातों वाले भारतीय नागरिकों से ही आर्थिक योगदान लिया है।  अदालत ने कहा, 
"यह कहा गया है कि आरोपी ने किसी भी विदेशी योगदान की प्राप्ति को रोकने के लिए सभी सुरक्षा उपाय किए हैं। आरोपी द्वारा रिकॉर्ड पर रखी गई सामग्री प्रथम दृष्टया एफसीआरए की धारा 39 के अनुसार उसके द्वारा किए गए उचित परिश्रम को दर्शाती है।"
यह लेख, लाइव लॉ, बार एंड बेंच और अन्य मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर है। 

(विजय शंकर सिंह)

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