Thursday 21 July 2022

मंजर जैदी / भारत के वह ऐतिहासिक स्थल जो अब पाकिस्तान में हैं (13)

खेवड़ा नमक की कान (2)
 

थोड़ी देर में 8 डब्बे की रेल ट्रैक पर चलने वाली छोटी गाड़ी आ गई। हम उस में बैठकर पहाड़ी के अंदर सुरंग में चले गए। एक चौड़े से स्थान पर ले जाकर हमें उतारा गया। हमें विशेष तवज्जो दी गई और हमारे साथ एक कर्मचारी को कर दिया गया। वह हमें विभिन्न अद्भुत वस्तुएं में दिखाता रहा। एक स्थान पर नमक के पत्थरों की खोखली ईंटें बनाकर उनसे छोटी थी मस्जिद बनाई गई थी। ईटों के अंदर बल्ब जलने के कारण पिंक और लाल रंग की ईंटें चमक रही थी। एक अन्य स्थान पर नमक की ईंटों की मीनार बनाई गई थी जिसमें लगी खोखली ईंटों के अंदर भी बल्ब लगाए गए थे जिस से विभिन्न रंगों की ईंटें चमक रही थी। सुरंग की छत और दीवारें सफेद, लाल और पिंक रंगों की बहुत सुंदर लग रही थी। कई स्थानों पर दीवारों और छत पर विभिन्न रंगों के नमक के टुकड़े लटके दिखाई दिए। कहीं कहीं सुरंग की छत से पिघलती हूई मोमबत्ती के मोम की तरह से नमक की पतली पतली सलाइयां लटकी हुई थीं। एक तरफ सुरंग में एक दरवाजा दिखाई दिया जिसमें ताला लगा हुआ था तथा वहां हर किसी को जाने की अनुमति नहीं थी। 

हमारे साथ जो व्यक्ति था उसने उसका ताला खोला। अंदर का दृश्य देखकर हम चकित रह गये। वहां सुरंग की दीवारों और छत पर विभिन्न रंगों के नमक के क्रिस्टल जगमगा रहे थे जिन से विभिन्न रंगों की रोशनी निकल रही थी। सुरंग में एक स्थान पर बहुत बड़ा तालाब जैसा गड्ढा बना हुआ था जिसमें पानी भरा था जिसका स्वाद नमकीन था। सुरंग में एक स्थान पर नमक की ईंटों की बनी हुई चार सीढ़ियां दिखाई दीं जिनके सामने जलपान गृह था। यहां से कुछ व्यक्ति खाने पीने का सामान लेकर खा रहे थे। 

हम सीढ़ियों पर बैठकर विश्राम करने लगे। लगभग एक घंटा सुरंग के अंदर रहने के पश्चात हम उसी रेल की पटरी पर चलने वाली गाड़ी से बाहर आ गए। नमक की खान के अंदर जाने का बड़ा अद्भुत और अनोखा अनुभव प्राप्त हुआ। बाहर छोटा सा बाजार था जिसमें दुकानों पर नमक के पत्थरों की बनी हुई विभिन्न प्रकार की वस्तुएं मिल रही थीं, जिसमें बिजली के लैंप की संख्या अधिक थी। 

लैंप  अंदर से खोखले बनाए गए थे जिनके अंदर बल्ब जलने से पिंक रंग का पत्थर होने के कारण पिंक रोशनी निकल रही थी। हमने भी एक छोटा लैंप और कुछ अन्य वस्तुऐं खरीदीं। यद्यपि लैंप की बहुत देखभाल करना पड़ती है क्योंकि बरसात के दिनों में बल्ब जलने के पश्चात भी पानी की नमी के कारण  नमक पिघलता रहता है और लैंम्प का आकार छोटा होता रहता है। वहां से   निकल कर हम वापस फिर मोटर-वे पर आ गए।  

मोटर-वे पर एक मोटल पर रुक कर दोपहर का खाना खाया और कार में गैस  भरवाई। रास्ते में हमें बताया कि लाहौर के रास्ते में मोटर-वे से केवल 25 किलोमीटर की दूरी पर 'चकवाल' जिले की तहसील 'कल्लर कहार' में देखने योग्य कई स्थान है जिनमें 'पीकॉक गार्डन' व स्वच्छ पानी की सुंदर झील के अतिरिक्त 'तख्ते बाबरी' भी है। 1519 ईस्वी में शहंशाह बाबर ने काबुल से दिल्ली की ओर जाते समय इसी स्थान पर विश्राम किया था तथा पत्थर का एक तख्त बनवाया था, जिसे 'तख्ते बाबरी' कहते हैं जिस पर बैठकर उसने अपनी फौज को संबोधित किया था। इसी स्थान पर बाबर ने एक बगीचा भी लगवाया था जो' बागे़-सफा' के नाम से है। बाबर ने इस स्थान को स्वच्छ जल वायु वाला  प्राकृतिक सुंदरता का प्रतीक कहा था। 

कुछ समय पश्चात हम उस स्थान पर पहुंच गए। वहां की जलवायु, वातावरण और प्राकृतिक सुंदरता वास्तव में बहुत आनंदमय थी। स्वच्छ पानी की बहुत बड़ी झील के पास पहुंचकर नाव में बैठे बगैर ना रह सके।नाव अति सुंदर बनाई गई थी जिसके ऊपर छत भी थी। नाव वाले ने झील का एक चक्कर लगवाया। सामने पहाड़ों का दृश्य मन को लुभा रहा था। हमने अपना एक हाथ पानी में डाल दिया। पानी में मछलियां उछल उछल कर हाथों में आकर फिसल रही थीं। वहां से निकलकर पीकॉक गार्डन में आए जहां विभिन्न प्रकार के अति सुंदर मोर दिखाई दिए। एक सफ़ेद मोर खुशी से नाच रहा था। । 

गार्डन से निकले तो काफी समय हो गया था और शाम हो गई थी। सामने एक छोटी सी पहाड़ी पर रेस्टोरेंट् था जहां जाकर समोसे और पकोड़े खाए और कॉफी पी। यहां पर हर वस्तु मीट से तैयार की गई थी जैसे समोसे में आलू के स्थान पर मटन का कीमा भरा हुआ था। आलू व प्याज के पकौड़ो के स्थान पर चिकन के पकोड़े थे। यहां से उठकर हम लोग  तख्ते बाबरी और बगीचे की ओर चल दिए जो शहंशाह बाबर के द्वारा बनवाया गया था। बगीचा काफी घना था और इसमें विभिन्न प्रकार के पेड़ और सुंदर फूलों के पौधे लगे हुए थे। कार के अंदर बैठे बैठे ही इस स्थान का भ्रमण किया और वापस मोटर-वे पर आ गए। लाहौर पहुंचते-पहुंचते रात हो चुकी थी। अतः रात में लाहौर में विश्राम किया।
(जारी) 

मंजर ज़ैदी
© Manjar Zaidi

भारत के वह ऐतिहासिक स्थल जो अब पाकिस्तान में हैं (12)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/07/12.html 

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