Sunday 17 July 2022

मंजर जैदी / भारत के वह ऐतिहासिक स्थल जो अब पाकिस्तान में हैं (11)

गुरुद्वारा श्री पंजा साहब ~

तक्षशिला से गुरुद्वारा जाते समय हमें बताया गया कि  खानपुर में पंजाब के प्रसिद्ध माल्टों के बहुत से बाग़ हैं।  क्योंकि खानपुर में डैम बना है अतः इस क्षेत्र में पानी काफी मात्रा में उपलब्ध होने के कारण मालटे की पैदावार अधिक होती है। यह निर्णय हुआ कि बाग़ में जाकर ताजे मालटे खाऐं । एक बाग़ के किनारे कार रोक दी गई। खेतों में बनी पगडंडियों पर चलते हुए तथा कहीं-कहीं पानी की नालियों को फलांगते हुए किसी  तरह बाग़ में पहुंच गए। वहां बाग़ के स्वामी कुछ अन्य व्यक्तियों के साथ चारपाइयों पर बैठे थे। यह जानकर कि हम इंडिया से आए हैं बाग़ के स्वामी ने हमारा ज़ोरदार स्वागत किया और बांस और बान से बनी हुई चारपाइयों पर हमें बैठाया। उन्होंने हम लोगों से कहा कि आप स्वयं पेड़ों से मालटे तोड़ कर खा सकते हैं। उन्होंने हमें मालटे  काटने के लिए चाकू भी उपलब्ध करा दिए। यद्यपि बहुत से मालटे जमीन पर भी गिरे हुए थे परंतु हमने पेड़ों से मालटे तोड़कर खाना उचित समझा।  

वैसे भी पेड़ों पर इतना नीचे मालटे लगे हुए थे कि उन्हें हाथ से आसानी से तोड़ा जा सकता था। मालटे मौसमी की तरह के थे मगर देखने में लाल और खाने में मौसमी से अधिक स्वादिष्ट थे।  हमने खूब मालटे तोड़े और दिल भर कर खाए। चलते समय जब हमने उन्हें माल्टो की कीमत देनी चाही तो उन्होंने यह कह कर लेने से मना कर दिया कि आप इंडिया से आए हैं, हमारे मेहमान हैं इसलिए आपसे कीमत नहीं लेंगे। यद्यपि हमें अच्छा नहीं लगा परन्तु उनके स्नेह और प्रेम को देखते हुए हम चुप रहे और उनसे विदा होकर बाग़ से बाहर आ गये। 

बाग से निकलकर हम पेशावर जाने वाली जीटी रोड से होते हुए हसन अब्दाल नामक शहर में पहुंच गए जहां पर गुरुद्वारा स्थित है। यह शहर रावलपिंडी से 45 किलोमीटर की दूरी पर है तथा इस की समुद्र तल से ऊंचाई 1150 फीट है। घनी आबादी वाले शहर में जगह-जगह टूटी हुई सड़कों पर यात्रा करके किसी प्रकार गुरुद्वारे तक पहुंच गए। रास्ते में सड़कों पर काफी सिख दिखाई दिए। गेट पर पहुंचकर यहां भी वही समस्या आई जो लाहौर में गुरुद्वारा डेरा साहब में आई थी अर्थात हमें गुरुद्वारे में जाने से रोक दिया गया। यहाँ भी सिख भाइयों को हमने बताया कि हम भारत से आए हैं  जहां किसी भी गुरुद्वारे में किसी के जाने के पर कोई पाबंदी नहीं है।  उन्होंने बताया कि यहां सुरक्षा को देखते हुए सरकार ने यह पाबंदी लगाई हुई है। उनसे काफी अनुरोध करने पर हमें अंदर जाने दिया गया। 

वहां उपस्थित कुछ सिखो से वार्ता की गई। उन्होंने बताया कि गुरु नानक देव जी, भाई मरदाना जी के साथ बैसाख संवत 1578 में अर्थात 1656 ईस्वी में गर्मी के दिनों में हसन अब्दाल आए थे। गुरुद्वारे के अंदर एक पत्थर पर गुरु नानक देव जी के हाथ का चिन्ह है इसी कारण इसे गुरुद्वारा पंजा साहब कहते हैं। गुरुद्वारे का निर्माण 1830 ईस्वी में सिख शासक के प्रसिद्ध जनरल हरि सिंह नलवा द्वारा कराया गया था। वर्ष में दो बार देश विदेश से बहुत से यात्री यहां दर्शन करने आते हैं। वैशाखी के अवसर पर बहुत बड़े मेले का आयोजन किया जाता है। उन्होंने बताया कि मेले के अवसर पर सरकार  द्वारा सुरक्षा आदि की उचित व्यवस्था की जाती है। हमने उनसे पूछा कि गुरुद्वारे के बाहर जो बोर्ड लगा है उस पर गुरुद्वारा श्री पंजा साहब उर्दू और गुरुमुखी में लिखा है। इसके अलावा भी छोटे-छोटे जो बोर्ड लगे हैं उन पर भी उर्दू में लिखा हुआ है। 

क्या आप लोगों को उर्दू पढ़ने में कोई दिक्कत या ऐतराज होता है? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि हमारे बुजुर्ग मुल्क के बंटवारे से पहले भी उर्दू पढ़ते थे। सिखों का तो इंडिया में भी उर्दू में बहुत योगदान रहा है। भारत के पंजाब से सिख पत्रकार उर्दू के अखबार और मैग्जीन भी निकालते रहे हैं। कुंवर महेंद्र सिंह बेदी और कुंवर राजेंद्र सिंह बेदी के अतिरिक्त अन्य कितने ही सिखों का भारत में उर्दू शायरी और उर्दू साहित्य में बहुत नाम है।
(क्रमशः) 

मंजर ज़ैदी
Manjar Zaidi

भारत के वह ऐतिहासिक स्थल जो अब पाकिस्तान में हैं (10) 
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/07/10_17.html 
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