Wednesday 6 July 2022

कनक तिवारी / हिन्दू, हिन्दुत्व, सेक्युलरिज़्म और मुसलमान (8)

धर्मनिरपेक्षता में कितने पेंच ~

(1) संविधान सभा की तीन वर्षों चली बहस में कई सदस्यों ने इतिहास और संस्कृति को भाषणों में आत्मसात करते ‘धर्म निरपेक्षता‘ (सेक्युलरिज़्म) को संवैधानिक लोकतंत्र का आचरण घोषित किया था। दक्षिणपंथी वैचारिक सेक्लुरिज़म को लेकर कितना ही बावेला मचाएं तथा संविधान ‘धर्म निरपेक्षता‘ के बदले ‘पंथ निरपेक्षता‘ को अपने माथे पर यश की तरह टांक चुका। सच तो यही है कि देश का अब शासकीय या राजधर्म नहीं है। संविधान धर्मों से तटस्थ है। सबमें शामिल है अथवा केवल संरक्षक है? संविधान की समझ में धर्म के कई चेहरे हैं। मसलन सभी धर्मों को मानने या न मानने की संवैधानिक आज़ादी और  तरह तरह की गारण्टियां हैं, लेकिन उनको अप्रत्यक्ष सरकारी प्रोत्साहन भी। इसमें शक नहीं कि हिन्दुस्तान के दो मुख्य अल्पसंख्यक इस्लाम और ईसाई प्रसरणशील धर्म हैं। इस्लामी शासकों की गुलामी स्वीकार करने के कारण भारत में बड़े पैमाने पर धर्मपरिवर्तन हुए। 

(2) भारत दुनिया में करीब सबसे ज़्यादा मुस्लिम आबादी का भी देश है। इनमें ज्यादातर लोग अरब या अन्य पश्चिम एशियाई मुल्कों से नहीं आए हैं। वे सब भारतीय भी रहे हैं। राजनीतिक और सांस्कृतिक हमलों के साथ साथ भारत में ईसाईयत ने भी पैर पसारे। इनमें भी अधिकांश भारतीय हैं। कई मुसलमान हिन्दू परंपराओं में बिन्धे भी हैं। पंथनिरपेक्षता अमरबेल नहीं हो, लेकिन सामासिक संस्कृति के बिना भारतीय जीवन मरुस्थल है। मुसलमान के भारतीयकरण का नारा आजादी के बाद से ही बुलंद होता उसका अर्थ हिन्दूकरण रहा है। मुसलमानों के हिमायती भी इस तिलिस्म में उलझ गए। मुसलमान का सामासिक-सांस्कृतिक-हिन्दूकरण तो हो ही चुका है। भाषा, बोली, लोककलाएं, तीजत्यौहार, परंपराएं, रूढ़ियां, खानपान, वेशभूषा और जीवन की समग्र उत्सवधर्मिता राष्ट्रीय अस्तित्व के मजबूत किले के प्रमुख द्वार हैं। कबीर, रहीम, रसखान, जायसी आदि मध्यकालीन कवियों से कौन ज्यादा भारतीय संस्कृति, सामासिकता और राष्ट्रीयता सामाजिक एकत्व को रेखांकित कर पाया है! 

(3) अपनाया गया सेक्युलरवाद यूरोपीय कोख का है। उसका शब्दकोषीय अर्थ है जो दुनिया जहान से जुड़ा हो लेकिन दुनिया के परे या धार्मिक या मठवादी स्वभाव का नहीं हो। वह ऐसा अहसास है जिसका संगठित धर्म के विषयों से संबंध नहीं है। सेक्युलरवाद धर्म से अलग थलग स्वायत्त परिकल्पना है। संविधान की उद्देशिका में कई कारणों से सेक्युलरवाद शब्द को शामिल नहीं किया जा सका। के. टी. शाह ने सेक्युलर शब्द को रखने की तीन बार कोशिशें कीं। डाॅ. अम्बेडकर के विरोध के कारण शाह का प्रस्ताव हर बार खारिज कर दिया गया। मुमकिन है अंबेडकर का सोच हो कि सेक्युलर शब्द रख देने से भारत को ईसाई देशों की तरह धर्म विरोधी प्रचारित करने की स्थिति पैदा हो सकती है। सेक्युलर शब्द रख देने से संविधान को भारतीय सांस्कृतिक इयत्ता से असंगत भी समझा जा सकता था। डाॅ. राधाकृष्णन ने अधिकारपूर्वक कहा था सेक्युलरवाद धर्म विरोधी परिकल्पना नहीं है। राज्य किसी एक मजहब के साथ खुद को संबद्ध नहीं करता। उसका विश्वास सभी मजहबों में है। संविधान रचयिता बहुधर्मी और बहुआयामी सांस्कृतिक समाज के भारतीय इतिहास से बाखबर थे। ऐसे समाज में मतभेद, सरफुटौव्वल और विग्रह के तमाम स्पेस होने के बावजूद एक अबूझ, अदृश्य लेकिन अनुभूत सामाजिक सहमति समाज का स्वभाव रही है। ऐसी सहमति संरक्षक-चरित्र की होने से उसके छाते तले प्रत्येक धर्म, विचार और विश्वास के फलने फूलने की गुंजाइश होती रही है। यह पेचीदी दिखती जीवित रही है, काल्पनिक नहीं। बहुलतावादी समाज को ऐसी कई चुनौतियों का सामना करना होता है। वे जुदा जुदा परंपराएं, इतिहास, जीवन शैलियां, देश या समाज के आंतरिक जीवन को गहरे तक प्रभावित करती हैं। मतभेद गहरे भी हो जाते हैं। साथ साथ उन्हें सर्व सामान्य हल की खोज भी करनी होती है। 

(4) मजहबी द्वन्द्व के नाजुक क्षणों में हर मजहब बल्कि समाज के कठमुल्लातत्व खलनायकी का बैठे बिठाए मिला मौका हाथ से नहीं जाने देते। संविधान निर्माताओं में कइ आज़ादी की जद्दोजहद में एक साथ बौद्धिक तथा जुझारू सैनिक होने का मर्तबा हासिल किया था। उन्होंने धर्मों के नैसर्गिक तत्वों को मिलाकर आज़ादी की जद्दोजहद के लिए सर्वभाषिक सांस्कृतिक माहौल भी तैयार किया था। जवाहरलाल नेहरू जैसे पश्चिम प्रभावित बौद्धिक समझे जाने वाले विचारक ने देशज विचारों, परंपराओं, धर्मों और विश्वासों की पृष्ठभूमि में सेक्युलरवाद की यूरोपीय परिकल्पना को समझाने की कोशिश की थी। महात्मा गांधी ने सादगी भरी भाषा में मनुष्य धर्म को एक वृक्ष के रूप में समझाया था, जिसकी कई डालियां और पत्तियां आदि हो सकती हैं। उनका अकाट्य तर्क था कि भारत की बहुलांश जनसंख्या का पैतृक धर्म दावा नहीं करता कि मनुष्य की मुक्ति के लिए हिन्दू धर्म का रास्ता ही अकेला है। बहुलतावादी समाज में आपसी सहिष्णुता के बगैर सेक्युलरवाद को समझा नहीं जा सकता। धर्म, विश्वास, जाति वगैरह से परे हटकर वैयक्तिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय तथा हर तरह की बराबरी और अवसर को प्रत्येक मनुष्य के लिए उपलब्ध कराया गया।
( जारी )

कनक तिवारी
© Kanak Tiwari

हिन्दू, हिन्दुत्व, सेक्युलरिज़्म और मुसलमान (7) 
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/07/7.html 
#vss

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