Friday 4 October 2019

पर्यावरण - बाइक का धुआं, धुंआ, और अडानी की चिमनी का धुआं ऑक्सिजन ! / विजय शंकर सिंह

अभी नया मोटर वेहिकिल एक्ट 2019 सरकार ने पास किया है जिसमे प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों पर भारी अर्थदंड लगाया गया है। पर्यावरण एक वैश्विक समस्या है और दुनिया निश्चित ही मौसम बदल की समस्या से आज रूबरू है। अंटार्कटिका के ग्लेशियर पिघल रहे हैं, नदियों में या तो पानी की कमी हो जा रही है या, अचानक बाढ़ आ जा रही है। बरसात में गर्मी पड़ रही है और शरद ऋतु में मानसून आ जा रहा है। यह सब भविष्य के लिये बेहद चिंताजनक परिवर्तन हैं। नए मोटर वेहिकिल एक्ट में प्रदूषण पर भारी जुर्माना इन्ही सब चिंताओं से निपटने के लिये एक सख्त कदम है।

पर वाहनों से जितना प्रदूषण नहीं फैलता, उससे अधिक प्रदूषण बड़ी बड़ी फैक्ट्रियां फैलाती है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का गठन भी औद्योगिक प्रदूषण रोकने के लिये किया गया है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), एक सांविधिक संगठन है। इसका गठन जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के अधीन सितंबर, 1974 में किया गया था। इसके अलावा, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम,1981 के अधीन भी शक्तियां और कार्य सौंपे गए। यह पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के लिये एक फील्ड संघटन का काम करता है तथा मंत्रालय को पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के उपबंधों के बारे में तकनीकी सेवाएं भी प्रदान कराता है।

वायु (प्रदूषण, निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम,1981 के अंतर्गत गठित वायु गुणवत्ता की निगरानी, वायु गुणवत्ता प्रबन्धन का एक महत्वपूर्ण भाग है। राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम (एनएएमपी) की शुरूआत वायु गुणवत्ता की मौजूदा स्थिति एवं रुझानों को जानने तथा उद्योगों और अन्य स्रोतों से होने वाले प्रदूषण को विनियमित करने के उद्देश्य से की गई है, ताकि वायु गुणवत्ता के मानक प्राप्त किए जा सकें। यह उद्योगों के सामाजिक-आर्थिक एवं पर्यावरण संबंधी प्रभावों के आकलन (इंडस्ट्रियल सिटिंग) एवं शहरी आयोजना के लिए जरूरी पृष्ठभूमि वायु गुणवत्ता डाटा भी उपलब्ध कराता है।

अडानी ग्रुप की कोयले से चलने वाले थर्मल बिजली घर, अक्सर प्रदूषण के कारण, प्रदूषण बोर्डो के निशाने पर रहते हैं। बोर्ड ने प्रदूषण को कम करने के लिये जहरीली गैस नाइट्रोजन ऑक्साइड की सीमा 300 मिलीग्राम प्रति / सामान्य क्यूबिक मीटर तय कर रखी है। पर अडानी ग्रुप के थर्मल बिजली घर इस निर्धारित उत्सर्जन से अधिक, यह जहरीली गैस छोड़ रहे हैं। होना तो यह चाहिये कि सरकार, अडानी ग्रुप को उत्सर्जन के निर्धारित मानक से अधिक गैस उत्सर्जन पर रोक लगाती और कानूनों के उल्लंघन पर ग्रुप को दंडित करती, पर सरकार ने बजाय पर्यावरण के हित के लिये  बनाये गये नियमो और मानकों को लागू करने के बजाय, अडानी ग्रुप के लिये इन मानकों को ही बढ़ा दिया।

जनसत्ता ने विस्तार से इस मामले पर अपनी रपट छापी है। अखबार के अनुसार,' केन्द्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने कोयले से चलने वाले थर्मल पावर प्लांट्स से होने वाले वायु प्रदूषण के तय मानकों को बढ़ाने को मंजूरी दे दी है। मंत्रालय ने बीती 17 मई, 2019 को मंत्रालय के संयुक्त सचिव रितेश कुमार सिंह की अध्यक्षता में हुई बैठक में यह फैसला लिया। '

द वायर की एक रिपोर्ट के अनुसार, ' नए नियमों के अनुसार, अब थर्मल पावर प्लांट्स से निकलने वाली जहरीली गैस नाइट्रोजन ऑक्साइड की सीमा 450 मिलीग्राम / नॉर्मल क्यूबिक मीटर,कर दी गई है, जबकि पहले यह सीमा 300 मिलीग्राम / नॉर्मल क्यूबिक मीटर थी। ' मानक बढ़ाने के इस फैसले का विरोध, सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी ) द्वारा भी किया गया था, लेकिन सरकार के दबाव में प्रदूषण के मानकों को बढ़ाने का निर्णय कर दिया गया। 

यह भी कहा गया है कि, सीपीसीबी ने पर्यावरण मंत्रालय की बैठक से पहले देश के 7 थर्मल पावर प्लांट का निरीक्षण किया था। इस निरीक्षण में 7 में से सिर्फ 2 यूनिट में तय मानकों से अधिक उत्सर्जन और  प्रदूषण हो रहा था। उल्लेखनीय है कि जिन दो यूनिटों में तय मानक से ज्यादा उत्सर्जन और  प्रदूषण हो रहा था, वो दोनों ही यूनिट अडानी पावर राजस्थान लिमिटेड के स्वामित्व वाली थीं। यूनिटों का निरीक्षण सीपीसीबी और ऊर्जा मंत्रालय की सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी  अथॉरिटी (CEA) द्वारा मिलकर किया गया था।

थर्मल बिजलीघर से होने वाली जहरीली गैस के उत्सर्जन का मानक,  पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 7 दिसंबर, 2015 को तय किया गया था, जो  300 मिलीग्राम / नॉर्मल क्यूबिक मीटर था। इस मानक के लिये साल 2003 से साल 2016 के बीच लगने वाले थर्मल पावर प्लांट के उत्सर्जन पर अध्ययन किया गया था। अध्ययन के बाद 300 मिलीग्राम / क्यूबिक मीटर से अधिक उत्सर्जन को प्रदूषण के लिए हानिकारक पाया गया था। थर्मल बिजलीघर को यह निर्देष दिया गया था कि वे हर हाल में इस सीमा से अधिक गैस उत्सर्जित न होने दें।

लेकिन अब केवल अडानी ग्रुप के दो बिजली घरो को राहत पहुंचाने के लिये सभी थर्मल बिजली घरों के उत्सर्जन मानक बढ़ा दिए गए हैं। द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, सीपीसीबी और सीईए के निरीक्षण में पता चला था कि अडानी पावर प्लांट की राजस्थान स्थित दोनों यूनिट्स से 509 mg/nm3 और 584 mg/nm3 नाइट्रोजन ऑक्साइड निकल रही थी, जो कि तय मानकों से काफी ज्यादा थी। वहीं बाकी के पावर प्लांट्स द्वारा तय मानकों के तहत ही जहरीली गैस छोड़ी जा रही थी।

उल्लेखनीय है कि नाइट्रोजन ऑक्साइड गैस लोगों में सांस संबंधी बीमारी पैदा करती है और इसकी अधिक मात्रा से फेफड़ों की गंभीर बीमारी हो सकती है। वाहनों के बाद थर्मल पावर प्लांट द्वारा ही सबसे ज्यादा नाइट्रोजन ऑक्साइड गैस छोड़ी जाती है। लेकिन जहां एक ओर वाहनों के लिये प्रदूषण कानून इतने सख्त कर दिए गए हैं और उन्हें सख्ती से लागू भी किया जा रहा है, वही दूसरी ओर बड़े कॉरपोरेट घरानों को पर्यावरण की उपेक्षा करके प्रदूषण नियंत्रण करने के बजाय उन्हें मानकों में ही छूट दे दी जा रही है।

© विजय शंकर सिंह

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