Tuesday 1 October 2019

हाउडी मोदी में, अबकी बार ट्रंप सरकार पर सरकार की सफाई / विजय शंकर सिंह

यह अनोखा नारा था। दुनिया के शायद किसी भी राष्ट्राध्यक्ष ने दूसरे देश की ज़मीन पर वहा के राष्ट्रपति के आगामी चुनाव के संदर्भ में ऐसा गर्मजोशी भरा प्रचार नहीं किया होगा। तालियां बजी। लोगों ने हांथ लहराए। डोनाल्ड ट्रंप भी प्रमुदित हुये। और यह हाउडी का क्लाइमेक्स था। पैसा हज़म, तमाशा खत्म हुआ।

बाद में पता लगा यह तो कुछ गड़बड़ हो गयी। कुछ ऐसा हो गया जो नहीं होना चाहिये था। अगर नरेंद मोदी पीएम के पद पर नहीं होते तो वे ट्रंप के लिये जो चाहते कहते, जैसे चाहते प्रचार करते। पर वह भारत के पीएम हैं। वह आयोजन भारत के पीएम के लिये आयोजित है। जो विरोध, कश्मीर आदि मामलों पर बाहर हो रहा था, वह उनके सरकार के प्रमुख होने के नाते हो रहा था। ऐसे में उनके द्वारा कही गयी एक एक बात देश के द्वारा कही गयी बात थी। पर जो हो गया सो तो हो गया।

कूटनीति में सफलता का सबसे बड़ा मंत्र है एक अच्छा श्रोता होना और बहुत ही कम बोलना। मितभाषी होना हमारे यहां वैसे भी एक गुण माना गया है। यह बात अगर सही हो कि मोदी जी की ट्रंप से बहुत अच्छी पटती है, और वे यह चाहते हैं कि डोनाल्ड ट्रम्प दुबारा चुन कर आये, तो ऐसी इच्छा पालने में कोई हर्ज नहीं है। पर हर्ज तब है जब वे एक संवैधानिक पद पर आसीन हैं और एक सरकारी यात्रा पर आए हैं और ट्रंप के चुनाव के लिये अबकी बार ट्रम्प सरकार की कामना कर रहे है ।

हमारे प्रधानमंत्री जी की सभी अमेरिकी राष्ट्रपतियों से अच्छी पटती रही है। में 2014 के बाद के अब तक के दोनों राष्ट्रपति के बारे में कह रहा हूँ। बराक ओबामा तो उनके घनिष्ठ मित्र हैं ही। यह नहीं पता कि बराक ओबामा के सत्ता से हट जाने के बाद जब अमेरिका में मोदी गये हैं तो, उस मित्र से मिलने और खैर खबर लेने गए कि नही, जिसजे बारे में उन्होंने खुद ही यह कहा था कि, बराक से उनकी केमिस्ट्री  बहुत मिलती है। गये भी होंगे तो यह कोई अचरज की बात नहीं है। बहरहाल यह तो तय है कि मोदी जी की दोस्ती दोनों ही सर्वोच्च अमेरिकी नेताओ से अच्छी है। कूटनीतिक रिश्ते अगर निजी रिश्तों में ढल जाते हैं तो उसका लाभ भी बहुत होता है।

जब कोई सरकारी अफसर, मंत्री बनता है तो वह अफसर से राजनीति का जो रूपांतरण होता है उसमें जल्दी नहीं फिट बैठ पाता । धीरे धीरे उसे रूपांतरित होने में समय लगता है। जब किसी विभाग का अफसर उसी विभाग का मंत्री बन जाता है तो अफसर और मंत्री के अधिकार, शक्तियों और हावभाव में जो अंतर होता है उसे अफसर जल्दी नहीं भर पाता है। थोड़ा समय लगता है। एस जयशंकर सर देश के विदेश सचिव थे और अब वे मंत्री हैं। उन्हें कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय कानून, नियम, परंपराओ, आदि का व्यापक अनुभव है। कूटनीतिक दस्तावेज में कॉमा, फूल स्टॉप आदि पंक्चुएशन भी बारीकी से देखे जाते हैं। इसके अर्थ, कूटार्थ भी समझे जाते हैं। उन्हें लगा यह गलती हो गयी कि पीएम ने कह दिया अबकी बार ट्रंप सरकार। इस बयान का कोई अधिक प्रभाव भारत मे नहीं पड़ेगा पर यह बयान अमेरिका की चुनावी राजनीति में महत्वपूर्ण बन सकता हैं इसकी संभावना है।

अब विदेश मंत्री ने सफाई दी। कोई राजनीतिक व्यक्ति होता तो वह जम कर इसका खंडन मंडन और इसे समझा देता। क्योंकि कुछ भी बोलने और फिर पलट जाने और फिर दूसरे अंदाज़ में बोलने का उन्हें हुनर रहता है। अफसर से मंत्री बना हुआ व्यक्ति उन राजनीतिक हुनरों से परिचित तो रहता है पर उन हुनरों में वह इतनी जल्दी पारंगत भी नही  हो पाता। इस पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि,
" जो आपने” हाउडी मोदी” में सुना वह ग़लत सुना । वहाँ मोदी जी ने जयकारा लगाया था “अबकी बार ट्रम्प सरकार” !  उसका वह मतलब नहीं था जो आपने साफ साफ सुना और समझा ! मोदी जी ने ट्रम्प का चुनावी समर्थन नहीं किया। "  !

विदेश मंत्री एस. जयशंकर अपने तीन दिनों के दौरे पर अमेरिका पहुंचे हैं, यहां उन्हें कई कार्यक्रमों में हिस्सा लेना है। इसी दौरान सोमवार को जब जयशंकर से ‘अबकी बार ट्रंप सरकार’  पर सवाल हुआ तो उन्होंने इसपर विस्तार में जवाब दिया। जयशंकर ने बताया कि " ह्यूस्टन में पीएम मोदी ने जो ‘अबकी बार ट्रंप सरकार’ नारे को कहा, दरअसल वह अपने संबोधन में उस बात का जिक्र कर रहे थे कि डोनाल्ड ट्रंप ने इसका इस्तेमाल किया है। "

विदेश मंत्री ने कहा कि " हम अमेरिका की स्थानीय राजनीति में दखल नहीं देते हैं। हमारी नीति यही है कि आपके देश में जो राजनीति होती है, वो आपकी है उससे हमारा लेना-देना नहीं है। जयशंकर ने एक सवाल के जवाब में कहा कि डोनाल्ड ट्रंप ने बतौर राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार 2016 में ‘अबकी बार ट्रंप सरकार’ का इस्तेमाल किया था, जिसे प्रधानमंत्री ने बताया. ऐसे में किसी तरह की गलतफहमी नहीं होनी चाहिए। "

भारत को इस नारे पर दुनियाभर में जगह जगह तमाम तरह की आलोचनाएँ झेलनी पड़ीं । विदेश मंत्रालय इसे दुरुस्त करने में लगा है। पर यह वैसी गोपनीय वार्ता जो अमूमन अकेले में होती है तो थी नहीं कि यह कह कर निकल लिया जाय कि यह बात नही, वह बात थी। एक बड़बोलेपन के कारण प्रधानमंत्री और भारत को ट्रम्प के खेमे में समझा जा सकता है, जबकि भारत ऐसे किसी खेमे में है ही नही।  इसका राजनीतिक लाभ निश्चय ही डेमोक्रेटिक पार्टी लेना चाहेगी। 

हमारे दूतावास और विदेश मामलों के जानकारों ने सरकार को चेताया कि ऐसा करने से हम “पुतिन” की तरह अछूत भी हो सकते हैं और कहीं ट्रम्प हार गये तब ? और ट्रम्प ख़ुद ही अस्थिर चित्त के राजनेता हैं कल किस मसले पर क्या कह दें कोई नहीं जानता ! देश के अंदर अन्य विपक्षी दलों ने भी इसे कूटनीतिक परंपराओ और प्रोटोकॉल के विपरीत बताया। यह अलग बात है कि गोदी मीडिया ने इसे भी एक मास्टरस्ट्रोक बताया और बहस की। लेकिन अंत मे यह तय हुआ कि इस बयान का खंडन कर के इसे शांत किया जाय, तब एस जयशंकर का यह बयान आया।

© विजय शंकर सिंह

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