Friday 4 October 2019

रोल मॉडल न मिलने की उनकी खीज पर तरस खाइए / विजय शंकर सिंह

अगर आप गोडसे अमर रहे कह कर खुश हैं तो बिल्कुल खुश रहें। लेकिन आप अपनी संतान को गोडसे के पथ पर ही चलने के लिये तो प्रेरित बिल्कुल न करें, और आप ऐसा कर भी रहे होंगे।

एक बात मैं दावे से कह सकता हूँ कि  जितना गांधी वांग्मय मैंने पढ़ा है उससे मैं यह समझ पाया हूँ, कि अगर किन्ही कारणों या चमत्कार वश गांधी, गोडसे द्वारा गोली मारने के बाद भी जीवित बच जाते तो वे गोडसे को निश्चय ही माफ कर देते।

गोडसे हत्या का एक अपराधी था। जघन्य कृत्य था उसका। उसे कानून ने दोषी पाया और मृत्युदंड की सज़ा दी। गांधी और गोडसे दोनों का अस्तित्व, अंधकार और प्रकाश की तरह है। गांधी प्रकाश हैं तो गोडसे अंधकार। अब यह गोडसे अमर रहे मानने वालो के ऊपर है कि वे अपनी संतति को कौन सी दिशा देना चाहते हैं।

जो मित्र गोडसे अमर रहे सम्प्रदाय के है, उनपर कोई भी प्रतिक्रिया न दें।  उनकी मजबूरी समझे। संघ को रोल मॉडल की तलाश है। वह भगत सिंह, सरदार पटेल से लेकर सुभाष बाबू तक एक अदद रोल मॉडल की तलाश में भटक रहे हैं। वे अपने रोल मॉडल के खोखलेपन से भी परिचित हैं और भारतीय समाज की उनके प्रति  अस्वीकार्यता का भी उन्हें पर्याप्त ज्ञान है। तभी कभी भी उनके बारे में कोई सार्वजनिक समारोह या सेमिनार आदि आयोजित नहीं करते हैं।

दिक्कत यह है कि जब भी, वह रोल मॉडल  ढूंढते निकलते हैं वहां उन्हें अपनी विचारधारा के विपरीत ही कुछ न कुछ ऐसा मिल जाता है, जिससे वे असहज होने लगते हैं । दुष्प्रचार एक धुंध की तरह होता है। जब धुंध छंटती है तो सब साफ हो ही जाता है। रोल मॉडल का अभाव और नया मनमाफिक रोल मॉडल ढूंढ या न गढ़ पाने की असफलता से वे एक स्वाभाविक खीज से भर जाते हैं। उस खीज पर तरस खाइए, न कि उनका मज़ाक़ उड़ाइये।

बस यह ध्यान रखिये कि हम आप गांधी के पथ पर चले या किसी और के पथ पर चलें, यह हम सबकी अपनी अपनी सोच पर निर्भर है, पर अपराध, घृणा और देश को विभाजित करने वाली सोच के पथ से अपने और अपनी सन्तति को दूर रखे।

© विजय शंकर सिंह

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