Monday 3 September 2018

राम का मंदिर है, तिथि भी वही बताएंगे - मुख्य मंत्री उत्तर प्रदेश - एक प्रतिक्रिया / विजय शंकर सिंह

जब राम को ही अपने मंदिर बनाने की तिथि तय करना था तो संविधान को ताख पर रख कर, आधे देश के शहरों में दंगे भड़का कर, आधे भारत मे कर्फ्यू लगवा कर, सदियों से एक साथ रह रहे लड़ते झगड़ते और फिर एक साथ मिल बैठ कर खाते पीते, कमाते धमाते समाज को आपस मे बांटने की कोशिश क्यों की गयी ?
राम ने तो बिल्कुल ही ऐसा नहीं कहा होगा।

अब एक अयोध्या का प्रसंग या संस्मरण पढ़ लें।
1989, 90 और 91 इन तीनों साल मैंने अयोध्या में दो दो महीने ड्यूटी दी है। कभी शिलान्यास के समय तो कभी रथयात्रा के समय। मैं अयोध्या तो नहीं कभी नियुक्त रहा पर कुछ ऐसा संयोग रहा कि वहां  बहुत बार जाने का अवसर मिला। मैं उक्त अवधि में उप्र राज्य विद्युत परिषद जो अब पॉवर कॉर्पोरेशन कहा जाता है में कानपुर जोन और कैसा जो अब केस्को है और में डीएसपी सतर्कता और प्रवर्तन था । जब कानून व्यवस्था की ड्यूटियों की ज़रूरत होती थी तो हम सब वे अधिकारी जो मुख्य धारा में नियुक्त नहीं थे, अयोध्या भेज दिये जाते थे। इसी कारण, हर साल जब जब अयोध्या गरमाता था तो मेरी ड्यूटी अयोध्या लग जाती थी। उस दौरान अयोध्या प्रकरण गरमाता भी बहुत था। लोगों को लगता था कि बस दो तीन साल में ही बस मंदिर बन जायेगा। प्रचारकों का प्रचार तँत्र सक्रिय था भी। उस समय ड्यूटी भी लंबी लगती थी। लगभग डेढ़ दो माह रहना होता था। वहां कोई समस्या भी नहीं थी। अयोध्या गुलज़ार भी बहुत था। यह वह समय था,  जब  विवादित ढांचा, टूटा नहीं था। उस इमारत में रामलला बिराजमान थे। मंदिर के बाहर एक चबूतरे पर अखंड हरिकीर्तन चल रहा था। पूरा परिसर लोहे की बड़ी बड़ी रेलिंग से घिरा हुआ था। अंदर जाने वाले रास्ते पर एक चैनल गेट लगा था। उसी से हो कर एक गलियारा निकलता था जो मंदिर के गेट तक पहुंचता था। गेट के बायीं तरफ एक टीन शेड था, जहा कुछ कुर्सियां और मेज पड़ी थे। वहीं हमलोग बैठा करते थे। पूरे कैम्पस की पुलिस व्यवस्था को एक पुलिस  अधीक्षक के अधीन रखा गया था। यह जिम्मेदारी यूपी पुलिस के पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह को जो तब एसपी के पद पर थे, दी गयी थी। मेरे पास मंदिर के अंदर जहां गर्भगृह था, वहां की जिम्मेदारी थी। सुबह 8 बजे हम सब वहां आ जाते थे। ड्यूटियां गर्भगृह में आईटीबीपी के जवानों की थी और बाहर सीआरपीएफ, बीएसएफ के लोग थे। बिल्कुल बाहर जहां भीड़ थी वहां पीएसी  के जवान थे। वहां कोई तनाव नहीं रहता था। हम सब दिन भर वहीं रहते थे और फिर रात 8 बजे वापस फैज़ाबाद आ जाते थे। मैं फैज़ाबाद में एक होटल था शान ए अवध, उसी में रुका हुआ था। दिन भर दर्शनथियों की भीड़ लगी रहती थी। उसी में कभी विनय कटियार, अशोक सिंघल जी आदि विश्व हिंदू परिषद के नेतागण भी आ जाते थे। विनय कटियार से मेरा परिचय कानपुर से ही था तो उनसे खूब बातें होती थीं। वे तब भी मंदिर वहीं बनाने पर अड़े थे, और बातचीत बहुत ही दोस्ताने तरीके से होती थी। अक्सर उनके साथ के लोग जो कुछ उग्र स्वभाव के थे इसी बात पर बहस कर जाते थे कि अयोध्या में राम का जन्म मंदिर के अंदर उसी स्थान पर हुआ था, जहां राम लला आज बिराजमान है। मेरे साथ मेरे एक वरिष्ठ अधिकारी अपर पुलिस अधीक्षक मिश्र जी थे जो बहस में निपुण थे। वे विद्वान भी थे। पढ़ने लिखने की रुचि भी उनमें थी। वे बहस करते करते अक्सर तेज बोलने लगते थे, पर वे ऐसा सायास नहीं, करते थे, उनके स्वभाव का एक अंग था।

एक दिन ऐसे ही बैठे बैठे विश्व हिंदू परिषद के कुछ लोगों की बहस हमलोगों से तेज़ हो गयी। बहस ने अकादमिक रूप ले लिया। अयोध्या के अस्तित्व, फिर पुरातत्व,  फिर रामकथा के विभिन्न विषयों पर बहस होने लगी। हम सब भी दिन भर बैठे ही रहते थे और बतकही की आदत थी तो क्या करते। दिन भर बिताना भी था। सुलखान सिंह सर कम बोलते थे। वे ठहरे इंजीनियरिंग के छात्र तो यह कह कर सुनते रहते थे कि मेरा ज्ञान वर्धन हो रहा है। मिश्र जी ही अकेले मोर्चा संभाले रहते थे। बहस में ही विश्व हिंदू परिषद के एक बड़े नेता अचानक उत्तेजित हो उठे कि चाहे राम कहीं जन्मे हों अब वे यहीं जन्मे माने जाएंगे और मंदिर यहीं बनेगा। वे उत्तेजित तो थे, पर गुस्से में नहीं थे। हमारे मिश्र जी ने कहा कि अब आपने सही बात कही है कि आप चाहते क्या हैं। अब अगर स्वयं भगवान राम भी प्रगट होकर यह कह दें कि वे यहां जन्मे नहीं थे तो भी विश्व हिंदू परिषद के लोग उन्हें चुप करा कर कह देंगे कि वे यहीं जन्मे थे। लोग ठहाका लगा कर हंस पड़े। हंसने वालों में वीएचपी वाले भी थे। वातावरण फिर सामान्य हो गया। चाय का एक दौर और चला और नमस्कार कर के सब अपने अपने स्थान के लिये विदा हुए।

यह प्रसंग और संस्मरण अभी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जी के इस बयान पर याद आ गया जब, वे एक सवाल कि राम मंदिर कब बनेगा, के उत्तर में, उन्होंने कहा कि, यह राम का काम है राम ही जानें। उनका यह कथन सुन कर मैं अब सोच रहा हूँ कि, उनका यह विवेक उनके अधिकार संपन्नता की जिम्मेदारी का परिणाम है या, सच मे आज श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर सद्बुद्धि के प्राकटय का । यह भी राम ही जानें तो जानें, मैं नहीं बता पाऊंगा।

© विजय शंकर सिंह

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