Saturday 22 September 2018

22 सितंबर, समाजवादी नेता मोहन सिंह की पुण्यतिथि पर उनका स्मरण / विजय शंकर सिंह

" नमस्कार, एडिशनल साहब बहादुर, आप घर पर हैं । "
" नमस्ते सर, जी भाई साहब घर पर ही हूँ। वैसे भी आज रविवार है। "
" आता हूँ, अभी। चाय पिलायेंगे न । "
" जी, सर, स्वागत है, आइए आइए , मटर की घुघुनी खिलाऊंगा, चाय भी। "
" आता हूँ । "
फोन कट जाता है। मैं अपने फॉलोवर राम विलास को बुलाता हूँ। उससे कहता हूं कि मटर की घुघुरी तैयार कर ले और चाय तथा कुछ नाश्ता। कुछ मेहमान आएंगे।

लगभग आधे घण्टे के भीतर ही, दो गाड़ियां बंगले के गेट से घुसती दिखायी दीं और घर के सामने रुकी। उसमें से मोहन सिंह जी, चेहरे पर अपनी चिर परिचित मधुर मुस्कान लिये। मैंने कहा, प्रणाम भाई साहब। हांथ मिला और उनके तथा उनके साथियों को लेकर मैं आवास के अंदर दाखिल हुआ।

बैठते ही उन्होंने मुझे गौर से देखते और मुस्कुराते हुए कहा कि
" सोचता हूँ कि मैं संसद से अपना इस्तीफा आप को दे दूं। "
मैं थोड़ा हैरान हुआ कि इस्तीफा और मुझे। मैंने कहा कि,
" मुझसे कोई गलती हो गयी है क्या ? और मेरी यह हैसियत कि मैं, सर आप का इस्तीफा लूं । "
" मेरे सांसद रहने का क्या मतलब है  जब आप लोग मेरी बात सुनते ही नहीं हैं। दिल्ली से जब शनिवार को आता हूँ तो लोग घेरे रहते हैं कि एडिशनल साहब कुछ सुनते नहीं है । "
यह बात मोहन सिंह जी ने कही।
मैंने कहा,
" आप तो कुछ कहते भी नहीं है। अगर ऐसा कुछ है जो आप ने कहा हो हमसे छूट गया हो तो ज़रूर बताएं। मैं करता हूँ। "
तब तक चाय और नाश्ता आ गया।

अब उन्होंने कहा कि
" मेरे कुछ क्षेत्र के हैं जो आपसे मिलेंगे अपने शस्त्र लाइसेंस के बारे में, अगर सब कुछ ठीकठाक हो तो उसे रिकमंड कर डीएम के यहां बढ़ा दीजियेगा। "
मैंने कहा बिल्कुल । फिर अन्य बातें हुयी। कुछ सरकारी तो कुछ पारिवारिक। फिर वे चले गए।

यह संस्मरण आज याद आ गया जब बरहज, जहां के मोहन सिंह जी थे , से उन्हीं के परिवार के एक सज्जन ने मुझे याद दिलाया कि आज उनकी पुण्यतिथि है। मोहन सिंह जी को मैंने सबसे पहले बनारस में बीएचयू गेट पर 1973 में सुना था। समाजवादी युवजन सभा का कोई सम्मेलन था। उसके काफी पहले ही वे एक प्रखर छात्र नेता के रूप में प्रसिद्ध हो चुके थे। वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष थे। देश की छात्र राजनीति में एसवाएस का दबदबा था। डॉ लोहिया के विचारों और उनके लेखों की तूती बोलती थी। मेधावी छात्र, छात्र राजनीति में सक्रिय थे। बड़े विश्वविद्यालयों के छात्र संघों का अध्यक्ष होना एक सम्मान और गरिमा की बात होती थी। मैं कभी छात्र राजनीति में तो नहीं रहा पर समाजवादी और वामपंथी साहित्य के प्रति रुझान था और पढ़ने लिखने की आदत होने से पढ़ता रहा। वह आदत आज भी शेष है।

मोहन सिंह जी देवरिया से सांसद थे। उसके पहले वे बरहज से विधायक रह चुके थे। सचेतक भी समाजवादी पार्टी की तरफ से सदन में रह चुके थे। वे जब भी देवरिया आते थे तो मैं उनसे मिलता ज़रूर था। सार्वजनिक जीवन मे सक्रिय रहते हुए भी वे बहुत ही अधिक लिखते पढ़ते रहते थे। डॉ लोहिया के विचारों से वे प्रभावित थे। लोहिया के उक्तियों को वे अक्सर उद्धरित भी करते रहते थे। सरकारी काम मे वे बिल्कुल दखल नहीं देते थे। सिफारिशें भी बहुत कम। पर उनसे मिलकर, बातकर मुझे अच्छा लगता था। देवरिया में उनके परिवार से मेरा आत्मीय संबंध हो गया था। जो अब तक बना हुआ है। देवरिया से तबादले के बाद भी उनसे मेरा मिलना जुलना बना रहा। दिल्ली जब कभी मेरा जाना होता था तो उनसे मिलना भी हो जाता था। आज की राजनीति में प्रबुद्ध और विचारधारात्मक राजनीति का धीरे धीरे लोप हो रहा है। देश के समाजवादी आंदोलन का जब जब भी ज़िक्र चलेगा तो मोहन सिंह बहूत याद आएंगे।

आप उनकी पुण्यतिथि पर उनको सादर नमन तथा विनम्र स्मरण !!

© विजय शंकर सिंह

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