Thursday 6 September 2018

बांग्ला कवि शंख घोष की एक कविता - त्रिताल / विजय शंकर सिंह

तुम्हारा कोई धर्म नहीं है, सिर्फ
जड़ से कसकर पकड़ने के सिवाय
तुम्हारा कोई धर्म नहीं है, सिर्फ
सीने पर कुठार सहन करने के सिवाय
पाताल का मुख अचानक खुल जाने की स्थिति में
दोनों ओर हाथ फैलाने के सिवाय
तुम्हारा कोई धर्म नहीं है,
इस शून्यता को भरने के सिवाय |
श्मशान से फेंक देता है श्‍मशान
तुम्हारे ही शरीर को टुकड़ों में
दुःसमय तब तुम जानते हो
ज्वाला नहीं, जीवन बुनता है जरी |
तुम्हारा कोई धर्म नहीं है उस वक़्त
प्रहर जुड़ा त्रिताल सिर्फ गुँथा
मद्य पीकर तो मत्त होते सब
सिर्फ कवि ही होता है अपने दम पर मत्त

( शंख घोष )
अनुवाद - सु लोचना
***
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध बांग्ला कवि, शंख घोष की प्रमुख रचनाओं में आदिम लता-गुलमोमॉय, सामाजिक नोय, बाबोरेर प्रार्थना, दिनगुली रातगुली और निहिता पातालछाया शामिल हैं। 1932 में जन्मे शंख घोष प्रसिद्ध कवि, समालोचक और शिक्षक रहे हैं। बांग्ला साहित्य को ऊर्जा से भरने के लिए वह जाने जाते हैं। प्रसिद्ध कवि रबिंद्रनाथ टैगौर पर लेखन में उन्हें खासी विशेषज्ञता हासिल है। उन्होंने कविता के क्षेत्र में नए-नए प्रयोग किए हैं। कविता के नए-नए रूपों ने उनकी रचनात्मक प्रतिभा को उभारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी कविताएं समाज को सशक्त संदेश देती है।

शंख घोष को पद्मभूषण के अलावा साहित्य अकादमी पुरस्कार, सरस्वती सम्मान, रबींद्र पुरस्कार और नरसिंहदास पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। इससे पहले बांग्ला लेखकों ताराशंकर, विष्णु डे, सुभाष मुखोपाध्याय, आशापूर्णा देवी और महाश्वेता देवी को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिल चुका है। पहला ज्ञानपीठ पुरस्कार 1965 में मलयालम लेखक जी. शंकर कुरुप को प्रदान किया गया था। पिछली बार 2015 के ज्ञानपीठ पुरस्कार से गुजराती लेखक रघुवीर चौधरी को नवाजा गया था।

कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज से 1951 में उन्होंने बांग्ला भाषा में कला में स्नातक डिग्री हासिल की। यूनिवर्सिटी ऑफ कलकत्ता से उन्होंने मास्टर डिग्री हासिल की। वह शिक्षा से जुड़े रहे हैं। उन्होंने कई शैक्षिक संस्थाओं में अध्यापन किया है, जिसमें यूनिवर्सिटी ऑफ कोलकाता से संबद्ध बंगबासी कॉलेज और सिटी कॉलेज भी शामिल हैं। वह 1992 में जाधवपुर यूनिवर्सिटी से रिटायर हुए थे। वह 1960 में अमेरिका में लोवा राइटर्स वर्कशॉप में शामिल हुए थे। उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी, शिमला में द इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ एडवांस स्टडी और विश्व भारती यूनिवर्सिटी में भी लेक्चरार के रूप में अपनी सेवाएं दी हैं।

© विजय शंकर सिंह

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