Saturday 1 September 2018

राही मासूम रज़ा और उनकी एक कविता - सब डरते हैं, आज हवस के इस सहरा में बोले कौन / विजय शंकर सिंह

सब डरते हैं, आज हवस के इस सहरा में बोले कौन
इश्क तराजू तो है, लेकिन, इस पे दिलों को तौले कौन।

सारा नगर तो ख्वाबों की मैयत लेकर श्मशान गया,
दिल की दुकानें बंद पड़ी है, पर ये दुकानें खोले कौन

काली रात के मुँह से टपके जाने वाली सुबह का जूनून,
सच तो यही है, लेकिन यारों, यह कड़वा सच बोले कौन

हमने दिल का सागर मथ कर काढ़ा तो कुछ अमृत,
लेकिन आयी, जहर के प्यालों में यह अमृत घोले कौन।

लोग अपनों के खूँ में नहा कर गीता और कुरान पढ़ें,
प्यार की बोली याद है किसको, प्यार की बोली बोले कौन।
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राही मासूम रज़ा ( 1 सितंबर, 1925 - 15 मार्च 1992 ) का जन्म गाजीपुर जिले के गंगौली गांव में हुआ था और प्रारंभिक शिक्षा गंगा किनारे गाजीपुर शहर के एक मुहल्ले में हुई थी। बचपन में पैर में पोलियो हो जाने के कारण उनकी पढ़ाई कुछ सालों के लिए छूट गयी, लेकिन इंटरमीडियट करने के बाद वह अलीगढ़ आ गये और यहीं से एमए करने के बाद उर्दू में `तिलिस्म-ए-होशरुबा' पर पीएच.डी. की। पीएच.डी. करने के बाद राही साहब, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़ के उर्दू विभाग में प्राध्यापक हो गये और अलीगढ़ के ही एक मुहल्ले बदरबाग में रहने लगे। अलीगढ़ में रहते हुये राही साहब, साम्यवादी आंदोलन से जुड़े और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के वे सदस्य भी हो गए थे। अपने व्यक्तित्व के इस निर्माण-काल में वे बड़े ही उत्साह से साम्यवादी सिद्धान्तों के द्वारा समाज के पिछड़ेपन को दूर करना चाहते थे और इसके लिए वे सक्रिय प्रयत्न भी करते रहे थे।

लोग कहते हैं उनकी ख्याति प्रसिद्ध लोकप्रिय सीरियल महाभारत के संवाद लेखन के कारण है। यह बात सच है। पर महाभारत के संवाद लेखन के बहुत पहले ही वे हिंदी साहित्य में एक उपन्यास आधा गांव लिख कर प्रसिद्ध हो चुके थे। ऐसा नहीं है कि उन्होंने केवल यही एक उपन्यास लिखा है। पर उनका यह उपन्यास चर्चित बहुत हुआ। उनका यह उपन्यास थोड़ा विवादित भी है। इसका कारण उसकी भाषा और देशज गालियों का प्रयोग। पर जब आप यह उपन्यास पढ़ेंगे तो जिन पात्रों के मुख से ये संवाद कहे गए हैं तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि वे उस स्थान पर ज़रूरी थे। पूर्वाचल के देहात गाजीपुर के गांव का पात्र संस्कृत निष्ठ हिंदी नहीं बोलता।  वह देशज गालियाँ के साथ दोस्ताने बातचीत में देशज गालियों का प्रयोग स्वाभाविक रूप से करता है।  जिस काल खंड को वह उपन्यास अभिव्यक्त कर रहा है उस कालखंड की भाषा वही थी जी राही साहब से लिखी थी। अपने उपन्यास में उन्होंने भारत के सामंती जीवन और आम लोगों की हंसी खुशी, प्यार, दर्द और सुख दुःख को भी चित्रित किया है। उनके उपन्यास आधा गाव ने उस समय के गांव गंगोली में दो विरोधी मुस्लिम मकान मालिक परिवारों की कहानी का वर्णन किया जब भारत स्वतंत्रता प्राप्त कर रहा था।

आधा गाँव का मुख्य विषय यह है कि लोग अलग-अलग - वर्ग और धर्म की परवाह किए बिना- समान भूमि, पानी और भाईचारे के साथ अपने सभी मानवीय गुणों और कमजोरियों के साथ साझा कर रहे थे, लेकिन सांप्रदायिक प्रतिद्वंद्विता विभाजन के समय  इतनी  अधिक हो गयी थी कि वे दरकने लगे थे। आधा गांव में, 1940 के ग्रामीण भारत की एक बहुत बहुआयामी तस्वीर प्रस्तुत की गयीं है जिसमें मुसलमानों और हिंदुओं की एक दूसरे पर निर्भरता ग्रामीण परिवेश में दिखायी गयी है। यह दो जमींदारों या मालिकों और नौकरों के बीच संबंध के रूप में हो सकती है। उपन्यास का विषय यह है कि राजनीति और विभाजनकारी सोच ने पहले हमें दूर कर दिया गया था।  हिन्दू और मुस्लिम एक राष्ट्र थे। पर देश मे लंबे समय तक चले साम्प्रदायिक उन्माद और ज़हर ने भारत का बंटवारा कर दिया। उपन्यास इसी पृष्ठभूमि को ग्रामीण परिवेश, औऱ भाषा मे अभिव्यक्त करता है।

राही मासूम रज़ा का निधन 15 मार्च, 1992 को मुंबई में हुआ। राही जैसे लेखक कभी भुलाये नहीं जा सकते। उनकी रचनायें हमारी उस गंगा-यमुना संस्कृति की प्रतीक हैं जो वास्तविक हिन्दुस्तान की परिचायक है।

© विजय शंकर सिंह

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