Wednesday, 1 February 2023

'पीएम केयर्स फंड एक धर्मार्थ ट्रस्ट है', दिल्ली हाईकोर्ट में केंद्र सरकार / विजय शंकर सिंह


पीएम केयर्स फंड की कानूनी स्थिति पर, दिल्ली हाईकोर्ट में दायर एक याचिका पर सुनवाई चल रही है। उस सुनवाई प्रधान मंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने दिल्ली उच्च न्यायालय को सूचित किया है कि पीएम केयर फंड भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत "राज्य" नहीं है और सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत "सार्वजनिक प्राधिकरण" के रूप में गठित नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 12 में राज्य की परिभाषा दी गई है। पीएमओ ने उसी परिभाषा का उल्लेख किया है।

यह हलफनामा, पीएमओ के अवर सचिव द्वारा दायर किया गया है। हलफनामे में कहा गया है कि, "पीएम केयर्स फंड को एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट के रूप में स्थापित किया गया है और यह भारत के संविधान या संसद या किसी राज्य विधानमंडल द्वारा या उसके तहत नहीं बनाया गया है। इस ट्रस्ट का, न तो, भविष्य में कोई सरकारी मदद लेने का इरादा है, और न ही यह किसी सरकार के स्वामित्व, नियंत्रण से किसी संस्था द्वारा वित्तपोषित ही है।साथ ही, न ही यह सरकार का कोई संसाधन है।"
यानी इस फंड का सरकार से कोई संबंध नहीं है। हलफनामे में आगे कहा गया है कि "ट्रस्ट के कामकाज में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से केंद्र सरकार या किसी भी राज्य सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है।"

हलफनामा में यह भी कहा है कि, "पीएम केयर्स फंड केवल व्यक्तियों और संस्थानों द्वारा स्वैच्छिक दान स्वीकार करता है और यह फंड, सरकार के बजटीय स्रोतों या सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की बैलेंस शीट से आने वाले योगदान को स्वीकार नहीं करता है। PMCARES फंड/ट्रस्ट में किए गए योगदान को आयकर अधिनियम, 1961 के तहत छूट दी गई है, लेकिन इससे यह निष्कर्ष निकाला जाना उचित नहीं है कि, यह एक "सार्वजनिक प्राधिकरण" है।"

पीएमओ ने हलफनामे में इसे और स्पष्ट किया और आगे कहा है कि, "फंड को सार्वजनिक प्राधिकरण नहीं कहा जा सकता है क्योंकि जिस कारण से इसे बनाया गया था वह "विशुद्ध रूप से धर्मार्थ" है और न तो इस फंड का उपयोग किसी सरकारी परियोजना के लिए किया जाता है और, न ही ट्रस्ट सरकार की किसी भी नीति से शासित होता है। इसलिए, पीएम केयर्स को 'पब्लिक अथॉरिटी' के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता है। इस फंड के योगदान के साथ, भारत के समेकित कोष का कोई दूर दूर तक, कोई संबंध भी नहीं है।”

यह कहते हुए कि, "फंड या ट्रस्ट सरकार के किसी निर्णय या कार्य के लिए अपनी गठन का श्रेय नहीं देता है।" हलफनामे में यह सप्ष्ट किया गया है कि, "पीएम केयर फंड का कोई सरकारी चरित्र नहीं है "क्योंकि फंड से राशि के वितरण के लिए, सरकार द्वारा कोई दिशानिर्देश निर्धारित नहीं किया जा सकता है। पीएम केयर्स ट्रस्ट में किए गए योगदान को अन्य निजी ट्रस्टों की तरह आयकर अधिनियम के तहत छूट प्राप्त है। यह एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट है जिसमें व्यक्तियों और संस्थानों द्वारा किए गए स्वैच्छिक दान शामिल हैं और यह केंद्र सरकार का कोई व्यवसाय नहीं है।  इसके अलावा, पीएम केयर फंड को सरकार द्वारा धन या वित्त प्राप्त नहीं होता है।"

हलफनामा में यह भी कहा गया है कि "फंड से स्वीकृत अनुदान के साथ-साथ पीएम केयर फंड की वेबसाइट "pmcares.gov.in" पर सार्वजनिक डोमेन में, सभी जानकारियां उपलब्ध है और इसकी ऑडिटेड रिपोर्ट पहले से ही वेबसाइट पर उपलब्ध है। बाद में खातों के ऑडिट किए गए विवरण भी वेबसाइट पर उपलब्ध कराए जाएंगे, जब भी देय होगा।  इसलिए, मनमानी या गैर-पारदर्शिता के बारे में याचिकाकर्ता की धारणा उचित नहीं है।”

पीएमओ ने यह भी तर्क दिया है कि "पीएम केयर्स फंड को प्रधान मंत्री राष्ट्रीय राहत कोष (PMNRF) की तर्ज पर प्रशासित किया जाता है क्योंकि दोनों की अध्यक्षता प्रधान मंत्री करते हैं। जैसे राष्ट्रीय प्रतीक और डोमेन नाम 'gov.in' का उपयोग PMNRF के लिए किया जा रहा है, उसी तरह PM CARES फंड के लिए भी उपयोग किया जा रहा है।"
अंत में, हलफनामे ने यह कहा कि, "न्यासी बोर्ड की संरचना जिसमें सार्वजनिक पद के धारक, (यानी प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रक्षामंत्री आदि) पदेन रूप से शामिल हैं, तो, यह केवल प्रशासनिक सुविधा के लिए और ट्रस्टीशिप के सुचारू उत्तराधिकार के लिए है और इसका, सरकार के नियंत्रण का न तो कोई इरादा है और न ही वास्तव में इसका कोई उद्देश्य।"

दिल्ली हाईकोर्ट में यह याचिका, सम्यक गंगवाल द्वारा दायर की गई है। याचिका में यह तर्क दिया गया है कि, "पीएम केयर्स को, भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 के अंतर्गत PM  "राज्य" घोषित किया जाय।"
याचिकाकर्ता के अधिकार क्षेत्र पर सवाल उठाते हुए, हलफनामे में कहा गया है कि "याचिका "आशंकाओं और अनुमानों" पर आधारित है और एक संवैधानिक प्रश्न को शून्य में तय नहीं किया जाना चाहिए।"
गंगवाल ने कहा, "समय-समय पर फंड की ऑडिट रिपोर्ट का खुलासा करने के लिए, स्पष्ट  दिशा-निर्देश दिए जाने चाहिए, फंड में प्राप्त दान, उसके उपयोग और दान के व्यय पर संकल्प के फंड के त्रैमासिक विवरण को सार्वजनिक किया जाना चाहिए।"

याचिका में विकल्प में, यह भी तर्क दिया गया है कि "यदि पीएम केयर्स फंड अनुच्छेद 12 के तहत राज्य नहीं है, तो केंद्र को व्यापक रूप से प्रचार करना चाहिए कि यह सरकारी स्वामित्व वाली निधि नहीं है।" 
याचिका में यह भी मांग की गई है कि "पीएम केयर फंड को अपने नाम/वेबसाइट में "पीएम", राज्य के प्रतीक, अपनी वेबसाइट में डोमेन नाम "जीओवी" और पीएम के कार्यालय को अपने आधिकारिक पते के रूप में उपयोग करने से रोका जाना चाहिए।"

29 मार्च 2020 के जब कोरोना की लहर की वजह से देश में पाबंदियां लगनी शुरू हो गयीं थी और महामारी तेज़ी से फैल रही थी, तब प्रधानमंत्री ने 'पीएम केयर्स फंड' के स्थापना की घोषणा की थी जिसके माध्यम से कोरोना महामारी की अप्रत्याशित स्थिति का मुक़ाबला किया जा सके। 'पीएम केयर्स फंड' की वेबसाइट पर दो सालों का जो लेखा जोखा पेश किया गया है, उसके अनुसार इस फंड में कुल 10,990 करोड़ रुपये इकठ्ठा हुए हैं। यह जानकारी पिछले साल की है। फंड के ऑडिट की रिपोर्ट बताती है कि, मार्च 2021 तक इस राशि से 3,976 करोड़ रुपये ख़र्च किए गए, जो कुल जमा राशि का एक तिहाई हिस्सा है।

ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार जो राशि ख़र्च की गई उसमें प्रवासी मज़दूरों के पलायन को देखते हुए राज्य सरकारों को 1,000 करोड़ रुपये दिए गए जबकि देश के विभिन्न सरकारी अस्पतालों में पचास हज़ार के लगभग वेंटिलेटर मुहैया कराए गए जिसपर 1,131 करोड़ रुपये का ख़र्च हुआ है। साथ ही यह भी बताया गया है कि वैक्सीन की 6.6 करोड़ डोज़ के लिए मार्च 2021 तक 1392 करोड़ रुपये भी इसी मद से ख़र्च किए गए हैं।

हालांकि, कोरोन महामारी के दौरान, यह भी शिकायत मिली कि, जो वेंटिलेटर, इस फंड के पैसे से, दिए गए थे उनमें बहुत से, ख़राब भी  निकले। मीडिया की खबरों के अनुसार, जो वेंटिलेटर, दिए गए उनमें से बहुत सारे वैसे ही पड़े रह गए क्योंकि उनका संचालन करने के लिए स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों को प्रशिक्षण ही नहीं मिल पाया था। रिपोर्ट से ये भी पता चलता है कि देश के विभिन्न हिस्सों में आरटी/पीसीआर जांच के लिए 16 लैब की स्थापना में 50 करोड़ रुपये ख़र्च किए गए जबकि 20 करोड़ की राशि से कुछ राज्यों में पहले से मौजूद लैब का आधुनिकीकरण किया गया ताकि लोगों को कोविड की जांच कराने में आसानी हो सके। इसके अलावा देश भर में 160 ऑक्सीजन प्लांट स्थापित करने के लिए 200 करोड़ रुपये से ज़्यादा ख़र्च किए गए. वहीं 50 करोड़ रुपये बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर और पटना में कोविड अस्पताल बनाने के लिए ख़र्च किए गए।

'पीएम केयर्स फंड' का ऑडिट, सार्क एसोसिएट्स नाम की ऑडिट फर्म ने किया है,  जो वेबसाइट पर मौजूद है। इसमें यह भी बताया गया है कि, कहाँ से कितनी राशि मिली है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जहाँ 7,183 करोड़ देश के अन्दर से ही स्वैच्छिक दान के माध्यम से जमा हुए, लगभग 494 करोड़ रुपये विदेश से मिले अनुदान के ज़रिए जमा किए गए। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस फंड के स्थापना की घोषणा की थी तो विपक्ष ने इस फ़ैसले पर कई सवाल उठाए। कांग्रेस के सहित प्रमुख विपक्षी दलों ने सरकार से सवाल किया था कि जब प्रधानमंत्री राहत कोष मौजूद है तो, फिर इस नए फंड की क्या आवश्यकता थी। विपक्ष का कहना था कि राज्य स्तर पर भी मुख्यमंत्री राहत कोष स्थापित है और इसमें ही पैसे जमा होने चाहिए थे।

सूचना के अधिकार के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं ने पिछले दो सालों में इस फंड से जुड़ी सूचनाओं को लेकर अदालतों तक जाना पड़ा, और यह मांग करनी पड़ी कि, इसे 'सूचना के अधिकार' के अंतर्गत लाया जाना चाहिए और इससे संबंधित जानकारी जब मांगी जाए तो उसे उपलब्ध कराया जाए। मगर पिछले साल सितंबर माह में भी दिल्ली उच्च न्यायालय में सरकार ने अपनी याचिका में स्पष्ट किया कि 'पीएम केयर्स फंड' सरकार की कोई 'संस्था' नहीं है बल्कि एक दानशील या 'चैरिटेबल ट्रस्ट' है जिसकी वजह से ये सूचना के अधिकार के दायरे में नहीं आ सकती. ये एक ट्रस्ट है जिसका संचालन सिर्फ़ ट्रस्टी ही करेंगे।"

यहीँ यह सवाल उठता है कि, अगर इस फंड पर किसी भी तरह की निगरानी नहीं रखी जा सकती है तो फिर इसमें पारदर्शिता कहाँ से आएगी? इस फंड में सरकरी कर्मचारियों, सरकारी विभागों और निजी कंपनियों ने दान किया है. इसलिए इसके कार्यकलापों में पारदर्शिता होनी ही चाहिए। फिलहाल यह मामला दिल्ली हाईकोर्ट में है, और अभी इसकी सुनवाई चल रही है।

(विजय शंकर सिंह)
Vijay Shanker Singh


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