हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट में, जो अडानी समूह पर, शेल कंपनियों द्वारा समूह में निवेश, मनी लांड्रिंग और स्टॉक मार्केट में ओवरप्राइसिंग सहित कुछ अन्य आरोप लगाए गए हैं, उनकी ओर भारत के भी कुछ पत्रकारों ने, जो आर्थिक मामलों में अध्ययन और रिपोर्टिंग करते रहते हैं, हिंडनबर्ग रिपोर्ट जारी होने के पहले भी लिखा है। इनमे, प्रमुख पत्रकार हैं, परंजय गुहा ठाकुरता, रवि नायर और सुचेता दलाल। परंजय गुहा ठाकुरता और रवि नायर ने, राफेल घोटाले पर भी एक बेहद शोधपूर्ण किताब लिखी है, जो उस सौदे की परत दर परत खोल कर रख देती है। परंजय गुहा ठाकुरता को तो, अडानी समूह के बारे में अपनी धोधपूर्ण रिपोर्ट के लिए, अपनी नौकरी भी गंवानी पड़ी और उनका एक लेख, जो अडानी के घपलों और उस समूह द्वारा किए गए वित्तीय अनियमितताओं को उजागर करता है, इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकली वीकली जैसी प्रतिष्ठित पत्रिका से हटवा भी दिया गया। अब लेख हटवाने में कौन शामिल था, इस पर सिर्फ अनुमान ही लगाया जा सकता है और अनुमान लगाना मुश्किल भी नहीं है।
वही पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता, ने ढाई साल बाद अपनी चुप्पी तोड़ी है और कलकत्ता के अंग्रेजी दैनिक अखबार द टेलीग्राफ को अपना एक इंटरव्यू दिया है। उनके खिलाफ मानहानि के एक मामले में, अहमदाबाद की एक अदालत ने एक जुबाबंदी आदेश जारी कर, उनसे कहा था कि, वे ऐसा कुछ भी न बोलें या न लिखें जो अडानी समूह के हितों के विरुद्ध हो। जुबानबंदी का यह आदेश अपने आप में ही, अडानी की सत्ता पर मजबूत पकड़ का संकेत दे देता है। अडानी के बारे में, न कुछ बोलें, न कुछ लिखें, और न कुछ पढ़ें, यह मंशा अदालत की थी या नहीं, यह तो नहीं बता पाऊंगा, पर यह मंशा सरकार की तो है ही, जो अब वह देश की सर्वोच्च पंचायत की हो गई। लोकसभा के स्पीकर ने, जो मुस्कुराते हुए, राहुल गांधी को सदन में, राष्ट्रपति के अभिभाषण पर, बोलने दे रहे थे, ने राहुल के उन प्रश्नों और अंशो को सदन की कार्यवाही से उड़ा दिया, जो प्रधानमंत्री और अडानी के बीच के संबंधों पर थे। बिल्कुल एक आपराधिक गिरोह की मानसिकता से, जो अपराध का कोई सुबूत छोड़ना नहीं चाहता है। पर राहुल ने जो कहा है वह अब अधिकांश के स्मार्टफोन में पड़ा हुआ है।
अंग्रेजी अखबार दे टेलीग्राफ से बात करते हुए, परंजय गुहा ठाकुरता ने कहा, "वे अदालत की अवमानना नहीं करना चाहते हैं, पर वे कुछ तथ्य रखेंगे।" परंजय गुहा ठाकुरता का अध्ययन अर्थशास्त्र में रहा है और वे आर्थिकी और कॉरपोरेट बैंकिंग आदि पर अध्ययन करते रहते हैं। इसी सिलसिले में उन्होंने अडानी के तेजी से बढ़ते आर्थिक साम्राज्य और कारोबार का भी अध्ययन करना शुरू किया। गुहा ठाकुरता ने कहा कि "वह अडानी समूह के भविष्य के बारे में अनुमान लगाने के लिए तैयार नहीं हैं।" और टेलीग्राफ द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब में उन्होंने केवल तथ्य बताए हैं। वे आगे कहते हैं, "एक पत्रकार के रूप में मेरी रुचि का क्षेत्र राजनीतिक अर्थव्यवस्था है...। मैं 45 साल से पत्रकार हूं और अब मैं 67 साल का हूं।"
जाहिर है, किसी भी क्षेत्र में जब कोई असामान्य हलचल होती है तो, सजग और सतर्क पत्रकारों की निगाह उसकी ओर स्वाभाविक रूप से पड़ती है। अडानी का भी उदय और विस्तार 2014 के बाद बहुत तेजी से हुआ और इस असामान्य तरक्की ने, एक राजनीतिक अर्थव्यवस्था का पत्रकार होने के नाते, परंजय का भी ध्यान उधर गया।
अगर देश के कॉर्पोरेट के इतिहास पर कभी कुछ लिखा जाता है तो, अडानी समूह के हैरतअंगेज विकास पर जरूर लिखा जायेगा। आर्थिक इतिहासकार, उन कारणों और उन बाहरी प्रभावों के बारे में भी जरूर लिखेंगे, जिन्होंने इस समूह के अप्रत्याशित विस्तार में उत्प्रेरक और सहायक की भूमिका निभाई है, और उनमें भी, विशेषकर कॉर्पोरेट और सत्ता के गठजोड़ के बारे में। अडानी समूह का उदय, निःसंदेह शानदार रहा है। अडानी ग्रुप के बारे में 20 साल पहले बहुत कम ही लोगों ने सुना था। लेकिन, हिंडनबर्ग की रिसर्च रिपोर्ट आने तक, वे दुनिया के तीसरे सबसे अमीर आदमी और एशिया के सबसे अमीर आदमी बन चुके थे। अब, अपनी सूचीबद्ध कंपनियों के शेयर गिरने के बाद वह उस स्थिति से नीचे गिर कर, बाइसवे स्थान तक खिसक गए पर, अब फिर थोड़ा ऊपर उठे है। इस प्रकार यदि उन्होंने, शानदार तरीके से विकास किया तो, उनकी गिरावट भी उतनी ही हैरान करने वाली रही है। परंजय अपने इंटरव्यू में बताते हैं, "24 जनवरी को हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट आने से पहले, हममें से बहुत कम लोगों ने, जिनमें मैं भी शामिल हूं, का सोचना था कि, अडानी समूह अब आगे नहीं बढ़ेगा।"
इस सवाल पर कि, "अडानी समूह, कई अन्य भारतीय कॉरपोरेट्स से अलग क्या करता है?"
परंजय कहते हैं, "भारतीय अर्थव्यवस्था के इतने सारे क्षेत्रों और खंडों पर अडानी समूह के प्रभुत्व का तरीका और होना, वास्तव में असामान्य है। यह भारत का सबसे बड़ा वाणिज्यिक बंदरगाह ऑपरेटर है। यह भारत के पश्चिमी और पूर्वी तट, दोनों ही तरफ, एक दर्जन बंदरगाहों का संचालन करता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, इसके पास इज़राइल में हाइफ़ा पोर्ट और ऑस्ट्रेलिया में एबॉट पॉइंट है। अडानी निजी क्षेत्र के सबसे बड़े एयरपोर्ट ऑपरेटरों में से एक है, CIL (कोल इंडिया लिमिटेड) के बाद कोयला खदानों के दूसरे सबसे बड़े ऑपरेटर है; इसकी इंडोनेशिया और ऑस्ट्रेलिया में खानें हैं। यह भारत में कोयले के सबसे बड़े आयातक है, एनटीपीसी के बाद, कोयले से बिजली उत्पादन में, दूसरे, सबसे बड़े उत्पादक है.... अदानी समूह 15 साल पहले तराशे और पॉलिश किए गए हीरों का सबसे बड़ा एग्रीगेटर हुआ करता था - लेकिन बाद में यह समूह, इससे अलग हो गया, जतिन मेहता के विनसम डायमंड्स सहित अन्य, जो विनोद अदानी की बेटी (विनोद, गौतम अदानी के भाई हैं) के ससुर हैं, द्वारा घोटाले में लिप्त होने के बाद। जतिन मेहता इस समय देश से बाहर है। विनसम डायमंड्स कभी इनकी सबसे बड़ी गैर-निष्पादित संपत्तियों में से एक है।"
और यह सारी तरक्की और व्यापारिक साम्राज्य विस्तार, 2014 से अब तक के काल खंड का है, यानी वही काल खंड है जिसमे नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं।
अडानी समूह के बारे में, परंजय गुहा ठाकुरता ने सबसे पहले कब लिखा था, के सवाल पर, परंजय ने जो कहा, उसे पढ़िए,
"2015 में मेरा लेख कुल मिलाकर उन सामग्रियों का संकलन था जो पहले से ही सार्वजनिक डोमेन में थे।
पहला लेख जिसे कोई एक्सक्लूसिव कह सकता है, अप्रैल 2016 में प्रकाशित हुआ था, जब मैं इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली (EPW) का संपादक था।
मैंने ईपीडब्ल्यू में कई लेख लिखे, जिसमें बिजली के मूल्य निर्धारण के बारे में चर्चा और, अडानी समूह द्वारा तराशे और पॉलिश किए गए हीरा व्यवसाय द्वारा लाभ के दुरुपयोग के आरोप भी शामिल हैं।
जून 2017 में ईपीडब्ल्यू के लिए मैंने जो आखिरी लेख लिखा था, वह एसईजेड (विशेष आर्थिक क्षेत्र) में बिजली परियोजनाओं से संबंधित नियमों में बदलाव से संबंधित था।"
आगे वह कहते हैं, "इसमें यह भी बताया गया है कि कैसे सरकार - वित्त मंत्रालय और वाणिज्य मंत्रालय - 500 करोड़ रुपये से अधिक के सीमा शुल्क की वापसी के लिए एक शिकायत पर कार्रवाई कर रहे थे, कि, बिना पड़ताल के, शुल्क का भुगतान किया गया था या नहीं। यह मामला संसद तक भी पहुंच गया था।"
ईपीडब्ल्यू, एक प्रतिष्ठित मैगजीन है और जब उसमे परंजय गुहा ठाकुरता का लेख छपा तो अडानी समूह असहज हुआ और परंजय को, ईपीडब्ल्यू से इस्तीफा देना पड़ा। इस मामले में परंजय कहते हैं,
"जैसा कि आप जानते हैं, मैंने जुलाई 2017 में इस्तीफा दे दिया था, जब ईपीडब्ल्यू के न्यासी बोर्ड ने कहा कि मुझे अपने नाम से लेख नहीं लिखना चाहिए, हालांकि, मेरे पूर्ववर्तियों ने यह कार्य किया था। मुझे बताया गया कि, वे एक सह-संपादक नियुक्त करने के बारे में सोच रहे थे; कि मैंने एक संस्था की तरह प्रतिष्ठित प्रकाशन की परंपरा को नष्ट कर दिया है। मुझ से कहा गया कि, मैंने प्रकाशक, मुद्रक, लेखक और लेख के संपादक को कानूनी नोटिस का जवाब देने के लिए, एक वकील की निःशुल्क सेवा स्वीकार कर गंभीर अनुचित कार्य किया है और, अंत में, मुझे उस लेख को हटाने के लिए कहा गया और कहा गया कि, जब तक वह लेख, हटा नहीं लिया जाता, तब तक कमरे से बाहर न जाने के लिए भी कहा गया। मैंने अपने एक सहयोगी को बुलाया, लेख को हटा दिया। फिर, कागज का एक टुकड़ा लिया और अपना इस्तीफा लिख दिया।"
आखिर क्या था उस लेख में कि ईपीडब्ल्यू जैसी प्रतिष्ठित पत्रिका, जो खुद को एक संस्था के रूप में मानती है, एक कॉर्पोरेट पर लिखे गए एक शोधपूर्ण आलोचनात्मक लेख को छापने से डर गई थी। कॉर्पोरेट की जड़ें किस मजबूत सत्ता तक पहुंच रही थी, यह तब भी, किसी से नहीं छुपा था, और अब भी नहीं छुपा है। रस्सी खूंटे के बल पर तनती है!
सवाल पूछा गया, "क्या आपने अडानी समूह पर लिखना जारी रखा ?"
इस पर परंजय गुहा ठाकुरता ने कहा, "ईपीडब्ल्यू द्वारा हटाया गया लेख द वायर (समाचार पोर्टल) द्वारा प्रकाशित किया गया था। मेरे समर्थन में कई लोग सामने आए, जिनमें प्रोफेसर अमर्त्य सेन और प्रसिद्ध विद्वान नोम चॉम्स्की शामिल हैं। बाद में, अडानी समूह पर मेरे लेख, कुल मिलाकर अन्य प्रकाशनों, विशेष रूप से न्यूज़क्लिक में छपे। मैं मई 2018 में न्यूज़क्लिक का सलाहकार बना।"
ईपीडब्ल्यू ने तो फिर उनका लेख नहीं छापा पर अन्य समाचार पोर्टल पर परंजय का लेख छपता रहा।
इन लेखों के कारण, इन पर, अदालतों में मानहानि के मुकदमे दर्ज हुए। इन मुकदमों के बारे में, वे कहते हैं,
"मैं भारत का एकमात्र नागरिक हूं, जिसके खिलाफ गौतम अडानी के नेतृत्व वाली कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों ने मानहानि के छह मामले दायर किए हैं, जो वर्तमान में कानून की अदालतों में लंबित हैं। इनमें से दो मामले गुजरात के मुंद्रा में प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष हैं, दो अहमदाबाद, गुजरात की अदालतों में, एक राजस्थान के बारां जिले में और एक दिल्ली में है। सितंबर 2020 में, अहमदाबाद की अदालत ने मुझ पर, मेरे सह-लेखक अबीर दासगुप्ता और प्रबीर पुरकायस्थ के नेतृत्व वाले न्यूज़क्लिक पर एक जुबानबंदी आदेश जारी किया कि हम गौतम अडानी और उनके समूह के हितों के खिलाफ कुछ भी बोल, कह या लिख नहीं सकते।"
वे आगे कहते हैं, "एक लेख था, जिसे मानहानिकारक माना गया था - लेख की सामग्री को चुनौती नहीं दी गई थी। शीर्षक मानहानिकारक माना गया... यह तीन लेखों की श्रृंखला का अंतिम भाग था।"
मुझ पर, मेरे सहयोगियों और न्यूज़क्लिक पर यह आरोप था कि, हमने जनता की नज़र में न्यायपालिका के सम्मान को कम किया है। मामला फिलहाल लंबित है और मैं इस पर और कुछ नहीं कह सकता।
हाल ही में राजस्थान के मामले में, हम में से कई बारां जिले के ग्रामीण न्यायालय में मजिस्ट्रेट के सामने जमानत बांड और जमानत बांड के लिए जमानत देने के लिए उपस्थित हुए।
ईपीडब्ल्यू द्वारा हटाए गए लेख को अडानी समूह द्वारा यह कहते हुए चुनौती दी गई थी कि यह मानहानिकारक है। द वायर को चलाने वाली संस्थाओं, मेरे सह-लेखकों और मेरे खिलाफ मामले दायर किए गए थे। यह भुज में एक सिविल कोर्ट और मुंद्रा में एक आपराधिक अदालत में गया। लेकिन अब दोनों मुंद्रा में हैं।"
जब उनसे पूछा गया कि, "जैसा कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है, क्या आपको गिरफ्तार करने का कोई प्रयास किया गया था? क्या आप जेल गए थे ?"
इस पर परंजय गुहा ठाकुरता ने कहा,
"जनवरी 2021 में, जब महामारी चल रही थी, मुंद्रा में प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा मेरे खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया गया था। मेरे वकील ने तर्क दिया कि यह गैर-जमानती वारंट कानून की दृष्टि से त्रुटिपूर्ण है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के उन फैसलों का जिक्र किया जिनमें कहा गया है कि, अगर कोई शख्स कोर्ट में पेश नहीं होता है तो, आप जमानती वारंट जारी कर सकते हैं। अगर वह व्यक्ति फिर भी हाजिर नहीं होता है तो, कोर्ट गैर जमानती वारंट जारी कर सकता है। यह मामला ईपीडब्ल्यू से निकाले गए लेख और बाद में द वायर द्वारा प्रकाशित लेख से संबंधित है। मई 2019 में, लोकसभा चुनाव के परिणाम घोषित होने से पहले, अडानी समूह ने सभी के खिलाफ मामले वापस ले लिए - द वायर, मेरे तीन सह-लेखक लेकिन मैं अकेला व्यक्ति हूं जिसके खिलाफ मामला जारी है। मुझे कभी गिरफ्तार नहीं किया गया।"
हिंडनबर्ग रिसर्च के साथ सहयोग करने के सवाल पर उनका कहना है,
"रिपोर्ट आने से पहले, मैंने इसके बारे में कभी नहीं सुना था। हालाँकि, रिपोर्ट, जिसमें 32,000 शब्द हैं, यदि पुस्तक के रूप में मुद्रित की जाती है, तो 150 पृष्ठों में आ सकती है। इस रिपोर्ट में, मेरे और अबीर दासगुप्ता जैसे स्वतंत्र पत्रकारों द्वारा किए गए कार्यों के कई संदर्भ उल्लिखित हैं, जिनके साथ मैंने सहयोग किया। लेकिन यह सब वे मैटीरियल और दस्तावेज हैं, जो सार्वजनिक डोमेन में है और उन्हे कोई भी देख और पढ़ सकता है।"
परंजय गुहा ठाकुरता की मुलाकात भी गौतम अडानी से हुई। इसके बारे में वे कहते हैं, कि, "मैं गौतम अडानी से दो बार मिला - मई 2017 में मुंबई में, और फिर फरवरी 2021 में। हाल ही में मेरी उनसे टेलीफोन पर लंबी बातचीत हुई। लेकिन इनमें से हर मौके पर मैं उनसे इस शर्त पर मिला कि यह ऑफ द रिकॉर्ड होगा। मैंने उन वार्तालापों को रिकॉर्ड नहीं किया। प्रत्येक बातचीत के दौरान, टेलीफोन कॉल को छोड़कर मेरे साथ और लोग भी थे। एक पूर्व सहयोगी 2017 में मेरे साथ था और 2021 में, कमरे में हम पांच थे, जिनमें गौतम अडानी और मेरी पत्नी शामिल है। पहली बैठक लगभग एक घंटे तक चली, जबकि दूसरी, एक घंटे और 55 मिनट तक चली। फोन कॉल करीब 15 मिनट तक चली।"
"मुलाकात मेरे कहने पर हुई थी. दूसरा मेरे वकील आनंद याग्निक के द्वारा इस उम्मीद के साथ तय की गई थी कि, अदालत के बाहर समझौता हो सकता है। लेकिन वैसा नहीं हुआ। आखिरी फोन कॉल मेरी ओर से मामलों को वापस लेने का अनुरोध था। पर वह प्रतिबद्ध नहीं थे। मामले अभी भी लंबित हैं।"
शीर्ष कंपनियों और बड़े समूहों के खिलाफ लेख लिखने पर परंजय को अन्य अदालती मामलों का सामना भी सामना करना पड़ा है। इनके बारे में वे बताते हैं,
"कई कॉरपोरेट्स ने लीगल नोटिस भेजे हैं लेकिन असल में कोई मुझे कोर्ट तक नहीं ले गया। कानूनी नोटिस दोनों अंबानी भाइयों के नेतृत्व वाली कॉर्पोरेट संस्थाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों द्वारा भेजे गए थे। सहारा के सुब्रत राय ने भी मुझे नोटिस भेजा पर वे कभी कोर्ट नहीं ले गए। पर इन मामलों का मुझ पर और मेरी जिंदगी पर असर पड़ता है। अनावश्यक समय बरबाद होता है और खर्चे भी होते हैं। लेकिन अगर आप मुझसे पूछें कि क्या मैं, इनसे (इन लेखों के माध्यम से कॉर्पोरेट की अनियमितता उजागर करने से) कुछ अलग करता तो मेरा उत्तर 'नहीं' में होता।
आज जब हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद, देश के स्टॉक मार्केट में भूचाल आया है, अडानी के शेयर आधे से भी कम कीमत पर रह गए हैं, एसबीआई, एलआईसी जैसी कई वित्तीय संस्थान जिन्होंने अडानी के शेयर खरीदे हैं, नुकसान उठाने की ओर है, दुनिया भर की क्रेडिट एजेंसियां और वित्तीय संस्थान अडानी के इस अचानक हुए पराभव से सशंकित है, ऑस्ट्रेलिया से लेकर बांग्लादेश तक, यह समूह संदेह के घेरे में है तो आरएसएस और बीजेपी इसे देश पर हमला बता रहे हैं। कमाल की सरकार है और कमाल की गवर्नेंस। अडानी के शेयर उठे या गिरे, इससे अडानी पर लगे आरोप खत्म नही हो जाते हैं। शेयरों का उठना गिरना तो उस आरोपों का परिणाम है। आरोप है, शेल कंपनियों से पैसा लेना। इसे मनी लांड्रिंग भी कहा जाता है। ED प्रवर्तन निदेशालय, जिसने, बेहद कम धनराशि की मनीलांड्रिंग के आरोप में, केरल के पत्रकार, सिद्दीक कप्पन को जेल भेजा था, अब कॉमा में है। सरकार संसद में काका हाथरसी और दुष्यंत कुमार की कविताएं सुना रही है, पर अडानी का नाम तक नहीं ले रही है, जांच पड़ताल की कौन कहे।
विजय शंकर सिंह
© Vijay Shanker Singh
पंरजय साहेब अपनी जगह पूरे सही और दुरुस्त होकर एक सच्चे राष्ट्रप्रेमी पत्रकार हैं,जिन पर हम सदैव गर्व कर सकते हैं! और जहां तक अदालतिया आदेश जुबानबंदी का मामला है तो जब तक हमारे गोगोई साहेब और अब्दूल साहेब नव मनोनीत राज्पाल महोदय न्यायायिक व्यवस्थाओं में हुये हैं तब ऐसे अटपटे आदेशों का हमलोंगो आदी हो जाना चाहिये!
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