Saturday, 8 February 2020

अनिल अंबानी ने खुद को कर्ज चुकाने में असमर्थ बताया / विजय शंकर सिंह

जिस अनिल अंबानी को  आनन फानन में एक कंपनी बनवा कर, एचएएल को दरकिनार कर के राफेल की कीमत अनाप शनाप बढ़वा कर, कागज़ों को छुपा कर, सरकार ने राफेल का ठेका दिलवाया था, वह अनिल अंबानी अब दिवालिया हैं। 

यह मैं नहीं कह रहा हूँ, अनिल अंबानी ने खुद कहा है। उन्होंने लंदन की एक अदालत में कहा है कि उनके पास कर्ज़ अदायगी के पैसे नहीं हैं और उन्हें उनके भाई ने भी आर्थिक मदद देने से इंकार कर दिया है। उन पर चीन के एक उद्योगपति ने कर्ज़ न चुकाने के लिये मुकदमा किया है। 

अखबारों औऱ विभिन्न वेबसाइट के अनु, अनिल अंबानी पर ब्रिटेन की अदालत में एक केस चल रहा है जो चीन के तीन सबसे बड़े बैंकों की तरफ से अनिल अंबानी के ख़िलाफ़ किया गया है। 7 फरवरी की सुनवाई के दौरान अदालत ने अनिल अंबानी को निर्देश दिया कि वे छह हफ्ते के भीतर 07 अरब, 15 करोड़, 16 लाख रुपये(10 करोड़ अमेरिकी डॉलर के बराबर) की रकम जमा करें। 

बैंकों ने यह भी दलील दी कि 'अगर अनिल अंबानी दीवालिया हैं तो वे अपने वकीलों की फीस कहां से लाते हैं. लगभग 5 करोड़ रुपये प्रति सुनवाई।' बैंकों के वकील ने अंबानी के लाइफस्टाइल का भी ज़िक्र किया. वकील ने बताया कि अंबानी के पास 11 लग्जरी कारें, एक प्राइवेट जेट, यॉट और साउथ मुंबई के सीविंड पेंटहाउस में रेंट-फ्री एक्सेस है।

दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद जज डेविड वाक्समैन ने कहा कि अनिल अंबानी की वित्तीय स्थिति का हवाला देकर जो बचाव किया गया है, उसमें पारदर्शिता की कमी है. इसके बाद जज ने अनिल अंबानी को छह हफ्ते के भीतर रकम चुकाने का निर्देश दिया है।

चीन के तीन बैंकों- इंडस्ट्रियल एंड कमर्शियल बैंक ऑफ चाइना, चाइना डेवलपमेंट बैंक और एग्जिम बैंक ऑफ चाइना ने साल 2012 में रिलायंस कम्युनिकेशन को 70 करोड़ डॉलर (लगभग 5000 करोड़ रुपये) का कर्ज दिया था। लेकिन आर कॉम इसका भुगतान नहीं कर पाई. बैंकों का दावा है कि अनिल अंबानी इस लोन के गारंटर थे। बैंकों ने अनिल अंबानी से तकरीबन 48 अरब, 63 करोड़, 88 लाख रुपये(68 करोड़ डॉलर) की ऋण वसूली के लिए केस दर्ज कराया है। 

क्या यह बात आप को हैरान नहीं करती कि, जिस सरकार के पास एचएएल जैसी स्थापित और अनुभवी विमान निर्माण की कम्पनी हो, जिसने दसाल्ट के साथ मिलकर पहले काम किया हो, जिसे सरकार ने खुद ही उत्कृष्ट सम्मान से नवाजा हो, जिस कंपनी से दसॉल्ट के सारे अनुबंध और शर्ते लगभग पूरी तरह तय हो गए हों, उसी एचएएल को एक निजी पूंजीपति का एहसान उतारने के लिये सरकार ने आनन फानन में एचएएल का सौदा रद्द कर के उसी निजी पूंजीपति अनिल अंबानी को राफेल का ठेका दे दिया ? 

क्या यह गिरोहबंद पूंजीवाद नहीं है ? क्या यह सरकारी कम्पनी को जानबूझकर कर घाटे में ढकेलना नहीं है ? क्या यह देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ नहीं है कि, एक दिवालिया दिखने वाला पूंजीपति, एक अत्यंत ज़रूरी और दक्ष विमान बनाने का ठेका पा गया, जबकि उसके पास, न तो तकनीकी जानकारी है, न संसाधन, न फैक्ट्री और न धन ? 

यह सरकार #गैरजिम्मेदार है। और जो सरकार गैर जिम्मेदार है, उसे सरकार बने रहने का कोई हक नहीं है। केवल एक ही एजेंडा इनका है, जनता को भयग्रस्त रखे रखना, और उस भयादोहन से अपने क्रोनी पूंजीपतियों का स्वार्थ सिद्ध करना। न इन्हें धर्म से कोई मतलब, न राम से सरोकार। बस एक डरा हुआ उन्मादित समाज बनाना और डरे हुए मानसिकता के लोगों का भावनात्मक शोषण करना। आर्थिक शोषण तो का तो एजेंडा ही है। 

( विजय शंकर सिंह )

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