Tuesday, 4 February 2020

सरकार ने एनआरसी लागू करने की किसी योजना से इनकार किया / विजय शंकर सिंह

खबर आ रही है कि, आज सरकार संसद में एक प्रश्न के उत्तर में कहा है कि,
" राष्ट्रीय स्तर पर एनआरसी लाने के बारे में अभी तक कोई निर्णय नहीं हुआ है। "

चूंकि यह बयान लिखित तौर पर संसद में दिया गया है अतः इसे सरकार का अधिकृत बयान माना जा सकता है। लेकिन सरकार की जैसी साख है उसे देखते हुये इस एक लाइन के बयान पर फिलहाल अभी विश्वास करना मुश्किल है। जब कोई चर्चा ही नहीं थी तो गृहमंत्री क्यों क्रोनोलॉजी समझा रहे थे ? यह जन आंदोलनों और गैर बीजेपी सरकारों के एकजुट होकर सीएए के विरोध में लामबंद होने का भी परिणाम हो सकता है। 

शाहीनबाग जैसे सैकड़ो अहिंसक और शांतिपूर्ण प्रदर्शनों में शामिल सभी लोगों की यह एक प्रकार की जीत है। जो सरकार इतनी स्थूल है कि एक इंच भी पीछे न हटने की ज़िद पाले बैठी थी, वह पीछे हटने तो लगी। गांधी के सत्य के साथ अनेक प्रयोगों की तरह यह भी, उन्हीं के नक़्शे क़दम पर किया जा रहा प्रयोग है जो अपने लक्ष्यपूर्ति की ओर बढ़ने में कुछ तो सफल रहा। सबको बधाई। 

सीएए, नागरिकता कानून तो प्रथम दृष्टया ही संविधान के मूल अधिकारों के विपरीत है, क्योंकि उसमें नागरिकता देने का आधार ही धर्म के भेदभाव पर आधारित है। सीएए को लेकर असम में अब भी बवाल है। सीएए, आया ही है असम में एनआरसी के बाद। असम में एनआरसी एक प्रयोग था, अवैध बांग्लादेश से आये हुए घुसपैठियों की पहचान करने के लिये। वहां यह एक जटिल समस्या थी भी। इसी को लेकर असम आंदोलन औऱ फिर 1985 में असम समझौता हुआ था। 

लेकिन असम में जो एनआरसी की गयी उससे वहां कई अन्य समस्याएं उत्पन्न हो गयीं और अब कहा जा रहा है कि एनआरसी वहां अपना उद्देश्य पूरा नहीं कर पाई। 19 लाख लोग वहां ऐसे निकल आये जिनकी नागरिकता प्रमाणित नही हुयी। उसी में 14 लाख हिंदू हैं और शेष मुस्लिम। कहा जाता है कि नागरिकता संशोधन कानून 2020 उन्ही को नागरिकता देने के लिये लाया गया है। लेकिन असम के लोग इसपर भी राजी नहीं है। 

देश मे नागरिकता कानून 1955 पहले से ही है । अब तक उन्ही के अनुसार सबको नागरिकता दी जाती रही है। इसी कानून के अंगर्गत पाकिस्तान से आये अदनान सामी को भी नागरिकता दी गयी है। अब भी सरकार जिसे चाहे, उसे देश की नागरिकता दे सकती है। कही कोई बाधा नहीं है। पर यह नया संशोधन क्यों लाया गया है और इसकी जरूरत क्या थी यह न तो सरकार बता रही है और न उसके समर्थक। सदन में गृहमंत्री कहते हैं, कि यह पाकिस्तान, बांग्लादेश अफगानिस्तान में प्रताड़ित अल्पसंख्यक समाज को राहत देने के लिये लाया गया है, पर जब कानून बनता है तो उसमें प्रताड़ना का कहीं कोई उल्लेख ही नहीं है। 

इसी प्रकार सदन में क्रोनोलॉजी समझाते हुए वे अंग्रेजी की एक कविता,'आई एम द मोनार्क ऑफ हूम आई सर्वे,' 'जहां तक मैं देखता हूँ, वहां तक का मैं सम्राट हूँ, ' के नायक की तरह दिखना चाहते हैं, और कहते हैं, पहले सीएए आएगा, फिर एनआरसी आयगी। दीमक वाला बयान तो वे देते ही रहते हैं। पर जब आंदोलन व्यापक हुआ तो प्रधानमंत्री ने रामलीला मैदान में इस क्रोनोलॉजी का खंडन किया और कहा कि एनआरसी पर तो कोई बात ही नहीं हुयी है। चूंकि पीएम सच कम बोलते हैं अतः किसी को इस पर विश्वास नहीं हुआ। 

अब जब लिखित रुप से संसद में गृह राज्यमंत्री ने यह कह दिया कि अभी कोई योजना नहीं है तो कम से कम यह बात साफ हो गयी कि सरकार व्यापक जन आक्रोश के कारण पीछे हट रही है। जनता को निडर औऱ सरकार को जनता से डरते रहना चाहिए। निडर सरकार स्वेच्छाचारी और तानाशाही ककून में घुसने लगती है। वह ठस और अहंकारी हो जाती है। 

सरकार को नागरिकता संशोधन कानून 2020 भी फिलहाल वापस लेकर इसे अगर पारित करना आवश्यक हो तो पुनः ड्राफ्ट किया जाना चाहिए और सदन की स्टैंडिंग कमेटी में भेजा जाना चाहिए ताकि इसके हर वैधानिक और अन्य जरूरी पहलुओं की पड़ताल हो सके। तब तक के लिये अगर सरकार किसी को नागरिकता देना भी चाहे तो वह 1955 के कानून के अंतर्गत नागरिकता दे सकती है। उक्त कानून के अंर्तगत अब तक सभी सरकारो ने नागरिकता दी भी है। 

© विजय शंकर सिंह 

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