असम में एनआरसी के बाद कुल 19 लाख लोग उक्त रजिस्टर में नहीं आ पाए थे। उन्हें अपनी नागरिकता साबित करने के लिये अभी अपील आदि की प्रक्रिया का न्यायिक अधिकार प्राप्त है। इसी बीच यह खबर आ रही है कि, एनआरसी का वह डेटा, जिसमे एनआरसी में शामिल और ना शामिल लोगों से जुड़े आंकड़े थे, वह गायब हो गए हैं। यह सारे आंकड़े सुप्रीम कोर्ट के कहने पर अक्टूबर में तैयार करके उपलब्ध कराए गए थे।
असम के नेता विरोधी दल देबब्रत सैकिया ने सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को इस रहस्यात्मक ढंग से डेटा विलुप्त होने के सम्बंध में एक शिकायती पत्र लिखा है। उन्होंने अपने पत्र में लिखा है कि,
“The data have vanished especially when appeals process has not even started due to the go-slow attitude adopted by the NRC Authority. There is, therefore, ample scope to suspect that the disappearance of online data is a mala fide act and is prima facie a deliberate violation of the directive issued by the Hon’ble Supreme Court,”
यह सारा डेटा तब विलुप्त हुआ जब बिशेषकर अपीलों की प्रक्रिया शुरू होने वाली थी, जो एनआरसी अधिकारियों की धीमे काम करो की नीति से अभी थमी हुयी है। अतः यह संदेह करने का एक बड़ा कारण है कि डेटा विलुप्ति में कोई न कोई कदाशय है। यह कृत्य सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी एनआरसी संबंधित दिशा निर्देशों के प्रथम दृष्टया विरोध में है।
असम में एनआरसी पर 1600 करोड़ रुपये खर्च हुये हैं। 19 लाख लोग उससे बाहर हैं। अभी उनके पास अपनी नागरिकता सिद्ध करने के कानूनी विकल्प शेष हैं। पर तब तक यह डेटा ही उड़ गया। इससे बहुत सी तकनीकी दिक्कतें आएंगी। जिस शोर शराबे और अफवाहबाज़ी पर असम में एनआरसी लायी गयी थी, उसका भी ढंग से क्रियान्वयन नहीं हो सका । निश्चित ही यह प्रशासनिक तंत्र की विफलता है।
हम एक अजीब सिस्टम में रह रहे हैं। जो चाहता है, फ़र्ज़ी डिग्री बनवा लेता है, फ़र्ज़ी जाति प्रमाणपत्र बनवा लेता है, दो जन्मदिन तो स्वीकृत फ्रॉड है, हलफनामे देकर झूठ बोल देता है, फ़र्ज़ी आधार और वोटर आईडी बनने के तो कई उदाहरण मिल जाएंगे और उसी तंत्र के भरोसे हम पूरे देश मे एनआरसी की ज़िद ठाने हुये क्रोनोलॉजी समझा रहे हैं !
होना तो यह चाहिए कि असम जिस राज्य में सबसे अधिक घुसपैठ हुयी है और जिसे लेकर वहां एक लंबा आंदोलन चला है जो बाद में असम समझौता 1985 के बाद शांत हुआ, तो वहां एनआरसी की प्रक्रिया एक मॉडल के रूप में पूरी की जाती और उसके उपयोगिता की खुले मन से समीक्षा के बाद ही सरकार, सभी दलों और पक्षों से विचार विमर्श के बाद देश के अन्य राज्यो में लागू करने के बारे में सोचती। लेकिन जब उद्देश्य ही केवल साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण हो और हर राजनीतिक निर्णय का चुनावी लाभ लेना हो तो ऐसी कवायद विवाद में पड़ ही जाती है। आज एनआरसी के विषय मे भी यही हो रहा है।
( विजय शंकर सिंह )
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