Saturday, 22 February 2020

जन आंदोलनों में सड़क पर शांतिपूर्ण तरीके से बैठ जाना आतंकवाद नहीं है सर. / विजय शंकर सिंह

आरिफ मोहम्मद खान गवर्नर साहब बहादुर के अनुसार अगर सड़कों पर आकर उसे घेर कर शांतिपूर्ण तरीके से बैठ कर, अपनी बात कहना  आतंकवाद है तो भारतीय जन आंदोलनों  की सारी परंपरा जो आज से सौ साल से भी पहले महात्मा गांधी के आदर्शों, सत्य, अहिंसा, असहयोग, जिसे डॉ लोहिया सिविल नाफरमानी कहा करते थे और संसद को आवारा और बर्बाद होने से बचाने के लिये सड़कों को सक्रिय और आबाद करने की बात किया करते थे, ये सब की सब एक झटके में आतंकी मानी जाने लगेगीं।   

आरिफ साहब का इस बयान पर कोई दोष नहीं है। वे सुलझे और पढ़े लिखे व्यक्ति हैं। कानपुर से वे जुड़े हैं तो हल्की फुल्की मेरी भी मुलाकात है। पर क्या करें वे। एक तो सोहबत का असर पड़ता ही है दूसरे सोहबत का असर दिखाना भी पड़ता है। 

दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह से लेकर 1975 के जेपी आंदोलन तक, यह सारे आंदोलन सड़कों पर ही हुए हैं। घरों की कैद से मुक्ति तभी होगी जब सड़के आबाद रहेंगी। भारत ही नही, दुनियाभर के जनआंदोलन सड़कों पर ही होते हैं। जब सरकार यह अधिकृत  रूप से सोच ले कि उसे एक इंच भी पीछे नहीं हटना है तो अपनी बात कहने के लिये जनता को सड़कों पर ही आना होता है। लेकिन उन्ही आदर्शों के साथ जो महात्मा गांधी ने 100 साल पहले एक अद्भुत प्रयोग के रूप में शुरू किया था। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह के प्रयोग पर एक पुस्तक भी लिखी थी, उसके एक एक अध्याय को शीघ्र ही आप सबसे साझा करूँगा।

© विजय शंकर सिंह 

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