छह साल से सरकार चलाने के बाद अगर आज भी भाजपा को दिल्ली विधानसभा का चुनाव जीतने के लिए पाकिस्तान की दया पर निर्भर औऱ दंगों के षड़यंत्र का सहारा लेना पड़े तो यह इस सरकार के निकम्मेपन का सबसे बड़ा प्रमाण है । सरकार और भाजपा की खुद की ही हालत ऐसी हो गयी है कि आखिर ये अपनी उपलब्धि बतायें भी तो क्या बतायें ? आर्थिक क्षेत्र में कुछ भी इनकी उपलब्धि नहीं है। सारी बड़ी सरकारी कंपनियों के बेचने के बाद, रिज़र्व बैंक से हर साल रिज़र्व धन लेने के बाद, एलआईसी और आईडीबीआई में अपनी, यानी हमारी आप की हिस्सेदारी बेचने की योजना के बाद, सड़क, रेल, जहाज सब कुछ ठेके पर बेच देने के बाद, हर जिले के बड़े अस्पताल को निजी स्वास्थ्य कम्पनियों को धीरे धीरे सौंपने के इरादे के बाद, अब यह क्या करेंगे यह इन्हें भी नहीं मालूम। खलिहर बैठे गांव के बिगड़ैल उत्तराधिकारी की तरह, यह सरकार धीरे धीरे गैर जिम्मेदार और अतीत के मिथ्या पिनक में डूबती जा रही है। सरकार में बैठे लोग, या तो पूरी तरह से अक्षम हैं, या किसी साज़िश के हिस्से बन चुके हैं और देश की आर्थिक स्थिति को जानबूझकर कर बर्बादी की ओर ले जा रहे है। लोगों का ध्यान उस बर्बादी की ओर न जाये इसी लिये यह हिन्दू मुस्लिम, और पाकिस्तान केंद्रित बातें करते हैं। आज इनके पास उपलब्धि के नाम पर बताने को कुछ भी नहीं है। यह सरकार उपलब्धि के दारिद्र्य से बुरी तरह पीड़ित है।
यह सोचना भी दुःखद और तकलीफदेह है कि हम गुंजा कपूर जैसों छद्मवेशी लोगों के अनुगामी व्यक्ति द्वारा संचालित सरकार के देश में हैं। झूठ, फरेब, दुष्प्रचार और फर्जीवाड़े का ऐसा निकृष्ट घालमेल आज तक नहीं दिखा था। मुखबिरी और जनआंदोलनों के प्रति, इनकी बर्बर सोच आज भी वही है, जो आज़ादी के आंदोलनों के समय थी।
अब डॉ राजेन्द्र प्रसाद का सरदार पटेल को लिखे एक पत्र का अंश पढिये। 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या हो चुकी थी। हत्यारा नाथूराम गोडसे गिरफ्तार किया जा चुका था। आरएसएस इस जघन्य हत्या के कारण संदेह के घेरे में था। उस पर प्रतिबंध लग चुका था। इसी कठिन समय मे डॉ राजेन्द्र प्रसाद जो संविधान सभा के प्रमुख थे ने तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल को एक पत्र लिखा था, जिसका एक अंश पठनीय है।
राजेन्द्र बाबू लिखते हैं,
" मुझे यह बताया गया है कि आरएसएस के लोग उपद्रव करने की योजना बना रहे हैं। उनमे से बहुत से लोगो मे मुसलमानों की तरह की वेशभूषा और उन्ही की तरह दिखने की योजना बना कर हिंदुओ पर हमला कर के दंगे फैलाने की योजना बना रखी है। इसी प्रकार से उन्हीं में से कुछ लोग मुसलमानों पर हमला कर के उन्हें दंगे के लिये भड़काएँगे। इस प्रकार के उपद्रव से हिंदुओं और मुसलमानों में दंगे की आग भड़केगी। "
( नीरजा सिंह द्वारा संपादित पुस्तक, नेहरू पटेल, एग्रीमेंट विदिन डिफरेंसेज, सेलेक्ट डॉक्यूमेंट एंड करेस्पोंडेंस, 1933 - 1950, एनबीटी, पृ.43 )
Dr. Rajendra Prasad to Sardar Vallabhbhai Patel on 14 March 1948:
“I am told that RSS people have a plan of creating trouble. They have got a number of men dressed as Muslims and looking like Muslims who are to create trouble with the Hindus by attacking them and thus inciting the Hindus. Similarly, there will be some Hindus among them who will attack Muslims and thus incite Muslims. The result of this kind of trouble amongst the Hindus and Muslims will be to create a conflagration.”
(Dr. Rajendra Prasad to Sardar Patel (March 14, 1948) cited in Neerja Singh (ed.), Nehru-Patel: Agreement Within Difference—Select Documents & Correspondences 1933-1950, NBT, Delhi, p. 43)
आज जब यही पुराना मोडस ऑपरेंडी मैं इन मित्रो को आजमाते हुये देखता हूँ तो लगता है जो ज़हर तब इनके अंदर था, वह अब भी है। तब तो बंटवारे की व्यथा थी, देश भर में फैले व्यापक दंगों, और दुनिया के सबसे त्रासद आबादी के पलायन, उजड़ने बसने का अपार दुख था, पर आज, जब देश को एक होकर विकास के पथ पर बढ़ जाने का हौसला होना चाहिए तो सरकार खुद ही ऐसे ऐसे कदम उठा रही है जिससे कि देश मे सामाजिक सद्भाव टूटे और हिंसक दंगो की वही आग भड़के जो देश मे, (भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश तीनो को सम्मिलित करते हुये ) 1937 से 1947 तक एक दशक तक भड़क चुकी है और देश का स्वरूप जला चुकी है।
लेकिन आज लोग समझदार है। कम से कम उंस दुर्भाग्यपूर्ण दशक की पीढ़ी से तो अधिक ही समझदार हैं, जो सरकार और सत्तारूढ़ दल की हर विभाजनकारी चाल के खिलाफ मजबूती से एक बने हुए हैं। 1947 का बंटवारा और पाक का बनना एक ऐतिहासिक भूल थी। कोई इतिहासकार अगर उस कालखंड के लोगों की मानसिकता को केंद्र में रख कर अगर कुछ लिखेगा तो वह एक दिलचस्प विवरण होगा।
यह एक बुरा वक़्त है। सामाजिक ताने बाने के लिये भी और रोजी रोटी शिक्षा स्वास्थ्य के लिये भी। आर्थिक मंदी का दौर तो झेला जा सकता है । विपन्नता और सम्पन्नता आती जाती रह्ती है। चपटी दुनिया के युग मे आर्थिक मंदी और विकास वैश्विक दबाव पर बहुधा निर्भर करता हैं। लेकिन समाज, गांव, घर और परिवार को धर्म जाति औऱ श्रेष्ठतावाद के मिथ्या मानदंडों पर बांटने का षडयंत्र हो और राज्य या सरकार खुद ही इस आग ल्गाऊ साज़िश मे शामिल दिखने लगे तो वह अंधा युग का ही दौर कहा जायेगा। यह उन्माद और सन्निपात और संक्रामक हो जाय, बेहतर है इस के खिलाफ लोग जाग जाएं।
सरकार का मुख्य कार्य ही है कि वह जनता के मूलभूत सनस्याओ की पहचान करे और उनके समाधान की ओर कोशिश करे। देश की औद्योगिक उन्नति हो। लोगों को शिक्षा स्वास्थ्य की सुगमता से सुविधा मिले और समाज मे अमन चैन हो। पर सरकार ने तो अर्थ व्यवस्था के बारे में सोचना ही छोड़ दिया है। उसकी हालत तो अब ऐसी हो गयी है कि सब कुछ बेचबाच कर के शीघ्रता से मुक्त हो जाय और लोग उसके इस सब बेचो अभियान को न देखें और न एकजुट हो कर कुछ विरोध कर पाएं इस लिये धर्म के आधार पर आपस मे भिड़ा दो। पर जो परिपक्व एकजुटता इधर जनता में आयी है वह एक सुनहरे भारत की खूबसूरत उम्मीद जगाती है। बस कोशिश यह रहे कि धर्म के ठेकेदार इस जागृति से दूर रहें।
© विजय शंकर सिंह
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