अमृतसर के दरबार साहब, स्वर्ण मंदिर के बाहर चबूतरे पर अमृतसर के मुस्लिम समाज को नमाज पढ़ने की अनुमति दी गयी। मुस्लिम समाज के लोग, सीएए एनआरसी के सम्बंध में सिक्ख समाज द्वारा खुलकर साथ आने और जगह जगह लंगर सेवा के लिये दरबार साहब के समक्ष अपना आभार व्यक्त करने गए थे। जब सब कुछ धर्म के ही चश्मे से देखा जाने लगा हो तो यह तस्वीर राहत देती है और हज़ार उम्मीदें बंधाती है।
लेकिन भाजपा के प्रवक्ता डॉ संवित पात्रा को यह बात पसंद नहीं आयी। उन्होंने कहा कि क्या मुस्लिम किसी मस्ज़िद के बाहर यज्ञ या कीर्तन की अनुमति देंगे ? यह उनकी सोच और उनका सवाल है। पर मैं अपना एक संस्मरण यहां जोड़ रहा हूँ।
बनारस में काशी विश्वनाथ मंदिर के निकट ज्ञानवापी मस्ज़िद है। अपने किशोरावस्था में और यूनिवर्सिटी के दिनों में भी जब वहां जाता था तो, वह मस्ज़िद इतने सुरक्षा के घेरे में नहीं थी। न तो लोहे के घेरे थे और न ही, सीआरपीएफ और पीएसी की इतनी तगड़ी व्यवस्था। लोग आराम से चले जाते थे और बाबा का दर्शन करके वापस।
उसी ज्ञानवापी मस्ज़िद के चबूतरे पर रोज़ शाम को देर रात तक नवरात्र में करपात्री जी महाराज का प्रवचन होता था। मेरे बड़े पिताजी रोज़ना उस प्रवचन में सम्मिलित होते थे। मुझे भी वे अपने साथ ले जाते थे। खूब भीड़ इकट्ठा होती थी। धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो का घोष लगता था। पर कोई उत्तेजना नही थी। यह सुनी सुनाई नहीं मेरे किशोरावस्था की आंखों देखी बात है।
भारत की विविधितापूर्ण संस्कृति में आप खुद को अलग रख कर सोच भी नहीं सकते। पाकिस्तान और बांग्लादेश जो भारत का ही एक अंग रह चुका है यह बहुलतावाद वहाँ भी अंदरखाने विद्यमान है। पर धर्म पर ही टिकी धर्मांध राजनीति ने जानबूझकर ऐसे उदार तत्वो का दमन और उपेक्षा करना शुरू किया और इसका परिणाम हम देख ही रहे हैं। धर्म केन्दित द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत पर गठित राज्य के दुष्परिणाम देखने के बाद भी हम उसी कुपथ पर जा रहे हैं, यह एक विडंबना है और आत्मघात भी।
( विजय शंकर सिंह )
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