Thursday, 20 February 2020

वारिस पठान का निंदनीय बयान अप्रत्याशित नहीं है / विजय शंकर सिंह

वारिस पठान का बयान आपत्तिजनक है और वह भी साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से दिया गया है। वारिस पठान का पूरा बयान पढा जाना चाहिए और उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए। वारिस पठान जैसे साम्प्रदायिक बयान संविधान के लिए चल रहे सीएए एनआरसी एनपीआर विरोधी आंदोलनों को ही क्षति और सरकार तथा भाजपा को लाभ पहुंचाएंगे। ऐसे बयानों की निंदा की जानी चाहिए और कानूनी कार्यवाही भी। धर्मनिरपेक्षता की बात कभी भी साम्प्रदायिक उन्माद के कलेवर में नहीं कही जा सकती है। वह क्षद्म है औऱ उसका उद्देश्य ही अलग है। 

हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के राष्‍ट्रीय प्रवक्‍ता वारिस पठान ने एक विवादित बयान दिया है। कर्नाटक के गुलबर्गा में एक जनसभा को संबोधित करते हुए वारिस पठान ने बिना नाम लिए कहा कि '100 करोड़ (हिंदुओं) पर 15 करोड़ (मुस्लिम) भारी पड़ेंगे।' उन्‍होंने कहा कि अगर आजादी दी नहीं जाती तो छीनना पड़ेगा। वारिस पठान के इस बयान के बाद राजनीति गरम हो गई है। ऐसे बयान  धार्मिक दूरियां बढ़ाते हैं और साम्प्रदायिक तनाव का वातावरण बनाते हैं। भाजपा को ज़रूरत पड़ने पर एआईएमआईएम ने मदद ही की है। 2014 में महाराष्ट्र में ओवैसी की पार्टी ने  भाजपा को विश्वास मत प्राप्त करने में सहायता की थी. 

ओवेसी साहब की पार्टी एआईएमआईएम, के विधयकों ने 2014 में सदन से बहिर्गमन कर के भाजपा के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की सरकार को गिरने से बचा लिया था। यह समीकरण अप्रत्याशित था। लेकिन सच भी है। राजनीति बड़ी अजीब होती है। नेता कभी नहीं लड़ते हैं। वे सभी वक़्त ज़रूरत पर अपने अपने स्वार्थानुसार एक दूसरे की मदद करते रहते हैं। बस हमें भटकाते, उलझाते और लड़ाते रहते हैं। 2014 में भी यह अचंभा हो चुका है। एआईएमआईएम भाजपा की बी टीम नहीं बल्कि भाजपा के लिये खेत तैयार करती हैं और जानबूझकर कर साम्प्रदायिक बातें करते हैं। उसी की उर्वरता पर खुद को राष्ट्रवादी पर मोहन भागवत जी के शब्दों में नाजीवादी विभाजनकारी फसल बोते हैं। वे ओवैसी साहब के दल के जहरीले बयानों से हिन्दुओ को डराते हैं। 

वारिस पठान के बयान पर गोदी मीडिया की बहसें और भाजपा के मित्रों के ट्वीट और बयान देख लें । सीएए की संवैधानिकता, एनआरसी की व्यवहारिकता, आंदोलनकारियों पर पुलिस की बर्बरता, जेएनयू, जामिया, एएमयू, बीएचयू आदि नामी गिरामी शिक्षा संस्थानों में सरकारी असम्वेदनशीलता पर कभी यह गोदी मीडिया कभी बहस नहीं करेगा। ओवैसी साहब एक बैरिस्टर हैं और वे तार्किक बातें करते हैं, अच्छी तक़रीर करते हैं, लेकिन उनके छोटे भाई और वारिस पठान जैसे प्रवक्ता आग लगाने का काम करते हैं। आज जब देशभर में कहीं भी साम्प्रदायिक तनाव नहीं है, और ध्रुवीकरण की सारी कोशिशें बेकार हो जा रही हैं तो वारिस पठान का यह बयान आया है। वारिस पठान चैनल रिपब्लिक के स्थायी पैनलिस्ट हैं। बिहार में चुनाव है। इसलिए बयानों में तनाव है ! 

शाहीनबाग सहित देशभर में हो रहे संविधान के पक्ष में धरने प्रदर्शन ने धर्म के स्वयंभू ठेकेदारों को असहज करना शुरु कर दिया है। महिलाओं का विशेषकर मुस्लिम महिलाओं का जिनके बारे में यह आम धारणा थी कि वे घरों के बाहर कम ही निकलती हैं, शाहीनबाग में उनके उत्साह, बहस के अंदाज़ और शांतिपूर्ण प्रदर्शन के हुनर ने उन स्वयंभू धार्मिक नेताओं को असहज करना शुरू कर दिया है। बात अब धर्म और परंपराओ से हट कर अधिकार, आज़ादी और कानून की होने लगी है तो उन्हें लगता है यह बात दूर तलक जाएगी। सुप्रीम कोर्ट के वार्ताकार वरिष्ठ एडवोकेट संजय हेगड़े, साधना रामचंद्रन और वजाहत हबीबुल्ला की टीम जब उनसे बात करने गयी तो पूरी बातचीत में जितनी गंभीरता, स्पष्टता और साफ शब्दों में वहां की महिलाओं ने धरने के महत्व को बताया वह प्रशंसनीय है।

संजय हेगड़े को कहना पड़ा कि वे धरने के खिलाफ नहीं हैं और न ही प्रतिरोध के अधिकार के खिलाफ हैं, बल्कि वे सड़क जाम से उत्पन्न नागरिक समस्याओं के समाधान के लिये उनके पास आये हैं।  बात अभी चल रही है। सरकार और सत्तारूढ़ दल की यह पूरी कोशिश है कि वह सीएए एनआरसी और एनपीआर के विरोध आंदोलनों को केवल मुस्लिम आंदोलन के रूप में प्रचारित करे पर गोदी मीडिया की तमाम कोशिश के बाद भी यह हो नहीं पा रहा है। वारिस पठान जैसे लोग जो कट्टरता और धर्मांधता की बात करते हैं वे जानबूझकर कर भाजपा को ही लाभ पहुंचाते हैं। 

© विजय शंकर सिंह 

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