यह एक नया दांव है कि व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के फैलाये झूठ के बिखर जाने के बाद, उन्ही मिथ्या निष्कर्षों को किसी गैर राजनीतिक व्यक्ति द्वारा पुनः हवा में उतारा जाय। यह दांव वही आजमा रहे हैं जो पिछले सात साल से एक तयशुदा योजना के अंतर्गत इतिहास के तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर फैला रहे हैं। हर व्यक्ति के पास न तो समय होता है और न धैर्य और अधिकतर के पास तो रुचि का अभाव भी रहता है । वह उस फैलाये झूठ को पढ़ता है और तुरन्त बिना यह सोचे कि यह सत्य है या असत्य, उसे फैला देता है। घातक वायरस के एक अनजान कैरियर की तरह व्हाट्सएप पढ़ने वाला व्यक्ति, उस समय हो जाता है। न वह झूठ के बारे में कोई दरयाफ्त करता है और न उसे इसकी जरूरत होती है। ऐतिहासिक तथ्यों का यह पकाया हुआ झूठ उसके दैनंदिन कार्यों में कोई हस्तक्षेप भी नहीं करता है, लेकिन यह मिथ्यावाद उसके अवचेतन में काई की तरह जम जाता है औऱ वह इतिहास और उसके तथ्योँ को उसी झूठ के आलोक में देखता है और उसी पर अड़ा रहता है। धीरे धीरे झूठ को तो बिखरना ही है। पर जब यह झूठ बिखरने लगता है तो फिर गोएबल्स के करो, और मत करो के सिद्धांत पुनः खंगाले जाते हैं और उन्ही में से एक नया दांव सामने लाया जाता है।
इस बार नेहरू पटेल के रिश्ते को लेकर जो कुछ कहा गया उसके केंद में विदेश मंत्री है। विदेश मंत्री जयशंकर एक प्रोफेशनल और काबिल डिप्लोमैट हैं। वे राजनीतिक व्यक्ति भी नहीं हैं। उनका अध्ययन और उनकी समझ भी कम नहीं है। पर उनके इस ट्वीट ने कि नेहरू पटेल को अपने मंत्रिमंडल में जगह नहीं देना चाहते थे, अधिकतर लोगों को सच ही लगेगी, क्योंकि वे विवाद रहित हैं। जबकि सत्य यह है कि यह कथन भी उनका नहीं है और यह कथन नारायणी बसु द्वारा लिखी एक किताब जो वीपी मेनन की जीवनी है पर आधारित है। यह कथन तत्कालीन ऐतिहासिक तथ्यों से मेल भी नहीं खाता है। पर अनावश्यक रूप से जयशंकर जी का विवादित हो जाना दुःखद है। नेहरू पटेल रिश्तों के बाद यह गिरोह गांधी भगत सिंह पर पुनः सक्रिय हुआ है। फिर एक किताब आयी है जिसमे कहा गया है कि गांधी जी ने भगत सिंह को फांसी से बचाने की कोई कोशिश नहीं की। इस दांव के केंद्र में भी एक अराजनीतिक व्यक्ति है।
विदेश मंत्री जयशंकर ने एक ट्वीट कर के कहा है कि,
" मुझे एक पुस्तक से ज्ञात हुआ है कि 1947 मे जो पहली कैबिनेट बनी थी, उसमे सरदार बल्लभ भाई पटेल का नाम नहीं था। यह एक बहस का मुद्दा है। पुस्तक की लेखक इस तथ्य के उद्घाटन पर दृढ़ हैं। "
ट्वीट इस प्रकार है,
“Learnt from the book that Nehru did not want Patel in the Cabinet in 1947 and omitted him from the initial Cabinet list. Clearly, a subject for much debate. Noted that the author stood her ground on this revelation.”
जयशंकर हाल ही में प्रकाशित एक नयी पुस्तक जो वीपी मेनन की जीवनी पर लिखी गयी है के संदर्भ में यह तथ्य बता रहे थे। पुस्तक है, वीपी मेनन, द अनसंग आर्किटेक्ट ऑफ मॉडर्न इंडिया, और लेखिका हैं, नारायणी बसु। जयशंकर इस पुस्तक के विमोचन के अवसर पर मुख्य अतिथि थे। उनके इस ट्वीट का आधार और संदर्भ भी यही पुस्तक है।
पुस्तक की लेखिका, नारायणी बसु, वीपी मेनन की प्रपौत्री हैं और वीपी मेनन, भारत विभाजन, आज़ादी के समय और रियासतों के विलयीकरण के अत्यंत महत्वपूर्ण और चुनौती भरे समय में, लॉर्ड मॉन्टबेटन के स्टाफ में थे और साथ ही, वे सरदार पटेल और वायसराय / गवर्नर जनरल के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी थे। भारत विभाजन, शक्ति के हस्तांतरण, रियासतो के विलयीकरण और इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 के लगभग प्रत्यक्षदर्शी भी थे। वे ब्रिटिश कालीन सिविल सेवा के एक उत्कृष्ट अफसर थे। उन्होंने ट्रांसफर ऑफ पॉवर और इंटीग्रेशन ऑफ इंडियन स्टेटस जैसी दो महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी हैं, जो उस काल खंड की सबसे प्रमाणित दस्तावेजी विवरण मानी जाती हैं। मैंने यह दोनो पुस्तकें खुद भी पढ़ी हैं। इन पुस्तकों में कहीं पर भी वीपी मेनन ने उस तथ्य का उल्लेख नहीं किया है जो विदेश मंत्री जय शंकर बता रहे हैं और नारायणी बसु ने लिखा है। नारायणी बसु के उक्त तथ्य का स्रोत क्या है यह तो पुस्तक पढ़ने पर ही पता चलेगा। मैंने नारायणी बसु की लिखी पुस्तक जिसके विमोचन के समय यह ट्वीट विदेश मंत्री ने किया है अभी नहीं पढ़ी है, अतः उसपर कोई टिप्पणी नहीं कर रहा हूँ।
नारायणी बसु की सद्यः प्रकाशित और विमोचित पुस्तक में यह दावा किया गया है कि, ' जवाहरलाल नेहरू ने जब पहला मंत्रिमंडल बनाया तो उसमें सरदार पटेल का नाम नहीं रखा और संभावित मंत्रिमंडल की सूची वायसराय को भेज दी।' जब इसकी जानकारी वीपी मेनन को हुयी तो, नारायणी बसु के अनुसार, ' वीपी मेनन, वायसराय लार्ड माउंटबेटन के पास गए और यह कहा कि, आप तो इससे उत्तराधिकार का संघर्ष शुरू करा देंगे। कांग्रेस दो भागों में बंट जाएगी।' पुस्तक में यह दावा किया गया है कि महात्मा गांधी के हस्तक्षेप के बाद, सरदार पटेल का नाम मंत्रिमंडल की सूची में शामिल किया गया।
जैसे ही ट्वीट वायरल हुआ इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने इसे मिथ्या, दुष्प्रचार और फ़र्ज़ी ऐतिहासिक तथ्य बताया। उन्होंने यह भी कहा कि विदेश मंत्री को भाजपा आईटी सेल की तरह फ़र्ज़ी खबरें और फ़र्ज़ी ऐतिहासिक तथ्य नहीं उद्धृत करने चाहिए। इसी पर आज द प्रिंट के अंग्रेजी संस्करण में प्रोफेसर श्रीनाथ राघवन ने एक लेख भी लिखा है।
रामचंद्र गुहा के ट्वीट के जवाब में विदेश मंत्री ने नारायणी बसु की उसी किताब का हवाला दिया जिसके विमोचन में वे गए थे। इस पर रामचंद्र गुहा ने, विदेश मंत्री को संबोधित करते हुये कहा कि, " सर आप जेएनयू से पीएचडी हैं, और आपने मुझसे अधिक किताबें पढ़ी होंगी, अब आप नेहरू और पटेल के पत्राचार को भी पढ़ लीजिए ताकि आप को यह ज्ञात हो जाय कि तत्कालीन समय मे क्या हो रहा था औऱ नेहरू तथा पटेल के बीच कितने आत्मीय रिश्ते थे और यह दोनों भारतीय लोकतंत्र के दो महत्वपूर्ण स्तंभ भी थे। "
अब वीपी मेनन की जीवनी पर लिखी पुस्तक में कही गयी बात की ऐतिहासिक तथ्यता की पड़ताल करते हैं। नेहरू ने जब अपने मंत्रिमंडल के गठन की बात शुरू की तो 1 अगस्त 1947 को उन्होंने सरदार पटेल को एक पत्र लिखा। वह पत्र उन दोनों महान नेताओ के आपसी संबंधों की गहराई को स्वतः स्पष्ट कर देता है। अगस्त 1, 1947 को जवाहरलाल नेहरू ने सरदार पटेल को मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिये एक औपचारिक पत्र लिखा ।
नेहरू लिखते हैं,
"As formalities have to be observed to some extent, I am writing to invite you to join the new Cabinet. This writing is superfluous because you are the strongest pillar of the Cabinet."
" कुछ हद तक औपचारिकताओं का भी निर्वाह किया जाना चाहिए, अतः मैं यह पत्र मैं आप को नये मंत्रिमंडल में सम्मिलित होने के लिये आमंत्रित करने हेतु लिख रहा हूँ। हालांकि यह पत्र अनावश्यक है क्योंकि आप मंत्रिमंडल के सबसे मज़बूत स्तंभ रहेंगे। "
नेहरू के पत्र की भाषा ही दोनों महान नेताओ के बीच की केमेस्ट्री और आत्मीयता को स्पष्ट कर देती है। उन्होंने पटेल को न केवल अपने मंत्रिमंडल में आमंत्रित ही किया बल्कि कैबिनेट का सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ भी बताया। सरदार पटेल ने नेहरू के पत्र में जो पत्र लिखा, उसे देखें। पटेल ने नेहरू के 1 अगस्त 1947 के पत्र का उत्तर 3 अगस्त 1947 को दिया।
सरदार पटेल लिखते हैं,
"Many thanks for your letter on the first instance. Our attachment and affection for each other and our comradeship for an unbroken period of nearly 30 years admit of no formalities. My services will be at your disposal. I hope for the rest of my life, you will have unquestioned loyalty and devotion from me in the cause for which no man in India has sacrificed as much as you have. Our combination is unbreakable and therein lies our strength. I thank you for the sentiments expressed in your letter."
" पहले तो आप के पत्र के लिये आप को बहुत बहुत आभार। पिछले 30 साल से हमारा एक दूसरे के प्रति जो निर्बाध स्नेह, साथ और लगाव रहा है कि वह किसी औपचारिकता का मोहताज नहीं है। मेरी सेवाएं आप के लिये समर्पित हैं। मैं आशा करता हूँ कि जीवन के शेष समय मे भी मेरी अटूट निष्ठा और भक्ति आप के प्रति रहेगी, क्योंकि भारत के लिये जितना कुछ आपने किया है उतना किसी ने भी नहीं किया है। हमारी मित्रता अटूट है और यही हमारी ताक़त है । आप ने जो भावनाएं अपने पत्र में व्यक्त की हैं, मैं उसके लिये आप को धन्यवाद देता हूँ। "
अगस्त 3, 1947 के सरदार पटेल का पत्र मिलने के बाद, जवाहरलाल नेहरू ने लॉर्ड माउंटबेटन को अपने मंत्रिमंडल की जो सूची भेजी उसमे निम्न मंत्रियों के नाम थे।
1. सरदार बल्लभभाई पटेल
2. मौलाना अबुल कलाम आजाद.
3. डॉ राजेन्द्र प्रसाद
4. डॉ जॉन मथाई
5. श्री जगजीवन राम
6. सरदार बलदेव सिंह
7. श्री सीएच भाभा
8. राजकुमारी अमृत कौर
9. श्री रफी अहमद किदवई
10. डॉ बीआर अम्बेडकर
11. डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी
12. श्री शनमुखम चेट्टी
13. श्री नरहरि विष्णु गाडगिल
14. जवाहरलाल नेहरू
यह सूची ट्रांसफर ऑफ पावर( 1942 - 47 ) जिसमे तत्कालीन काल खंड के सभी महत्वपूर्ण दस्तावेज संग्रहित हैं के खण्ड 12 के पृष्ठ 501 और 502 पर उपलब्ध है। फ़ोटो भी नीचे दे दे रहा हूँ।
उक्त सूची में नेहरू ने पटेल का नाम सबसे ऊपर और अपना नाम सबसे नीचे रखा। यह नेहरू की विराट सोच और सबको साथ लेकर चलने की मनोवृत्ति को भी बताता है। इसी पहली कैबिनेट में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी थे, जो ठीक पांच साल पहले जब भारत छोड़ो आंदोलन सन 1942 में चल रहा था तो वे उस आंदोलन के खिलाफ थे, और एमए जिन्ना के सहयोगी थे। लेकिन जब आज़ाद भारत का मंत्रिमंडल बनने का समय आया तो डॉ मुखर्जी को भी जवाहरलाल नेहरू ने अपनी कैबिनेट में जगह दी। उन्हें आज की तरह न तो देशद्रोही कहा और न ही गद्दार कहा। यह सूची और पत्र जवाहरलाल नेहरू द्वारा वायसराय को 4 अगस्त 1947 को भेजा गया है।
14 अगस्त 1947 को वाइसरॉय / गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबेटन, पाकिस्तान के गठन के जश्न में भाग लेने कराची, गए थे तो नेहरू ने जब मंत्रियों को उनके विभाग बांटे और उनके हैसियत की घोषणा की तो सरदार पटेल को गृहमंत्री और मंत्रिमंडल में उनकी हैसियत नम्बर दो की रखी। कैबिनेट के ऑफिस नोट में जब मंत्रिमंडल के विभागों का बंटवारा हुआ तो लिखा गया,
1. जवाहरलाल नेहरू को प्रधानमंत्री, साथ ही विदेश विभाग, कॉमनवेल्थ संबंध विभाग और वैज्ञानिक शोध विभाग भी उन्होंने अपने पास रखा।
2. सरदार बल्लभभाई पटेल को गृह, सूचना और प्रसारण, राज्यों से जुड़े विभाग दिए गए । रियासतों के विलयीकरण का जिम्मा भी सरदार पटेल को दिया गया था।
3. डॉ राजेन्द्र प्रसाद को खाद्य और कृषि
4. मौलाना अबुल कलाम आजाद को शिक्षा।
बाद में डॉ राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के सभापति और डॉ आंबेडकर संविधान ड्राफ्ट कमेटी के अध्यक्ष बने।
भाजपा का पूरा आईटी सेल का एक तयशुदा एजेंडा है। उनके कुछ नियमित टास्क हैं। जैसे, प्रमुख रूप से,
●गांधी जी ने भगत सिंह की फांसी रुकवाने के लिये कोई प्रयास नहीं किया।
● नेहरू, सुभाष और आज़ाद हिंद फौज के इतने खिलाफ थे कि उन्होंने इंग्लैंड के प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली को सुभाष बाबू के बारे में युद्धबन्दी लिखा और वादा किया कि जब वे मिलेंगे तो उन्हें इंग्लैंड को सौंप दिया जाएगा।
एक फ़र्ज़ी पत्र भी सोशल मीडिया पर खूब घुमाया गया जिसमें जैसी अंग्रेजी लिखी है वह इतनी अशुद्ध है कि साफ पता चलता है कि वह आईटी सेल की ही करामात है।
● पटेल और नेहरू में बिल्कुल नहीं पटती थी। नेहरू ने गांधी को पटा कर प्रधानमंत्री का पद हथिया लिया। और अब नेहरू ने पटेल को गृहमंत्री बनाने के लिये आनाकानी की थी। अगर पटेल प्रधानमंत्री बने होते तो देश की तस्वीर ही दूसरी होती।
इसी प्रकार के अनेक दुष्प्रचार फैलाये जाते हैं।पर दुष्प्रचार फैलाने वाले मूर्ख यह नहीं सोच पाते कि आजादी के संग्राम के इतिहास के लगभग सभी दस्तावेज और पत्राचार प्रकाशित हो चुके है। जो मूल दस्तावेज हैं वे नेशनल आर्काइव दिल्ली औऱ ब्रिटेन में सुरक्षित है। उस काल खंड के सभी महत्वपूर्ण राजनेताओं ने अपनी आत्मकथाएं और संस्मरण लिखे हैं। बहुत कुछ साम्रग्री नेट पर उपलब्ध है। थोड़ी ही मेहनत से आईटी सेल के दुष्प्रचार का मायावी असर खत्म हो जाता है।
© विजय शंकर सिंह
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