Friday, 7 February 2020

शाहीन ( बाज, ईगल ) के बारे में / विजय शंकर सिंह

दिल्ली का शाहीन बाग आजकल खबरों में है। शाहीन कहते हैं बाज या ईगल को। यह एक अनोखा पक्षी होता है जो अन्य पक्षियों से बिल्कुल अलग होता है। जन्म से ही इसे इस रूप में प्रकृत ढालती है कि यह अपनी विशिष्टता बनाये रखता है। कहते हैं, शाहीन,बाज़ (ईगल) मादा के बच्चों का जब उड़ना सीखने का समय नज़दीक आता है तब उनकी माँ उनको उठाकर दस हज़ार फीट की ऊंचाई पर ले जाती है और फिर,  वहां से नीचे ज़मीन की तरफ फेंक देती है बच्चा नीचे गिरना शुरू होता है। वह अपने नन्हे परोंं को फड़फड़ाकर अपने आपको बचाने और उड़ने की कोशिश करता रहता है मगर दस हज़ार फीट की बुलंदी पर उड़ना बच्चों का खेल नहीं है। दुनिया में सिर्फ यही एक अनोखा पक्षी है जो, जो धरती से इतनी ऊंचाई पर  उड़ता है। किसी अन्य पक्षी के बारे में अभी ऐसी कोई जानकारी नहीं मिल पाई है। बाज का बच्चा तेज़ी से नज़दीक आती ज़मीन को देखकर सहम जाता है,अपने परों को और तेज़ी से फड़फड़ाना  शुरू कर देता है।

अपनी आखिरी कोशिश करता है फिर आस पास हवा में अपनी नजरें घुमाकर अपनी माँ को ढूंडने की कोशिश करता है मगर उसकी माँ कहीं नज़र नहीं आती है। अब अपने बचने के लिये उसे जो भी प्रयत्न करना है ख़ुद ही करना है। जान  बचानी है तो उड़ना है। वरना धरती से टकरा कर तो मरना ही है। बच्चा अपनी कोशिश जारी रखता है मगर सफलता नहीं मिलती है।  यहाँ तक की ज़मीन करीब पहुँच जाती है। उसके ज़मीन से टकराने और बिखर जाने में बस कुछ ही पल बाक़ी होते है। वह अपनी आँखें बंद कर लेता है। उसे इतने में अपने नज़दीक दो परों की फडफडाहट सुनाई देती है। उसे महसूस होता है किसी ने उसे अपने पंजों में दबोच लिया है। अब वो गिर नहीं रहा। उसकी माँ उसे गिरने से पहले दोबारा दबोच लेती है और वापस घोंसले में पहुंचा देती है। यह अभ्यास उस वक़्त तक जारी रहता है जब तक बच्चा बेखौफ़ होकर उड़ना सीख नहीं लेता।

कहा जाता है, मादा ईगल सिर्फ उड़ने तक उसका साथ नहीं देती बल्कि जीवन साथी चुनने में अपने नर साथी के साथ उसकी योग्यताओं को परखती है। किसी नर ईगल से मिलन से पहले मादा ईगल एक पत्थर को बुलंदी से फेंकती है। ये नर ईगल के लिए चेलेंज होता है के वो ये पत्थर पकड़ कर दिखाए जो ज़मीन पर गिरता है।जहां हर चीज़ की गति, गुरुत्वाकर्षण की वजह से बढती जाती है जो की 200 किलो मीटर प्रति घंटा भी हो सकती है। मगर ईगल की रफ़्तार इससे कई ज़्यादा 300 किलो मीटर प्रती घंटा तक हो सकती है। नर ईगल निहायत ही तेज़ी से ज़मीन की तरफ जाकर उस पत्थर को ले आता है। मादा ईगल यह प्रतियोगिता और आज़माईश केवल एक बार ही नहीं बल्कि उस समय तक जारी रखती है जबतक उसे ये इत्मीनान ना हो जाए के नर ईगल उसे पाने की योग्यता रखता है या नहीं।

शाहीन (ईगल) एकदम निडर और बहाद्दुर परिंदा है। डर क्या होता खौफ किस चिड़िया का नाम है? बाज नहीं जानता। शिकार करते वक़्त वो यह कभी नहीं सोचता कि  उसका शिकार कौन है? कितना वज़नी है और किस किस हथियार से लैस है। ये मरा हुआ शिकार बिल्कुल नहीं खाता है, बल्कि ख़ुद ताज़ा शिकार करके खाता है। इसकी निगाहें इंसान की निगाहों से पांच गुना ज़्यादा तेज़ होती है।  इसका शिकार जब इसकी नज़रों में आ जाता है तो उसका बचना तकरीबन ना मुमकिन हो जाता है। बड़े जानवरों के शिकार के लिए यह अमूमन बुलंदी से गिराने का तरीक़ा इस्तेमाल करता है।इसके इस स्ट्रेटेजी से कछुवे जैसी मोटी चमड़ी रखने वाला जंतु भी सुरक्षित नहीं रहता। ये बुलंदी पर ले जाकर उन्हें चट्टानों पर पटख देता है जिनसे उनकी चमड़ी बिखर जाती है।

तूफ़ान के आने पर तमाम परिंदे सुरक्षित जगह तलाश करते है लेकिन शाहीन तूफानों से न घबराने वाला पक्षी है। तूफानों की तीखी और तेज़ हवाओं से इसे बुलंदी पर उड़ने के लिए कम मेहनत करनी पडती है। ये परिंदा बजाए घबराने के तूफानों से मोहब्बत करता है। ये परिंदा क़ुदरत का एक बेहतरीन शाहकार है। जिससे बहुत कुछ सीखा जा सकता ह। यह जानकारी एक पक्षीशास्त्री ओरिन्थोलॉजिस्ट मित्र से बात चीत के दौरान मिली है जो आप सबसे साझा की जा रही है।

( विजय शंकर सिंह )

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