ग़ालिब - 110.
क्या वह नमरूद की खुदाई थी,
बंदगी में मेरा भला न हुआ !!
Kyaa wah namarood kee khudaai thee,
Bandagee mein, meraa bhalaa na huaa !!
- Ghalib
क्या ईश्वर की सत्ता भी नमरूद के सत्ता की तरह मिथ्या और बिना किसी काम की है कि इतनी प्रार्थना के बाद भी मेरा कुछ भी कल्याण नहीं हुआ।
ग़ालिब तो अपनी बंदगी की विफलता से निराश हैं। एक हताशा सी भर गयी है उनमें। उनकी पारिवारिक परिस्थितियां ऐसी थीं कि उन्हें बार बार कभी अर्थकष्ट तो कभी मानहानि तो कभी प्रियजन वियोग सहना पड़ा। वे खीज गये हैं। ईश्वर भी तमाम इबादत के बाद सन्नाटा खींचे बैठा है। वे ईश्वर की दुनिया को नमरूद की खुदाई कह बैठते हैं। यह डगमगाते विश्वास का संकेत है। पर ईश्वर सुनता कब है पता नहीं।
नमरूद का जिक्र यहां है तो थोड़ी जानकारी नमरूद की भी। कहते हैं नमरूद बेबीलोन का बादशाह था और उसने चार सौ साल तक बादशाहत की । वह खुद को ही ईश्वर कहता था और ईश्वर जैसी किसी सत्ता पर उसका यकीन नहीं था। वह हजरत इब्राहिम का समकालीन था। हजरत इब्राहीम ने उसे ईश्वर के राह पर लाने की बहुत कोशिश की। पर वह जिद पर अड़ा रहा। वह एक जिद्दी और स्वेच्छाचारी सत्ता का प्रतीक बन गया ।
उसी को ग़ालिब कहते हैं कि क्या सब पर रहम करने वाले खुदा की सत्ता या खुदाई अब नमरूद की तरह ठस, स्वेच्छाचारी और प्रजापीड़क बन गयी है कि अब हर इबादत वहां अनसुनी हो रही है।
इसी से मिलता जुलता यह दोहा भी पढ़ ले। कबीर तो कर्मकांड और पाखंड के तो सतत विरोधी थे।
यहु सब झूठी बंदगी, बदिया पंच निवाज़,
साचै मारे झूठी पढ़ि, काज़ी करें अकाज !!
( कबीर )
हर प्रकार की पूजा प्रार्थना और पांच बार की नमाज पढ़ना व्यर्थ है। नमाज पढ़ पढ़ कर भी लोग, सत्य या ईश्वर का हनन कर रहे हैं। काज़ी को ही देख लीजिये, न्याय के नाम पर वह अन्याय करता है।
( विजय शंकर सिंह )
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