घोरावल जाते समय रास्ते मे प्रियंका गांधी को रोक दिया गया और बताते हैं कि उन्हें धारा 144 सीआरपीसी के उल्लंघन पर धारा 188 आइपीसी के अंतर्गत गिरफ्तार कर लिया गया। इस धारा में मुचलका जिसे पर्सनल बांड कहते हैं भर कर मजिस्ट्रेट छोड़ देता है। कानून की यह धारा बेहद सामान्य है पर जब आसामान्य व्यक्ति गिरफ्तार होता है तो उसके छोड़ने और बंद करने का निर्णय लखनऊ से या कहे पंचम तल या मुख्यमंत्री के संकेत से ही होता है। प्रियंका छोड़ी जाएंगी या कारागार भेजी जाएगी या चुनार के किला गेस्ट हाउस को ही कारागार में बदल दिया जाएगा यह मुझे पता नहीं। पर फिलहाल वे वही निरुद्ध हैं।
किले के गेस्ट हाऊस, जहाँ वे बैठी बतायी जा रही हैं, अंधकार है, बिजली नहीं है, और कुछ इस प्रकार की भी खबरें आ रही हैं कि पानी भी नहीं है। चुनार का किला एक ऐतिहासिक किला है और भर्तृहरि से समय से इसका उल्लेख मिलता है। इसकी ऐतिहासिकता पर फिर कभी। किले में लोक निर्माण विभाग का एक गेस्ट हाउस है। यह आरामदेह और बड़ा गेस्ट हाउस है। गेस्ट हाउस के सामने एक प्रशस्त कोर्टयार्ड है। सामने बहती हुगी गंगा और दूर तक फैले खेत और गांव है। गंगा इस किले से लग कर बहती हैं। किला एक छोटी पहाड़ी पर स्थित है। किले में ही पुलिस ट्रेनिंग स्कूल है। उसी गेस्ट हाउस में मैं भी 1984 में तीन महीने तक जब तक मुझे सरकारी आवास नहीं मिला था, रह चुका हूं। मैं तब डिप्टी एसपी चुनार के पद पर नियुक्त था।
वहां तव बिजली कम आती थी। रूरल फीडर होने के कारण कटौती बहुत होती थी। अब क्या स्थिति है मुझे पता नहीं। इधर सालों से मैं वहां नहीं गया हूँ। प्रियंका गांधी को अगर उसी जगह पर बंदी बना कर रखना ही था तो सरकार को बिजली, पानी, सुरक्षा आदि की व्यवस्था ठीक ढंग से करनी चाहिये । वहीं पुलिस ट्रेनिंग स्कूल में जेनरेटर की व्यवस्था होगी ही, उसी से अस्थायी बिजली आपूर्ति दी जा सकती है। पर अगर ऐसा करने का जिला प्रशासन को कोई निर्देश हो तभी यह संभव है।
प्रियंका गांधी, एसपीजी प्रोटेक्टी हैं और उनके सुरक्षा के मापदंड अलग होते हैं। एसपीजी एक्ट में ऐसे समय के लिये भी दिशा निर्देश हैं। एसपीजी प्रोटेक्टी को जब भी गिरफ्तार किया जाता है तो स्थानीय पुलिस जब उंस प्रोटेक्टी को अपनी अभिरक्षा में ले लेती है तो, एसपीजी को लिखकर देना पड़ता है कि वे अब स्थानीय पुलिस की अभिरक्षा में हैं। एसपीजी की जिम्मेदारी समाप्त हो जाती है। फिर जब वह प्रोटेक्टी अभिरक्षा से मुक्त किया जाता है तो बाकायदा, एसपीजी को सौंपा जाता है। यह नियम कायदे सभी संबंधित अधिकारियों को पता होता है।
घोरावल के इस जघन्य और सामूहिक नरसंहार पर और भी राजनीतिक प्रतिक्रियायें होंगी। और भी विपक्षी दलों के नेता वहां जाएंगे। यह कोई असामान्य प्रतिक्रिया नहीं है। ऐसी राजनीतिक गतिविधियां, लगभग सभी जघन्य हत्याकांड़ों में होती रही हैं। उन नेताओ की गिरफ्तारी भी होती थी, और वे गेस्ट हाउस या पुलिस लाइन में कैद कर रखे भी जाते रहे हैं। यह असहमति, और विरोध की लोकतांत्रिक प्रक्रिया का अंग है। इसपर सरकार को कोई ऐतराज नहीं होना चाहिये।
लेकिन इस मामले में तरह तरह की जिस प्रकार से खबरें आ रही हैं कि प्रियंका गिरफ्तार नहीं हैं, फिर कहा जा रहा है कि मुचलका भरें और मुक्त हों, यह अपने आप मे ही विरोधाभासी कथन हैं। जब गिरफ्तारी नहीं तो रोका क्यों और जब रोका नहीं तो मुचलका क्यों ? सरकार खुद ही भ्रम में है। सरकार को घटनास्थल पर वहां की परिस्थिति के अनुसार किसी को भी जाने से रोकने का अधिकार है पर वह अधिकार कानून के अनुसार ही अमल में लाया जाना चाहिये, न कि जिद और प्रतिशोध से।
© विजय शंकर सिंह
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