प्रधानमंत्री मोदी जी अक्सर विवादित बातों पर मौन हो जाते हैं। यह एक अच्छी कला है। बुद्ध भी विवादित बातों पर लगभग मौन हो जाते थे। पर यह मौन कभी कभी अपराध या आरोप के स्वीकृति का भी आधार समझ ली जाती है। जब आप सत्ता या अधिकार सम्पन्न होते हैं तो स्वाभाविक रूप से विरोधियों की एक जमात खड़ी हो जाती है। यह जमात कुछ तो सच जानने के लिये या कुछ तो आप को विवाद में घसीट कर अपना लक्ष्य पाने के लिये ऐसा काम करती है। कभी कभी जब आप विवादित विषयों पर मौन धारण कर लेते हैं तो, या तो वह विवाद दब जाता है या आंधी के बगूले की तरह गुज़र जाता है। पर कभी कभी वह इतना प्रचारित हो जाता है कि अपने आयतन से भी अधिक आकार ले लेता है। आज प्रधानमंत्री जी एक ऐसे ही विवादित विषय पर चुप हैं।
यह विषय है कश्मीर का और इसके दो मुख्य पात्र हैं, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप। मौका है प्रेस कांफ्रेंस का। इस अवसर पर इमरान अपने सरपरस्त को खूब आदर सहित खुशामदी मुद्रा में यह कह रहे हैं कि अमेरिका अगर भारत पाक और कश्मीर के विवादित मुद्दे में अपनी मध्यस्थता करे तो यह विवाद सुलझ सकता है और उपमहाद्वीप में शांति स्थापित हो सकती है। ट्रम्प भी गौर से सुनते हैं और फिर यह कहते हैं कि
" पिछली बार जब मोदी उनसे मिले थे तो उन्होंने, मुझसे यह पूछा था कि क्या आप इस मामले में कोई मध्यस्थता या आर्बिट्रेशन करना चाहेंगे ? "
यह बयान जैसे ही हवा में आया वैसे ही इसकी प्रतिक्रिया हुयी। इसका यह निष्कर्ष निकाला गया कि मोदी जी ने ट्रंप को पंच बनने का ऑफर दिया है। इसी के बाद भारत मे इस बयान की तगड़ी प्रतिक्रिया हुयी।
हमारे विदेश मंत्रालय को इस तूफान का अंदेशा था, इसलिए उसने तुरन्त खंडन जारी कर के कह दिया कि प्रधानमंत्री ने ऐसी कोई बात नहीं कही है। 23 जुलाई को संसद में विदेशमंत्री एस जयशंकर ने भी यही कहा कि ऐसी कोई बात नहीं हुयी है।
विदेशमंत्री की संसद में कही बात को न मानने का कोई औचित्य नहीं है। मोदी जी ने यह प्रस्ताव नहीं दिया था। यह हम सब मानते हैं। पर आज फिर राष्ट्रपति ट्रंप के सलाहकार ने यह बयान देकर इस विवाद को पुनः हवा दे दी कि उनके राष्ट्रपति झूठ नहीं बोलते हैं। यानी ट्रम्प ने जो कहा है वह उनके सलाहकार के अनुसार सच है।
ट्रंप की क्षवि दुनियाभर में एक बड़बोले और झूठ बोलने वाले नेता की है। अमेरिकी मीडिया ने तो उनके झूठ की गिनती भी कर रखी है। अब इस झूठ से हमारे प्रधानमंत्री जी की क्षवि और भारत के कश्मीर के स्टैंड पर जो शिमला समझौते से लगातार चला आ रहा है, संदेह उठ खड़ा हो गया है। इस संदेह का निवारण किया जाना आवश्यक है।
ट्रम्प जिस मुलाकात का उल्लेख कर रहे हैं वह रूबरू मुलाक़ात थी और जो समय वह बता रहे हैं वह जी 20 सम्मेलन का है। अब उस मुलाकात में क्या तबादला ए खयालात हुआ यह या तो ट्रम्प जानते हैं या हमारे प्रधानमंत्री जी। ट्रम्प ने मोदी जी को संदर्भित कहते हुये जो बात कही है वह बात मोदी जी ने कभी कहा ही नहीं है, जैसा कि सरकार ने संसद में कहा है। अगर हमारे विदेशमंत्री के बयान के बाद अमेरिकी कैंप में चुप्पी हो जाती तो यह समझा जा सकता था कि ट्रम्प ने अपने स्वभाव के अनुरूप ही यह कह दिया। पर दूसरे ही दिन ट्रंप के सलाहकार का यह बयान कि ट्रम्प झूठ नहीं बोलते हैं, आ गया। अब इस चोरी और फिर सीनाजोरी जैसे बयान के बाद हमारे प्रधानमंत्री का बोलना और इसका युक्तियुक्त खंडन करना ज़रूरी हो गया है।
यह खंडन इसलिए नहीं कि विपक्ष संसद में हंगामा कर रहा है, बल्कि इसलिए कि दुनिया की सबसे बड़ी ताकत अमेरिका को यह एहसास हो कि वे झूठ बोल कर, या अपने कूटनीतिक लाभ के लिये किसी भी संप्रभु राष्ट्र के प्रधानमंत्री को गलत रूप से संदर्भित करते हुए जब चाहें जो चाहें बोल कर वे निकल नहीं सकते हैं। प्रधानमंत्री जी को इस विषय पर मौन न रह कर पुरजोर तरीके से सच कहना चाहिये और अमेरिका को यह सच बताया जाना चाहिये कि उन्होंने गलतबयानी की है। यह पहला मौका नहीं है जब ट्रम्प ने बेवकूफी भरी हरकत की है। उन्होंने मोदी जी द्वारा अफगानिस्तान में लाइब्रेरी बनाये जाने का मज़ाक़ बनाया, उन्होंने एक अवसर पर यह कहा कि अब भारत की विदेशनीति अमेरिका के हित के अनुरूप बनेगी, विग कमांडर अभिनंदन की रिहाई पर उनका बयान एक सुपर बॉस की तरह था। यह उनकी आदत है, पर उनकी इस बड़बोलेपन की आदत के शिकार भारत और भारत के प्रधानमंत्री क्यों हो ?
© विजय शंकर सिंह
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