वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग को अचानक उनके पद से हटा दिया गया। उन्हें वित्त विभाग से ऊर्जा मंत्रालय में स्थानांतरित कर दिया गया। अपने नए पद पर जाने के बजाय उन्होंने एक साल पहले ही स्वच्छिक सेवानिवृत्त किये जाने का अनुरोध किया है। उनके इस निर्णय का क्या कारण है इस पर नौकरशाही गैलरियों में फुसफुसाहट बढ़ गयी है। एक खबर के अनुसार उन्होंने विमल जालान कमेटी की रिपोर्ट पर कोई संज्ञान लेने से मना कर दिया था। एक चर्चा यह भी है कि वे सॉवरेन बांड को लेकर विवादों में आ गए थे।
वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग इस बार के बजट में राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3.3 फीसदी पर रखने का दावा सरकार का था। लेकिन कैग के आंकड़ों ने उनकी पूरी पोलपट्टी खोलकर रख दी, और इससे सरकार असहज हो गयी। फिर इस बार के बजट में चालू वित्त वर्ष के लिए राजकोषीय घाटे के 3.4 फीसदी पर रहने का अनुमान सरकार ने जताया है तो उस पर भी कुछ विदेशी रेटिंग एजेंसियों सहित आलोचकों ने राजकोषीय घाटे के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने की संभावनाओं को लेकर संदेह जता दिया। बजट के बाद भी बाजार जिस तरह से ढह गया है यह बात भी उनके खिलाफ गयी।
उनकी जगह सरकार ने 1985 बैच के गुजरात कैडर के आईएस ऑफिसर अतानु चक्रवर्ती जो इस वक्त डिसइन्वेस्टमेंट सेक्रेटरी है उन्हें वित्त सचिव की जिम्मेदारी सौपने का फैसला किया है अतानु चक्रवर्ती ने मई 2018 में दीपम विभाग के कार्यभार संभालने के बाद 2018-19 में विनिवेश की कार्यवाही के माध्यम से 80,000 करोड़ रुपये जुटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.।
सरकार ने अर्थ संकट के चलते रिज़र्व बैंक के 9,00,000 करोड़ रुपये के रिज़र्व धन को लेने की कोशिश की। उसने मनमाफिक निर्णय के लिये अपने विश्वसनीय उर्जित पटेल को आरबीआई का गवर्नर बनाया। पर उर्जित पहले नोटबंदी के फैसले के समय किनारे किये गये फिर उन पर इस रिजर्व फंड से सरकार को धन देने की बात चली। उन्होंने निजी कारणों का उल्लेख करते हुये त्यागपत्र दे दिया।
उर्जित पटेल के बाद शशिकांत दास जो भारत सरकार में सचिव थे को आरबीआई गवर्नर बनाया गया। रिजर्व फंड का धन दिया जाय और उसे किस तरह से सरकार को हस्तांतरित किया जा सकता है के परीक्षण के लिये आरबीआई के पूर्व गवर्नर विमल जालान की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित हुयी। जालान कमेटी ने यह राय दी कि थोड़ा थोड़ा कर के सरकार को फंड दिया जा सकता है।
उर्जित पटेल के इस्तीफे के बाद आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने भी पद त्याग कर दिया और वे अमेरिका में एक विश्वविद्यालय में पढ़ाने चले गए। सरकार से इन्ही दोनों ने ही नहीं बल्कि आर्थिक सलाहकार रहे अरविंद सुब्रमण्यम ने भी पिंड छुड़ा लिया है और अब अमेरिका में हैं। उनका भी यही कहना है कि सरकार जीडीपी के आंकड़े गलत बता रही है । जीडीपी की दर सरकारी दावे के विपरीत कम है।
कभी कभी सख्त और नियम कानून के पाबंद नौकरशाह सरकार के लिये समस्या बन जाते हैं, विशेषकर तब, जब सरकार स्वच्छाचारी मोड में आने लगती है। इसीलिए वर्तमान सरकार लैटरल इंट्री के माध्यम से देश के इस प्रमुख प्रशासनिक तँत्र को एक संदेश देना चाहती है। मानो या दफा हो जाओ। और यह सब प्रशासन को बेहतर बनाने के नाम पर किया जा रहा है।
© विजय शंकर सिंह
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