भूतल परिवहन मंत्रालय की ओर से जारी 'भारत में सड़क दुर्घटना-2016' के अनुसार- 2016 के दौरान देश में होने वाले सड़क हादसों की संख्या 4,80,652 थी, जो कि 2015 में 5,01,423 थी। 2016 में दुर्घटना में 1,50,785 लोगों की मौत हुई जबकि 2015 में यह आंकड़ा 1,46,133 था। हालांकि मंत्रालय सड़क दुर्घटना में इसे गिरावट मान रहा है, और यह आंकडो से दिख भी रहा है पर जब इन आंकड़ों को वैश्विक आंकडो से मिलाइयेगा बात तो हम इस महामारी में सबसे बीस ही पड़ेंगे।
भारत में हर साल विश्व में सबसे ज़्यादा, यानी एक लाख 30 हज़ार से ज़्यादा लोग सड़क दुर्घटनाओं में अपनी जान गंवाते हैं. इस मामले में भारत ने चीन को भी पीछे छोड़ दिया है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ ने दुनिया भर में सड़क सुरक्षा को लेकर एक नई रिपोर्ट निकाली है. रिपोर्ट के मुताबिक तेज़ रफ्तार से गाड़ी चलाना, हेल्मट या सीट बेल्ट का इस्तेमाल न करना और बच्चों को नियंत्रण में न रखना दुर्घटना का कारण बनते हैं.
विश्व भर में हर घंटे, 25 की उम्र से कम लगभग 40 लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक पांच से लेकर 29 वर्ष के लोगों में मौत का यह दूसरा सबसे बड़ा कारण है.
सड़कें अच्छी हो गयीं है, वाहन भी दिन पर दिन बेहतर होते जा रहे हैं। पर यह बेहतरी खुदकुशी के लिये तो है नहीं। आज अखबार में यमुना एक्सप्रेस वे पर हुए रोडवेज बस की दुःखद और गम्भीर सड़क दुर्घटना में 29 लोगों के मारे जाने की खबर पढ रहा था। अब ड्राइवर को झपकी आ गयी या कोई और कारण है यह तो बाद की बात है। फिलहाल तो यह घटना सड़क सुरक्षा और यातायात नियमों के उल्लंघन पर चिंतित करती है।
चौराहे पर खड़ा सिपाही जो हेलमेट, ओवर स्पीड, लाल बत्ती उल्लंघन, गलत साइड से ओवरटेक, गलत पार्किंग चेक करने के लिये खड़ा है वह सबको संसार का सबसे भ्रष्ट जीव नज़र आता है और लोग उसकीं आपत्ति को अपने स्वाभिमान से जोड़ कर ईगो का मुद्दा बना लेते हैं। पर वह यह भूल जाते हैं कि हेलमेट सिपाही का सिर नहीं, बाइक सवार का सिर बचाता है। यातयात नियमों के उल्लंघन में जो दुर्घटना होती है, उसमे, लोग मरते हैं सिपाही नहीं। यातायात नियमों का पालन कीजिए और अकाल मृत्यु से बचिये।
© विजय शंकर सिंह
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