तुम मेरे लिए न बादल हो,
न बिजली, न बारिश,
न हवा, न बतास,
प्रकाश से भरपूर,
दहकता सूरज भी नहीं !
कोजागर की रोशनी में,
कभी कभी सागर को भी
बेचैन कर देने वाला,
चाँद भी नहीं .
कौन से क्षण हैं ऐसे,
जो बिना तुम्हारे, जिए मैंने !
मौजूदगी तुम्हारी, लम्हात बनी,
और तन्हाई, सदियाँ !
बंद आँखों में ख्वाब,
खुली आँखों में यादें,
नम आँखों में अश्क,
चंचल आँखों में,
तुम्हे पा लेने का हुलास,
सिमट गए सब एक विन्दु में !
फिर, क्या हो तुम ?
सोच रहे हो गुमसुम बैठे !
सोचो, ! सोचो !!
मेरी वह उम्मीद हो तुम,
जिसके तंतु पर टिकी हैं,
साँसे मेरी.
आलोकित है , तुमसे,
मुस्तकबिल की राहें.
वजूद मेरा,
निर्भर है, तुम्हारी हस्ती पर,
चाँद, सूरज, हवा, बयार,
सागर, लहरें, सांझ प्रभात,
सब तभी तक हैं,
जब तुम हो मेरे पास !!
© विजय शंकर सिंह
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