Friday, 22 March 2019

नयी नौकरियां तो मिली नहीं, जिन्हें मिली थीं, उनकी और चली गयीं / विजय शंकर सिंह

यह कुछ अकंडे हैं देश मे नौकरियों के। सरकार ने 2016 से रोज़गार के आंकड़े देना बंद कर दिया है। आंकड़े सार्वजनिक होने से लोग सवाल पूछते थे और सरकार की जवाबदेही बढ़ जाती है। एक गैर जिम्मेदार सरकार ही जवाबदेही और सवालों से बचना चाहती है। इस सरकार का भी यही रवैय्या है। पांच साल में एक भी सार्वजनिक प्रेस कांफ्रेंस न करना, यह बताता है सरकार, जनता, प्रेस और अपने दायित्वों का किस प्रकार से वहन कर रही है।

NSSO राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (#एनएसएसओ) की रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2011-12 से लेकर वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान पांच साल में देश में पुरुष कार्यबल में करीब दो करोड़ की कमी आई। यानी इतनी नौकरियां घटी हैं। रोज़गार के इतने अवसर कम हुये है।  एनएसएस की इस रिपोर्ट को हाल ही में सरकार ने दबा दिया था। सरकार की बेरोजगारी सम्बंधित नीति की पोल खोलती यह रिपोर्ट सरकार को असहज कर सकती है, इस लिये सरकार से इसे प्रकाशित नहीं होने दिया।

एनएसएसओ की अप टू डेट, श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) रिपोर्ट 2017-18 की समीक्षा में बताया गया है कि वर्ष 2017-18 के दौरान सिर्फ 28.6 करोड़ पुरुष देश में रोजगार में थे जबकि 2011-12 में 30.4 करोड़ पुरुष रोजगार में थे. यह समीक्षा अभी सार्वजनिक नहीं हुई है। एनएसएसओ रोज़गार के बारे में अपने आंकड़े लगातार अद्यावधिक करता रहता है। इन्हीं आंकड़ों से सरकार अपनी भावी और चालू योजनाओं की समीक्षा करती रहती है। यह अलग बात है कि यही आंकड़े विपक्ष के पास सरकार की आलोचना के हथियार बनते हैं।

भारत का पुरुष कार्यबल 1993-94 में 21.9 करोड़ था, जिसके बाद पहली बार इसमें कमी दर्ज की गई है. पुरुष कार्यबल 2011-12 दौरान बढ़कर 30.4 करोड़ हो गया जबकि 2017-18 में घटकर 28.6 करोड़ रह गया. पीएलएफएस की रिपोर्ट जुलाई 2017 से लेकर जून 2018 के बीच तैयार की गई।

2014 के संकल्पपत्र में भाजपा ने वादा किया था कि वह दो करोड़ रोज़गार का सृजन हर साल करेगी। इस सामान्य गणित से सरकार को अपने कार्यकाल में दस करोड़ रोजगारों का सृजन करना था। पर इन आंकड़ों को देखने से स्पष्ट है कि यह वादा भी अन्य वादों की तरह एक जुमला निकला है। सरकार को यह बताना चाहिये कि ऐसे कौन से कारण हैं जिनसे संकल्पपत्र 2014 का यह महत्वपूर्ण वादा पूरा नहीं किया जा सका ?

© विजय शंकर सिंह

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