Wednesday 27 March 2019

विपन्नता के सागर में उभरते समृद्धि के द्वीप गिरोहबंद पूंजीवाद के दुष्परिणाम हैं / विजय शंकर सिंह

निजी क्षेत्र के तरफदार बहुत ही मासूम तर्क देते हैं कि सरकारी या सार्वजनिक क्षेत्र की तुलना में उनका प्रबंधन अधिक कुशल होता है। पर यह तर्क तब कहां चला जाता है जब निजी क्षेत्र की बड़ी बड़ी कंपनियां या तो अपने डायरेक्टर साहबान की लालच से या अकुशल प्रबंधन से धीरे धीरे बैठने लगती हैं।वे अपना उद्योग और बढ़े इस निमित्त वे लोभ में आ जाने वाले राजनेताओं और नौकरशाहों को तरह तरह के लालच धन उपहार या अन्य तरह से उपकृत कर के एक ऐसा गिरोह तैयार कर लेते हैं कि उसके विरुद्ध खड़ा होना मुश्किल हो जाता है।

यह पूंजीवाद का निकृष्ट रूप है जिसे अंग्रेजी में क्रोनी कैपिटलिज़्म और मैं इसे हिंदी में गिरोहबंद पूंजीवाद कहता हूं। पूंजीपतियों का उद्योग, कंपनी साझेदार शेयर होल्डर और काम करने वाले कामगार डूबते तो हैं, पर पूंजीपति घराने के लोग उस विपत्ति में भी लाइफ जैकेट पहन कर निकल जाते हैं और फिर वे अपने उसी राजनेता नौकरशाही गिरोह के बलबूते एक नए धंधे की शुरुआत कर देते हैं। उनके पिछले उद्योग क्यों नहीं चले, कैसे डूब गए, उनसे जुड़े कामगारों का क्या हुआ, इस पर कोई न तो कोई कुछ कहता है और अगर कुछ पूछताछ की भी जाती है उसका जवाब नहीं मिलता है।

जब निजी क्षेत्रों के उद्योग धंधे डूबने लगते हैं तो, निजी क्षेत्र के झंडाबरदार और उफ्योगपति इससे हज़ारों लोग बेकार हो जाएंगे, बेरोजगारी बढ़ जाएगी, अर्थ व्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ेगा, इससे समाज मे अपराध बढ़ जाएगा आदि आदि तर्कों के सहारे सरकार से कभी कर्ज़ माफी तो कभी अनुदान तो कभी बेहद आसान दर पर ऋण लेने लगते है। तब हम यह भूल जाते हैं यह धन जनता के हित के लिये भी है न कि केवल चहेते पूंजीपतियों के लिये। वैसे भी  निजी क्षेत्र को व्यापार संवर्धन और विकास के नाम पर सरकारें न केवल सस्ती ज़मीन, और करों में तरह तरह छूट देती रहती है बल्कि उन्हें श्रमिक कानून में ढील दे कर और कानूनों के उल्लंघन को नज़र अंदाज़ कर कामगारों के शोषण का भी राह आसान बना देती हैं। एक ऐसा नैरेटिव बनाने की कोशिश की जाती है कि, यह निजी क्षेत्र यह उद्योगपति हमे सभी संकटों से मुक्त कराने के लिये ही अवतरित हो रहे हैं।

अब जेट एयरवेज का ही उदाहरण ले लें। जेट एयरवेज़ बैठने जा रही है। पंख समेट कर यह ज़मीन पर आ गयी है। सरकार ने 1500 करोड़ की मदद देने का निश्चय किया है। यह तो व्यापार है। नफा नुकसान लगा ही रहेगा। पर सरकार का यह अनुग्रह क्यों है। इसका एक बड़ा कारण है राजनीतिक दलों को मिलने वाला चंदा जिसकी घोषणा न राजनीतिक दल को करनी पड़ती है और न ही सूचना के अधिकार के अंतर्गत जनता इसका विवरण जान सकती है। सारे राजनीतिक दल भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते दिखते हैं। पर इस एक प्रस्ताव पर कि राजनीतिक दलों को मिलने वाला चंदा आरटीआई के दायरे में लाया जाए औऱ इसे सार्वजनिक वेबसाइट पर जनता के सूचनार्थ रखा जाय, खामोशी ओढ़ लेते हैं। क्यों ?

गिरोहबंद पूंजीवाद की संक्रामकता से केवल भाजपा और मोदी सरकार ही नहीं रुग्ण है बल्कि कांग्रेस भी अपवाद नहीं है। 1991 के बाद आने वाली मुक्त अर्थव्यवस्था ने देश के अर्थ जगत और जनता के आर्थिक स्तर की कायापलट तो की पर पूंजीपति, नौकरशाही और राजनीतिक सत्ता के गठजोड़ ने जो एक धुरी बनायी वह गिरोहबंद पूंजीवाद बना। इसे क्रोनी कैपिटलिज़्म कहते हैं। कहीं कहीं इसे हिंदी में इसे याराना पूंजीवाद कहते हैं। मैं इसे गिरोहबंद पूंजीवाद कहता हूं। राजनीतिक सत्ता, चहेते पूंजीपतियों और राजसत्ता के करीबी तथा भ्रष्ट नौकरशाही का यह कॉकटेल सारे कायदे कानून को ताक पर रख केवल कुछ चहेते पूंजीपतियों के लाभ के लिये जो तँत्र खड़ा होता है वह पूंजीवाद का निकृष्टतम रूप होता है। यही व्याधि छत्तीसगढ़ की नयी कांग्रेस सरकार के राज में भी आ धमकी है।

यह केवल एक यूटोपिया है कि निजी क्षेत्र और पूंजीवाद एक स्वस्थ प्रतियोगिता करता है और वह सरवाइवल ऑफ द फिटेस्ट के सिद्धांत पर जो सबसे बेहतर है वही समाज को देता है। सच तो यह है कि निजी क्षेत्र स्वार्थ में सिकुड़ते सिकुड़ते एक ऐसा ककून गढ़ लेता है जो दीवार के पार न कुछ देख पाता है और न कुछ सुन पाता है। यह ककून स्वार्थांधता, लोभ, जहां तक मैं देखता हूँ, वहां तक मेरा ही साम्राज्य है, की मानसिकता का है। वह प्रचार, प्रोपेगैंडा और चमक का मायाजाल रच देता है, और उस चमक भरे वृत्त के अंदर सब कुछ सुंदर और दैव निर्मित लगने लगता है। उस वृत्त से परे अव्वल हो हम कुछ देखना नहीं चाहते हैं और दिखता भी है तो सड़क के चौराहे पर खड़ी कार के शीशे से झांकते हुये भिखारी को देख कर जैसे हम निर्विकार बन जाते हैं वैसे ही हो जाते हैं।

एक दिन चंद लोगों की यही समृद्धि जो विपन्नता, अभाव, शोषण, असमानता का परिणाम है, महासागर में स्थित एक द्वीप मे  तब्दील हो जाती है और जब भी कभी जनता के धीरज का बांध तोड़ कर विक्षोभ उभरता है तो उस सुनामी से समृद्धि और चकाचौंध भरा यह द्वीप तहस नहस हो जाता है। कालचक्र कभी नहीं थमता है।

© विजय शंकर सिंह

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