Tuesday, 12 March 2019

जी का जंजाल बनता जी का सम्बोधन / विजय शंकर सिंह

अपराधियों का सम्बोधन आदर सूचक शब्द से करना निंदनीय है। राहुल गांधी द्वारा, अज़हर को जी संबोधन से उल्लेख करने के बाद सोशल मीडिया पर राहुल गांधी की ट्रॉलिंग हो रही है। यह संबोधन आपत्तिजनक है, इसमे कोई संदेह नहीं है। पर तब तक खोजी और तफतीशी मित्रो ने तीन उदाहरण भाजपा के नेताओं के भी ढूंढ निकाले जहां आतंकी सरगनाओं को श्री कह कर संबोधित किया गया है। डॉ मुरली मनोहर जोशी, रविशंकर प्रसाद ने हाफिज सईद के सामने श्री लगाया और सम्बित पात्रा ने जी। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि इन महानुभावों के मन मे इन आतंकी सरगनाओं के लिए आदर का भाव है। बल्कि यह जी और श्री के सारे संबोधन या तो जिह्वाविचलन के कारण है या तंज के कारण। 

पर आतंकियों को जी कहने की परम्परा तो, कुछ संस्कारवान लोगों ने महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे से शुरू की है । हत्यारे गोडसे को गोडसे जी कहा गया। आज भी कहा जा रहा है। गोडसे को जी कहना न तो जिह्वाविचलन है और न ही तंज। भारत मे कुछ संगठन आज भी गोडसे को सम्मान की नज़र से देखते हैं। उनकी संख्या कम है पर वे मौजूद हैं। आज भी गोडसे का महिमामंडन किया जाता है। उसका मंदिर बनाने की कोशिश समय समय पर की जाती है। उसके कुकृत्य और हत्या का टीवी पर नाट्य रूपांतरण किया गया। आज भी किया जा रहा है । और यह सब खुल कर हो रहा है।

यह आतंक का महिमामंडन है। यह वैचारिक विरोध के हिंसक अभिव्यक्ति का दुंदुभिवादन है। किसी भी हत्यारे, अपराधी और आतंक फैलाने वाले दुर्दांत को चाहे वह कितना ही महत्वपूर्ण व्यक्ति हो या महत्वपूर्ण पद पर  या अधिकारसम्पन्न क्यों न हो, के नाम के साथ आदरसूचक शब्द 'जी' लगाना निंदनीय है। अपराध की एक मनोवृत्ति होती है। महत्वपूर्ण होने मात्र से ही वह मनोवृत्ति खत्म नहीं होती है। हत्यारे और आतंकी हर दशा में यही कुकर्म करते हैं।

© विजय शंकर सिंह

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