इस सरकार में सबसे अधिक धर्मसंकट में अगर कोई है तो देश के अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल हैं। यह धर्म संकट राफेल मामले में सुप्रीम कोर्ट में हो रही सुनवायी को लेकर है। सरकार राफेल मामले में फंसी पड़ी है। पीएमओ ने सारी प्रक्रिया को ताक पर रख कर एक डिफाल्टर पूंजीपति को दसॉल्ट का ऑफसेट पार्टनर बनाने के लिये समानांतर बातचीत की जिसकी भनक तत्कालीन रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर को भी नहीं थी। अब जब अदालत में जनहित याचिका दायर हुयी तो सरकार की तरफ से बचाव की जिम्मेदारी इन्ही दो आला सरकारी वक़ीलों पर आ पड़ी। बड़ा मुश्किल होता है हस्तिनापुर के साथ सारे आफत विपत में खड़ा होना। पर एजी के वेणुगोपाल और एसजी तुषार मेहता खड़े है और उनका बचाव कर रहे हैं जिनके बचाव की गुंजाइश कम ही है। दोनों बड़े वक़ीलों की प्रतिभा और क्षमता में कोई कमी नहीं है। यह बात बिल्कुल सही है।
जब वह कागज, जो आज सुरक्षा के लिये खतरा बताया जा रहा है, बरास्ते द हिन्दू सार्वजनिक हुआ तो पहले सॉलिसिटर जनरल ने अदालत में कहा कि फाइल चोरी हो गई। फिर जब लगा कि यह प्रति प्रश्न उठेगा कि चोरी की एफआईआर कब हुयी और नहीं हुयी तो क्यों नहीं हुयी और हुयी तो क्या कार्यवाही हुयी आदि आदि। तब तुरन्त एजी ने गियर बदला और कहा कि
" फाइल चोरी नहीं हुयी थी, उसकी फोटोकॉपी हुयी है। "
इस पर भी वही सवाल उठेंगे कि,
" किसकी लापरवाही से यह फोटोकॉपी हुयी और यह कैसे बाहर गयीं ? "
इस पर सरकार और एजी दोनों चुप हैं।
अब कहा जा रहा है कि
" याचिकाकर्ता ने इसे अदालत में दाखिल करके गोपनीयता भंग की है और देश की सुरक्षा प्रभावित हुयी है ।"
सरकारी वकील वही कहता है जो सरकार चाहती है। सरकार के बड़े अफसर उसे ब्रीफ करते है। सरकारी वकील यह भी सरकार को बता देता है कि जो तर्क वह अदालत में प्रस्तुत कर रहा है वह कितना बहस और जिरह में टिकेगा।
याचिकाकर्ता द्वारा देश की सुरक्षा से समझौता एक गंभीर आरोप है। बेहद गंभीर। यह आरोप दो पूर्व मंत्रियों यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी और एक सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण पर है क्योकि वे याचिकाकर्ता हैं और उन्होंने यह दस्तावेज अदालत में दाखिल किये हैं। दोनों ही पूर्व मंत्री, कोई अनपढ़ राजनीतिक व्यक्ति नहीं है। यशवंत सिन्हा आईएएस अफसर रह चुके हैं, और अरुण शौरी एक प्रख्यात पत्रकार हैं। दोनों ही इस तथ्य से वाकिफ होंगे कि कौन से दस्तावेज का कौन सा अंश सुरक्षा के लिये खतरा हो सकता है। तीसरे याचिकाकर्ता प्रशान्त भूषण तो खुद ही सीनियर एडवोकेट हैं जो कानून की पेचीदगियां जानते हैं।
लेकिन ये दस्तावेज अदालत में दाखिल होने से पहले न्यूज़ एजेंसी एएनआई और द हिन्दू में छप चुके थे। और इन्ही दस्तावेजों को रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में पढ़ कर सुना भी दिया था। संसद की कार्यवाही पूरी दुनिया देखती है और सबने इस गोपनीय दस्तावेज को भी देखा था। अब इस गोपनीयता भंग का आरोप तीनो याचिकाकर्ता के साथ साथ एएनआई, द हिन्दू पर भी है। निर्मला सीतारमण का संसद में यह दस्तावेज प्रदर्शित करना गोपनीयता भंग का अपराध नहीं बनता क्योंकि संसद में किसी कृत्य के लिये कोई जांच सदन के स्पीकर के ही अधिकार क्षेत्र में आती है। सदन के अंदर हुये कदाचार के संबंध में सदन के बाहर कोई कानूनी कार्यवाही नहीं हो सकती है। और अगर होना ज़रूरी है तो स्पीकर की अनुमति आवश्यक है। यह सांसदों का विशेषाधिकार है। अब यह देखना है कि सरकार इस आरोप पर क्या वैधानिक कार्यवाही करती है। करती भी है या नहीं करती है।
लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर राफेल विमान सौदे में कथित गड़बड़ी का मामला चर्चा में है। सुप्रीम कोर्ट में आज राफेल डील पर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई हो रही है।. केंद्र सरकार की ओर से बुधवार को दायर हलफनामा में कहा गया कि रक्षा मंत्रालय से राफेल के कागजात लीक हुए थे। जस्टिस जोसेफ ने अटॉर्नी जनरल से कहा कि,
" जिन डॉक्यूमेंट्स की बात हो रही है हम उनके बारे में जानते ही नहीं हैं। ऐसा उन डॉक्यूमेंट्स में क्या है जो हम भी उन्हें नहीं देख सकते हैं.
। "
इसपर एजी ने कहा कि
" कोर्ट उन दस्तावेजों को देख सकता है. राफेल डील में साफ है कि ये सरकारों के बीच में सौदा है, इसलिए दाम नहीं बता सकते हैं ।"
तब प्रशांत भूषण ने कहा कि
" पत्रकार के लिए किसी भी कानून में सोर्स बताने की पाबंदी नहीं है। 2G में भी ऐसा ही हुआ था, किसी अनजान आदमी ने सीबीआई रंजीत सिन्हा के घर का एंट्री रजिस्टर दिया था, जिससे खुलासा हुआ था। "
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को मानने से इनकार कर दिया है। तब प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि
" अगर राफेल पर दस्तावेज सही हैं तो फिर कोर्ट उसका संज्ञान ले सकता है, भले ही दस्तावेज कहीं से भी आए हों । "
इस पर उन्होंने अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट की भी एक रूलिंग प्रस्तुत की।
केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि,
" क्योंकि ये दो सरकारों के बीच का मामला था इसलिए हमने सीएजी से कहा था कि रिपोर्ट में दाम का जिक्र ना करें। "
इस पर प्रशांत भूषण ने कहा कि
" इस मामले में भ्रष्टाचार हुआ है इसलिए सरकार कोर्ट को दखल न देने को कह रही है। "
प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में तर्क रखते हुए कहा कि
" अगर चोरी हुई थी तो सरकार ने मुक़दमा क्यों नहीं दर्ज कराया ? सरकार अपनी जरूरतों के अनुसार इन दस्तावेजों का खुलासा करती रही है। ऑडिट रिपोर्ट में क्या होगा, यह सरकार को कैसे पता ? "
अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट में तर्क दिया कि,
" जिन कागजों की बात हो रही है उसमें राफेल के दाम भी शामिल हैं जिससे देश की सुरक्षा को खतरा हो सकता है। अगर युद्ध होता है तो यह देश को नुकसान पहुंचा सकता है। सुरक्षा से जुड़ी जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकती हैं। "
जिस पर जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा कि
" जिन संस्थानों में ऐसा नियम है और अगर भ्रष्टाचार का आरोप है तो फिर जानकारी देनी ही पड़ती है। "
सुनवायी के दौरान जस्टिस कौल ने अटॉर्नी जनरल से कहा कि
" आप अब दस्तावेज बदल रहे हैं और विशेषाधिकार की मांग कर रहे हैं. लेकिन आपने सबूत पेश किए हैं। "
इसके जवाब में एजी ने कहा कि डॉक्यूमेंट्स दूसरी पार्टी ने पेश किए हैं, हमने नहीं।
सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने बताया कि
" सीएजी की जो रिपोर्ट अदालत में दाखिल की गई थी, उसमें कुछ कागजात नहीं थे। रिपोर्ट में शुरुआती तीन पेज शामिल नहीं थे। उनसे गलती से पेज दाखिल नहीं हो पाए थे। "
जिसपर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि,
" आप दस्तावेज़ों के विशेषाधिकार की बात कर रहे हैं, लेकिन इसके लिए आपको सही तर्क पेश करने होंगे। "
इससे पहले सरकार इसी कैग रिपोर्ट में गलती की बात कह चुकी थी, जिसके बाद ही इस पुनर्विचार याचिका को दाखिल किया गया था। पिछली सीएजी रिपोर्ट के उल्लेख के आधार पर ही मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली थी।
इस संबंध में फैसला सुरक्षित है।
© विजय शंकर सिंह
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