Friday 29 March 2019

निर्वाचन आयोग की यह बेबसी दुःखद है / विजय शंकर सिंह

" मिशन शक्ति की घोषणा प्रधानमंत्री द्वारा किया जाना आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन नहीं है। "
यह फैसला निर्वाचन आयोग ने अपनी एक मीटिंग के बाद विचारोपरांत लिया है। सरकारी शब्दावली में विचारोपरांत और जनहित जैसे शब्द सिर्फ इस लिये डाले जाते हैं कि विभाग इन शब्दों की आड़ में बैठ जाय और मुंदहूँ आंख कतहुँ कुछ नाहीं की मुद्रा बनी रहे ।

वर्तमान निर्वाचन आयोग के इस फैसले पर जिसे हैरानी हो तो हो मुझे तब हैरानी होती जब आयोग पीएम नरेंद मोदी को आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन का दोषी पाता और नोटिस जारी करता। ऐसे नोटिस से किसी का कुछ विशेष बनता बिगड़ता नहीं है पर इसका एक सार्थक प्रभाव यह पड़ता है कि आयोग निष्पक्ष कार्य करते हुये दिखता है। पर आयोग से ऐसा करने की उम्मीद ही नहीं थी। क्योंकि अब मुख्य निर्वाचन आयुक्त के पद पर टीएन शेषन और लिंगदोह जैसे सख्त और कायदे कानून के पाबंद अफसर नियुक्त नहीं हैं।

यकीन मानिए यदि टीएन शेषन और लिंगदोह जैसे अफसर आज होते तो जैसे ही उन्हें पता चलता कि पीएम कोई सार्वजनिक प्रसारण करने जा रहे हैं, वैसे ही वे पीएमओ से उसका डिटेल और टेक्स्ट मांग लेते और बिना अनुमति के सरकार की हिम्मत भी ऐसे प्रसारण की नहीं पड़ती । पर आज आयोग की इतनी हिम्मत नहीं है कि आदर्श आचार संहिता को वह निष्पक्षता और दमखम से लागू कर सके। यह पतन आयोग का ही नहीं बल्कि लगभग सभी संवैधानिक संस्थाओं का हुआ है।

कहीं पीएम टीशर्ट बेच रहे हैं, कहीं टिकुली बिंदी पर छप रहे हैं, कहीं चाय के कागज के कप पर मैं भी चौकीदार लिख कर रेलवे मंत्रालय ट्रेन में उस पर चाय बेच रहा है, और कहीं रेलवे के टिकट में मोदी जी की मधुर क्षवि नज़र आ रही है तो कहीं हवाई यात्रा के बोर्डिंग पास के एक कोने में टँगे हुये हैं। गरज यह है कि लोकप्रियता का नशा इतना तारी है कि जहां जाइयेगा, हमे पाइयेगा का  भाव स्थायी भाव बन गया है और जब सभा में जनता से रूबरू होतें हैं अपना रिपोर्ट कार्ड सुनाने के लिये तो केवल सर्जिकल स्ट्राइक जो उनके अनुसार अंतरिक्ष तक पहुंच गयी है, के अलावा कुछ उनके जेहन में उभरता ही नहीं है !

सच बताइये सर, वे सारे मास्टरस्ट्रोक जो दर्शक दीर्घा में जाकर गिरने थे क्या बाउंड्री पर कैच हो गये ? पांच साल में काम तो बहुत हुये पर क्या क्या हुये यह सरकार बताने की मुद्रा में आज तक नहीं आ पायी है।

© विजय शंकर सिंह

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