पीएम नरेंद्र मोदी ने बुधवार को राष्ट्र के नाम संदेश में भारत का अपना स्वदेश विकसित एंटी सैटेलाइट सिस्टम राष्ट्र को समर्पित किया।ISRO ने अपने गठन के दिन से ही कई उपलब्धियां हासिल की है। ऐसा उसके वैज्ञानिकों की प्रतिभा और मेधा से ही संभव हो सका है। आज एक और कामयाबी हासिल हुयी है। जिसकी शुभ सूचना पीएम ने दी। निश्चय ही यह हम सबके लिये गर्व का क्षण है। पर इसरो के उपग्रह प्रक्षेपण कार्यक्रम में भी सरकार के चहेते पूंजीपति घुसना चाहते हैं यह खबर कुछ दिन पहले आयी थी। इधर क्या हुआ कुछ पता नहीं चला।
पीएम ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में यह नहीं बताया कि भारत ने 2012 में ही ए-सैट क्षमताओं को हासिल कर लिया था। प्रधानमंत्री ने बुधवार सुबह राष्ट्र के नाम संदेश में कहा ,‘‘मिशन शक्ति के तहत स्वदेशी एंटी सैटेलाइट मिसाइल ‘ए-सैट’ से तीन मिनट में एक लाइव सैटेलाइट को मार गिराया गया।’’ उन्होंने कहा कहा कि भारत अंतरिक्ष में निचली कक्षा में लाइव सैटेलाइट को मार गिराने की क्षमता रखने वाला चौथा देश बन गया है। अब तक यह क्षमता केवल अमेरिका, रूस और चीन के ही पास थी।
लेकिन मीडिया ने यह नहीं बताया कि भारत ने यह क्षमता वर्ष 2012 में ही हासिल कर ली थी जब अग्नि-5 मिसाइल का परीक्षण किया गया था लेकिन आरोप है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति की वजह से इसके परीक्षण की अनुमति नहीं दी गई थी। इंडिया टुडे से बात करते हुए, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के प्रमुख वीके सारस्वत ने खुद इसका खुलासा किया था।
वीके सारस्वत के अनुसार,
" अग्नि-5 के परीक्षण के बाद भारत के पास सैटलाइट को मार गिराने की क्षमता है. ऐंटी सैटलाइट सिस्टम को अच्छे बूस्ट की जरूरत होती है. यह करीब 800 किलोमीटर है. अगर आप 800 किलोमीटर तक पहुंच सकते हैं और आपके पास निर्देशन प्रणाली है तो अंतरिक्ष में सैटलाइट को मार गिराया जा सकता है. भारत ने ऐंटी मिसाइल टेस्ट करके अपनी निर्देशन प्रणाली का टेस्ट पहले ही कर लिया है. हालंकि भारत इस तरह के टेस्ट नहीं करेगा. इस तरह के परीक्षण से अंतरिक्ष में मौजूदा उपग्रहों को नुकसान पहुंच सकता है। "
उन्होंने कहा था कि भारत ने कम पृथ्वी और ध्रुवीय कक्षाओं में शत्रुतापूर्ण उपग्रहों को बेअसर करने के लिए एक विरोधी उपग्रह हथियार को एकीकृत करने के लिए सभी भवन ब्लॉकों को प्राप्त कर लिया है। सारस्वत ने यह भी कहा था कि भारत की एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल (एबीएम) रक्षा कार्यक्रम का उपयोग अग्नि श्रृंखला के मिसाइलों के साथ-साथ ए-सैट हथियार के रूप में किया जा सकता है।
इसकी डीआरडीओ द्वारा पुष्टि की गई थी, जिसमें कहा गया था कि भारतीय बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा कार्यक्रम उपग्रह-विरोधी हथियार विकास को शामिल कर सकता है।विशेषज्ञों के मुताबिक, ए-सैट मिसाइल सिस्टम अग्नि मिसाइल और एंडवांस्ड एयर डिफेंस (AAD) सिस्टम का मिश्रण है। भारत ने वर्ष 2012 के आसपास ही इन दोनों को मिलाकर अपना एंटि सैटलाइट ए-सैट मिसाइल सिस्टम बना लिया था।
आज जब इस उपलब्धि से हम सब गर्व का अनुभव कर रहे हैं, तो इसरो के संस्थापक और पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू , महान वैज्ञानिक विक्रम साराभाई और भारत रूसी अंतरिक्ष सहयोग कार्यक्रम की भी याद कर लेनी चाहिये। सैटेलाइट मार गिराने की क्षमता पर पीएम नरेंद्र मोदी और इसरो के वैज्ञानिक समुदाय को इस उपलब्धि की बधाई।
A-SAT काफी उन्नत तकनीक की प्रणालि है, जो अंतरिक्ष में किसी भी देश की सैन्य ताकत को दर्शाती है। संक्षेप में इस सिस्टम को इस बारे में निम्न प्रकार से समझा जा सकता है।
* यह अंतरिक्ष में इस्तेमाल किए जाने वाले हथियार हैं, जिन्हें मुख्य रूप से रणनीति सैन्य गतिविधियों के लिए इस्तेमाल होने वाली दुश्मन देशों की सैटेलाइट को नष्ट करने के लिए किया जाता है।
* वर्तमान में A-SAT सिस्टम अमेरिका, चीन और रूस के पास उपलब्ध हैं। आज A-SAT के परीक्षण के साथ ही भारत इस कतार में चौथा देश बन गया है।
* अमेरिका ने 1950 में सबसे पहले इस तरह का हथियार विकसित किया। 1960 में रूस ने भी इस तरह का हथियार विकसित किया। 1963 अमेरिका ने अंतरिक्ष में जमीन से छोडे़ हुए एक परमाणु विस्फोट का परीक्षण किया, लेकिन इस परीक्षण की वजह से अमेरिका और रूस की कई सैटेलाइट खराब हो गई थीं। इसके बाद 1967 में आउटर स्पेस ट्रीटी में तय किया गया कि अंतरिक्ष में किसी तरह के विस्फोटक हथियारों को तैनात नहीं किया जाएगा।
* भारत के अलावा इजरायल A-SAT सैटेलाइट विकसित करने की प्रक्रिया में है। डीआरडीओ के डायरेक्टर जनरल डॉ. वी.के. सारस्वत ने 2010 में एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि उसके पास A-SAT विकसित करने के सभी जरूरी चीजें उपलब्ध हैं। इजरायल की एरो 3 या हत्ज 3 एंटी बैलिस्टिक मिसाइल है, जिसे कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि वह एंटी सैटेलाइट के तौर पर इस्तेमाल कर सकता है।
* अमेरिका का 80 फीसदी से भी ज्यादा कम्यूनिकेशन और नैविगेशन सिस्टम सैटेलाइट पर आधारित है। इनके जरिये वह पूरी दुनिया पर नजर रखता है। इस तरह की सैटेलाइट विकसित करने की जरूरत इन सैटेलाइट की सुरक्षा करने के लिए जरूरी है। हालांकि अब तक किसी युद्ध में A-SAT सिस्टम का इस्तेमाल नहीं किया गया है। कई देशों ने अपने ही बेकार हो चुके सैटेलाइट को मार गिराने के लिए इनका परीक्षण किया है। इनमें चीन भी शामिल है।
संक्षेप में भारत के अंतरिक्ष केे कार्यक्रम के निम्न प्रमुख चरण रहे हैं।
1961- प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने परमाणु ऊर्जा विभाग की स्थापना की ।
1962 - नेहरू ने इंडियन नेशनल कमिटी फॉर स्पेस रिसर्च (इनकोस्पार- INCOSPAR) की स्थापना की।
1969 - इंदिरा गांधी ने इनकोस्पार से और ऊपर बढ़ इसरो की स्थापना की)
1975 - भारत ने पहला उपग्रह छोड़ा।
1979 - पहला एसएलवी 3 छोड़ा गया।
1993 - पहला पोलर सैटेलाइट लांच वेहिकल माने पीएसएलवी छोड़ा गया।
2013 - 25 वां पीएसएलवी छोड़ा गया।
2019 - 40वां संचार उपग्रह जियोसैट 31।लांच हुआ।
साल दर साल यह कार्यक्रम प्रगति करता रहा और भारत ने 2 अप्रैल 1984 में राकेश शर्मा को अंतरिक्ष यात्री बना कर दुनिया के अंतरिक्ष शक्ति सम्पन्न देशों में अपना स्थान बनाया है।
© विजय शंकर सिंह
No comments:
Post a Comment