Thursday, 28 March 2019

अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज की गिरफ्तारी और उनकी चर्चा / विजय शंकर सिंह

झारखंड में गढ़वा के बिशुनपुर थाना की पुलिस ने प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज को हिरासत में ले लिया है. उनको बिशुनपुर थाना में रखा गया है.ज्यां द्रेज  अपने साथियों के साथ बिशुनपुर बाजार में एक कार्यक्रम में थे। पुलिस के अनुसार, आचार संहिता लागू है और बिना प्रशासनिक अनुमति के यह कार्यक्रम किया जा रहा था। मामले की जानकारी एसडीओं और दंडाधिकारी को दे गी गयी है. उनके आने पर सभी को मुक्त करने पर फैसला लिया जायेगा.

अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज के अनुुुसार, बिशुनपुर बाजार में राईट टू फुड (भोजन के अधिकार) को लेकर कार्यक्रम का आयोजन था. इसकी जानकारी प्रशासन को दी गयी थी. तय समय पर कार्यक्रम शुरू हुआ. जिसके कुछ देर बाद पुलिस पहुंची और उन्हें थाना ले आया गया। पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि यह हो सकता है कि ज्यां द्रेज की टीम ने कार्यक्रम की जानकारी प्रशासन को दी हो. लेकिन उन्हें कार्यक्रम की अनुमति नहीं मिली  है. यही कारण है कि उन्हें हिरासत में लिया गया है. अभी उन्हें थाना में ही रखा गया है। अभी खबर आयी है कि उन्हें छोड़ दिया गया है। 

ज्यां द्रेज 1959  में बेल्जियम में पैदा हुए थे. पिता जैक्वेस ड्रीज अर्थशास्त्री थे। ज्यां 20 साल की उम्र में भारत आ गए. 1979 से भारत में ही रह रहे हैं. भारत की नागरिकता उन्हें 2002 में मिली. इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टिच्यूट, नई दिल्ली से अपनी पीएचडी पूरी की है । लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स सहित देश-दुनिया की कई यूनिवर्सिटी में पिछले 30 साल से विजिटिंग लेक्चरर हैं। अर्थशास्‍त्र पर ज्यां द्रेज की अब तक 12 किताबें छप चुकी हैं।अर्थशास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अमर्त्य सेन के साथ मिलकर भी कई किताबें लिख चुके हैं। इसके अलावा ज्यां के लिखे 150 से ज्यादा एकैडमिक पेपर्स, रिव्यू और अर्थशास्त्र पर लेख अर्थशास्त्र में दिलचस्पी रखने वालों की समझ बढ़ाने के लिए काफी हैं. वो भारत में भूख, महिला मुद्दे, बच्चों का स्वास्थ्य, शिक्षा और स्त्री-पुरुष के अधिकारों की समानता के लिए काम कर रहे हैं।


भारतीय अर्थ व्यवस्था के संबंध में ज्यां द्रेज की कुछ अवधारणा, 
* किसी भी इकॉनमी का पूरी तरह से कैशलेस होना संभव नहीं है.आइडिया है लेस कैश. इससे आम लोगों को बहुत फायदा नहीं होने वाला है.


* लोग कैश में काला धन कभी कभार ही रखते हैं.


* यह दावा करना कि भारत देश की स्थिति बुनियादी तौर पर बदल चुकी है, एक बड़ी भूल होगी. (देश में सुविधाएं बढ़ने के मामले में)


* सार्वजनिक सुविधाओं के समानतापूर्ण और कारगर वितरण के मामले में कुछ राज्यों, मिसाल के लिए तमिलनाडु, का रिकार्ड बहुत अच्छा है तो कुछ राज्य, जैसे उत्तरप्रदेश, इस मामले में ‘हम नहीं सुधरेंगे’की नज़ीर पेश करते हैं.


* अगर गुजरात ‘मॉडल’ है, तो केरल-तमिलनाडु ‘सुपर मॉडल’ हैं


* खाद्य सुरक्षा कानून देर से लागू होने के बावजूद इसका फायदा आधे-अधूरे तरीक़े से लोगों को मिल पा रहा है. जबकि सूखे की वजह से लोगों की परेशानी पहले से बढ़ी है.


* अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ झारखंड सरकार के हालिया कार्यों जैसे, इस विज्ञापन का प्रकाशन और बूचड़खानों पर कार्रवाई को देखकर मुझे लगता है कि राज्य की नीतियां आरएसएस की विचारधारा से प्रभावित हैं.


* तकलीफ मुझे नहीं बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को है.


* चलन अब भी ‘जो है सो है’ वाला ही प्रतीत होता है और यह चलन भारी कठिनाई झेल रहे और जानोमाल का नुकसान उठा रहे लोगों को आगे और गरीबी के जाल में धकेलने वाला साबित हो रहा है.


*.जब तक केंद्र सरकार यह नहीं मान लेती कि मनरेगा में और ज़्यादा रकम लगाने की ज़रूरत है, मनरेगा में रोजगार सृजन को एक बार फिर सिकुड़ना ही है या फिर मजदूरी के भुगतान को कुछ समय के लिए टालना पड़ेगा.


मनरेगा की ड्राफ्टिंग ज्यां ने ही की थी। ज्यां द्रेज. यूपीए यूपीए शासनकाल के दौरान ये नेशनल एडवाइजरी कमिटी के मेंबर थे. यूपीए की सबसे महत्वाकांक्षी योजना मनरेगा की ड्रॉफ्टिंग ज्यां ने की थी। देश में अब तक के महत्वपूर्ण कानूनों में से एक माने जाने वाले आरटीआई कानून को लागू करवाने में भी ज्यां द्रेज की भूमिका रही है। ज्यां देश-दुनिया के अच्छे अर्थशास्त्रियों में गिने जाते हैं. फिलहाल रांची यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं और दिल्ली यूनिवर्सिटी में विजिटिंग प्रोफेसर हैं। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के जीबी पंत सोशल साइंस में भी ज्यां विजिटिंग प्रोफेसर रहे हैं. उस वक्त वे झूंसी से यूनिवर्सिटी तक साइकिल से ही आते जाते थे। 


ज्यां द्रेज पर अक्सर नक्सल समर्थक होने के आरोप लगते रहे हैं. छत्तीसगढ़ के बस्तर के जदलपुर की सामाजिक कार्यकर्ता बेला भाटिया ज्यां द्रेज की पत्नी हैं. बेला भाटिया पर कई बार नक्सल समर्थक होने और उनकी मदद करने के आरोप लगते रहे हैं. झारखंड को लेकर ज्यां ने कहा था,


" झारखंड में नक्सली गतिविधियों का प्रमुख कारण गैर-बराबरी है. भारत में गैर-बराबरी तो हर जगह है लेकिन हर जगह नक्सली गतिविधियां तो नहीं हैं. नक्सली गतिविधियों का एक संभावित कारण है- परले दर्जे का शोषण और सरकारी उत्पीड़न। "


© विजय शंकर सिंह 


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