Thursday, 6 September 2018

एससीएसटी एक्ट कानून की नियमावली में पीड़ितों के मुआवजे का प्राविधान - एक चर्चा / विजय शंकर सिंह

अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम संशोधन 2018, जब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पुनः अधिनियमित किया है, तब से यह बवाल मचा है। कुछ इसे रोलेट एक्ट तो कुछ काला कानून तो कुछ अंधा कानून कह रहे हैं। अब यह बवाल और विरोध राजनैतिक रूप ले चुका है। जब कानून भी राजनैतिक लाभ हानि के समीकरण पर बनेंगे तो उन कानूनों का विरोध भी राजनैतिक समीकरण के आधार पर होगा, यह कोई हैरानी की बात नहीं है। लेकिन सरकार को एक्ट का दुरुपयोग रोकने के लिये प्रशासनिक पहल करनी पड़ेगी और अब यह पहल आवश्यक हो गयी है। 
इस विरोध और बवाल के संदर्भ में दो तर्क दिये जा रहे हैं । लोगों का कहना है कि, एक्ट में,
1. तत्काल गिरफ्तारी का प्राविधान है।
2. अग्रिम जमानत का प्राविधान नहीं है। 
3. एक्ट का दुरुपयोग होता है, हुआ है और हो सकता है ।

लेकिन एक्ट के बारे में यह आरोप जो लगाए जा रहे हैं, सही नहीं है। 
तत्काल गिरफ्तारी या intstant arrest जैसी कोई चीज़ कानून में नहीं हैं और न हो सकती है। गिरफ्तारी एक प्रक्रिया है जो सीआरपीसी के अंतर्गत विवेचना का एक हिस्सा है। किसकी गिरफ्तारी हो, किसकी न हो, किसकी कब हो, किसकी न हो, यह सारा अधिकार मुक़दमे के विवेचक का है। ऐसा एक्ट में कोई प्राविधान नहीं है कि उधर किसी ने मुक़दमा लिखाया और इधर पुलिस ने हवालात में डाल दिया। और अगर ऐसा किया गया है तो यह एक्ट का दोष नहीं बल्कि आईओ विवेचक की गलती है, अधिकारों का दुरुपयोग है। ऐसा ही दुरुपयोग नोयडा पुलिस ने कर्नल चौहान के मामले में किया था कि बिना सारे तथ्यों और सुबूत को जाने ही एक एडीएम साहब के दबाव में एक कर्नल को जेल भेज दिया । यह केस एक्ट के दुरुपयोग से अधिक एडीएम के पद और अधिकार का दुरुपयोग अधिक था।

अग्रिम जमानत का अधिकार उत्तर प्रदेश में किसी भी अपराध में नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के कई निर्देशों के बाद अब जा कर राज्य सरकार यह प्राविधान लाने पर राजी हुयी है।

एक्ट का दुरुपयोग होता है, हुआ है, और हो सकता है, यह बात मैं अनुभवों से कह सकता हूँ कि यह आरोप सत्य है। 
पर एक्ट को ही इन आरोपों का जिम्मेदार बताना भी उचित नहीं है। दुरुपयोग की आशंका विधि निर्माताओं को रही होगी इसी लिये इस मुक़दमे के विवेचना का दायित्व उन्होंने डीएसपी स्तर के अधिकारियों को दिया है। अब यह आईओ और विवेचक का दायित्व है कि वह विवेचना तथ्यों , साक्ष्यों और परिस्थितियों के आधार पर करें ताकि एक्ट का स्वार्थी तत्व अपने निजी हित और आपसी रंजिश और खुन्नस निपटाने के लिये दुरुपयोग न कर सकें। अब यह कार्यरूप में कैसे लाया जाये, यह सोचना पुलिस और सरकार का काम है।

1995 में अनुसूचित जाति जनजाति उत्पीड़न निवारण की नियमावली बनी। अधिनियम, वह कानून होता है जो अपराध और दंड को परिभाषित, व्याख्यायित और उसे आधिनियमित करता है। लेकिन रूल्स, उक्त कानून को लागू करने की प्रक्रिया स्पष्ट करता है। 1995 में जो रूल्स बने थे, उनके इन अपराधों से पीड़ित लोगों को राहत देने के लिये कुछ मुआवजे का प्राविधान किया गया था। 1995 के रूल्स में जो मुआवजे का प्राविधान है उसे मैं यहां संक्षेप में प्रस्तुत कर रहा हूँ।

* अखाद्य खिलाने, अपमानित करने, किसी एससीएसटी की ज़मीन ज़बरदस्ती जोतने, बेगार कराने या बंधुआ मजदूरी कराने , उसके नाम पर गलत मुकदमा करने  आरोप [ धारा 3 (1) (i) ] में 25,000 ₹ का मुआवजा दिए जाने का प्राविधान है। जिसमे से आरोप पत्र दायर होने पर 25 % और सज़ा होने के बाद 75 % दिए जाने का प्राविधान है।

* किसी महिला को अपमानित करना, [ धारा. 3 (1)(iii) ] उसका यौन उत्पीड़न करने पर पीड़ित को 50,000 ₹ देने का प्राविधान है, जिसका 50 % मेडिकल परीक्षण के बाद और 50 % मुक़दमे के ट्रायल के बाद देने का प्राविधान है।

* एससीएसटी समुदाय के पेयजल के साथ छेड़छाड़ या उसे गन्दा करने या उसकी जमीन पर कब्ज़ा करने के आरोप [ धारा. 3 (1)(iv) ] में पीड़ित पक्ष को 1 लाख रुपये का मुआवजा देने का प्राविधान है और यह कब कब दिया जाएगा यह जिला प्रशासन के विवेक पर छोड़ दिया गया है।

* आने जाने के सार्वजनिक मार्गों पर एससीएसटी वर्ग के लोगों के अबाध आवागमन पर जाति के आधार पर प्रतिबंध लगाने के आरोप में पीड़ित पक्ष को 1 लाख का मुआवजा देने का प्राविधान है और ऐसा प्रतिबंध हटाना भी होगा। इस राशि का 50 % आरोप पत्र देने के बाद और शेष 50 % अधीनस्थ न्यायालय से सज़ायाबी होने पर दिया जाएगा।

* घर से बलपूर्वक बेदखल करने के आरोप में, ( धारा 3 (1)(xv) 25 हज़ार रुपये का मुआवजा प्रत्येक पीड़ित को, साथ ही उसे उसके घर मे वापस रखा भी जाएगा। यह राशि आरोप पत्र दायर होने के बाद दी जाएगी।

* झूठी गवाही देकर अनुसूचित जाति जनजाति के किसी व्यक्ति को फंसाने [ धारा 3(2)(i) and (ii) ] के पीड़ित को 1 लाख रुपये का मुआवजा देने का प्राविधान है जिसका 50 % अदालत में आरोप पत्र दाखिल होने पर और शेष 50 % सज़ायाबी पर।

* आईपीसी के उन दंडनीय अपराधों में जिसमे 10 या 10 वर्ष से अधिक की सज़ा का प्राविधान है में किसी एससीएसटी वर्ग के विरुद्ध अपराध करने पर  [ धारा 3(2) ] के पीड़ित को 50 हज़ार का मुआवजा, अपराध और चोट की गम्भीरता के आधार पर देय होगा।

* किसी लोकसेवक के द्वारा प्रताड़ित किये जाने पर  [ धारा. 3 (2) ] पीड़ित को जो और जितना नुकसान हुआ है का पूरा मुआवजा देने का प्राविधान है, जिसमे 50 % आरोप पत्र देने पर और शेष सज़ा होने के बाद।

* अपंगता पर भी अगर वह इस अधिनियम के अंतर्गत दर्ज अपराधों के कारण हो तो । इसके निम्न स्तर है ~
1. 100 % अपंगता
2. परिवार का न कमाने वाला सदस्य.
3. परिवार का कमाने वाला सदस्य.
4. 100 % से कम अपंगता .
इन मामलों में 1 लाख रूपये तक का मुआवजा पीड़ित को देने का प्रावधान है। जिसका 50 % एफआईआर होने पर, 25 % आरोप पत्र देने के बाद और 25 % सज़ायाबी होने के बाद।
100 % अपंगता अधिक होने पर 2 लाख तक का मुआवजा प्रत्येक पीड़ित को देने का प्राविधान है, जिसका 50 % एफआईआर, 25 % आरोप पत्र और 25 % सज़ायाबी पर पीड़ित को देने का प्राविधान है।
उपरोक्त प्राविधानों में मुआवजे की राशि 15 हज़ार रुपये से कम किसी भी दशा में नहीं होगी।

* हत्या / अपराध के कारण मृत्यु.
इसे भी पीड़ितों के आश्रितों को दो श्रेणी में बांटा गया है।
1. परिवार का न कमाने वाला सदस्य
2. परिवार का कमाने वाला सदस्य.
इस मामले में 1 लाख रुपये का मुआवजा देने का प्राविधान है। जिसका 75 % पोस्टमार्टम के तुरन्त बाद और 25 % अधीनस्थ न्यायालय से सज़ा होने के बाद।

* हत्या, अपराध से मृत्यु, नरसंहार, बलात्कार, सामुहिक बलात्कार, स्थायी अपंगता और डकैती के पीड़ितों को उपरोक्त राहत राशि देने के अतिरिक्त घटना के तीन महीने के भीतर निम्न राहत / पेंशन देने का भी प्राविधान है।
यह प्राविधान इस प्रकार है।

(i) प्रत्येक विधवा या आश्रित को 1 हज़ार रुपये की मासिक पेंशन, या परिवार के एक सदस्य को नौकरी, या कृषि योग्य कोई भूखंड या रहने का मकान दिया जाएगा।
(ii) पीड़ितों के बच्चों की शिक्षा की पूरी व्यवस्था किये जाने का प्राविधान है अगर आवासीय स्कूलों में भी प्रवेश हो तो वहां भी यह सुविधा दी जाय।

* पीड़ितों के पूरी तरह से नष्ट किये गए और जलाए गए भवनों के निर्माण की भी जिम्मेदारी सरकार का है। पीड़ितों को नए आवास बना कर दिये जाने का प्राविधान है।

लेकिन 2016 में सरकार ने इन नियमों में और संशोधन कर के कुछ और अपराधों को जोड़ दिया है। जब 1995 के बाद दूसरी बार रूल्स में संशोधन किया गया था तो कुल 22 अपराधों में मुआवाज़ों का प्राविधान था। जिसे बढ़ा के एनडीए सरकार ने 2016 के संशोधन में 47 अपराधों तक कर दिया है।

* इस संशोधन के अनुसार, गैंग रेप यानी सामुहिक बलात्कार और एसिड हमले के पीड़ित को पहले एक लाख रुपये तक के मुआवजे का प्राविधान था को बढ़ा कर साढ़े आठ लाख रुपये तक के मुआवज़े का प्राविधान कर दिया गया है।

* न्यूनतम मुआवजा राशि जहां पहले 60 हज़ार थी उसे बढ़ा कर 5 लाख कर दिया गया है।

* अनुसूचित जाति जनजाति को चुनाव में वोट देने से रोकने के अपराध में पीड़ित को कम से कम 85,000 रुपये तक के मुआवज़े का प्राविधान है।

* लोकसेवक द्वारा किसी भी एससीएसटी वर्ग के उत्पीड़न पर 2 लाख रुपये तक के मुआवजा पीड़ित को देने का प्राविधान है।

* आर्थिक  बहिष्कार, शैक्षणिक संस्थानों , अस्पतालों और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर जातिगत भेदभाव से पीड़ित को 1 लाख रुपये तक के मुआवज़े का प्राविधान है।

* यह भी प्राविधान किया गया है कि मुआवज़े की पूरी धनराशि घटना घटित होने के 7 दिन के अंदर ही प्रदान कर दी जाय या जैसा कि नियमावली में एफआईआर, आरोप पत्र और सज़ायाबी के स्तर दिए गए हैं उसी के अनुसार दी जाय। विलंब न किया जाय।

आज 6 सितंबर को इस अधिनियम के दुरुपयोग के विरुद्ध कुछ संगठनों ने बंद का आह्वान किया । बंद की प्रतिक्रिया भी खूब हुयी। अभी यह समाचार मिला है कि भारत सरकार एक एडवायजरी जारी करने वाली है कि एक्ट का दुरुपयोग न किया जाय बल्कि इसे सावधानी से लागू किया जाय। उत्तर प्रदेश में सबसे पहले बसपा प्रमुख मायावती ने जब वे मुख्यमंत्री थीं तो उन्होंने हत्या, बलात्कार आदि कुछ गम्भीर अपराधों को छोड़ कर अन्य मामलों में मुकदमा दर्ज करने के पहले घटना की प्रारंभिक जांच पुलिस के राजपत्रित अधिकारी से कराने का प्राविधान किया था। ऐसे प्रारंभिक जांचों के लिये 7 दिन की समय सीमा भी तय की थी। यह निर्देश तब आया था जब मायावती जी ने सर्व समाज की बात करना शुरू किया था। यह आदेश 2018 के इस संशोधन के बाद स्वतः निरस्त हो गया है। अब देखना है कि केंद्र सरकार राज्य सरकारों को इस अभियोग का दुरुपयोग रोकने के लिये क्या एडवायजरी जारी करता है।

© विजय शंकर सिंह

1 comment:

  1. धन्यवाद सर सही बात बताने के लिए

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