Friday, 21 September 2018

मजाज लखनवी की एक नज़्म - हो सके तो इन्किलाब पैदा कर / विजय शंकर सिंह

तेरा शबाब अमानत है सारी दुनिया की,
तू खारज़ारे जहाँ में गुलाब पैदा कर ।

शराब खींची है सबने ग़रीबके खूँ से,
तू अमीरके खूँ से शराब पैदा कर।

बहे जमीं पै जो तेरा लहू तो ग़म मत कर,
इसी जमीं से महकते गुलाब पैदा कर।

तू इनकिलाब की आमद का इन्तजार न देख।
जो हो सके तो अभी इनकिलाब पैदा कर।।

( मजाज़ लखनवी )

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