Friday, 14 September 2018

डॉ विभा सिंह का लेख - बदलती दुनिया और विश्व भाषा के रूप में हिंदी / विजय शंकर सिंह

इक्कीसवीं सदी तीव्र गति से परिवर्तन करती दुनिया की चमत्कारिक उपलब्धियों वाली सदी सिद्ध हो रही है। तकनीक और विज्ञान के बल पर पूरी दुनिया, एक वैश्विक गांव में परिवर्तित हो गयी है जिससे भौगोलिक दूरियां अर्थहीन हो गयीं हैं। वर्तमान विश्व व्यवस्था आर्थिक और व्यापारिक रूप से ध्रुवीकरण और पुनर्संगठन के दौर से गुज़र रही है, अतः दुनिया के महाबलशाली राष्ट्रों में क्रम में  भी उतार चढ़ाव दृष्टिगत हो रहा है। अठारहवीं, उन्नीसवीं सदी, ऑस्ट्रिया, हंगरी, ब्रिटेन, जर्मनी आदि यूरोपीय ताक़तों के प्रभुत्व की क्रमशः साक्षी रहीं है, तो बीसवीं सदी अमेरिका और सोवियत रूस के वर्चस्व के लिये विश्व मे जानी जाती हैं। वहीं इक्कीसवीं सदी में भारत और चीन की, विश्व की सबसे तेज़ गति से उभरने वाली अर्थव्यवस्थाओं में गणना हो रही हैं। विश्व स्तर पर भी इस तथ्य की स्वीकार्यता बढ़ी है। अपनी कार्य निपुणता एवं प्राकृतिक संपदा और युवा मानव संसाधन की संभावना के कारण, भारत और चीन निकट भविष्य की विश्व शक्तियों के रूप में, अपना अस्तित्व बनाने में सक्षम सिद्ध होने लगे हैं।


किसी भी राष्ट्र की भाषा, उस समय स्वतः ही महत्वपूर्ण बन जाती है, जब उसे विश्व बिरादरी अपेक्षाकृत अधिक महत्व और स्वीकृति देने लगती हैं। इन परिस्थितियों में भारत की निरन्तर विकासमान अंर्तराष्ट्रीय हैसियत हिंदी के लिए वरदान है। वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में, भारत की बढ़ती उपस्थिति, हिंदी को गौरवान्वित करते हुये उसका उन्नयन कर रही है । आज हिंदी भी अनेक बदलावों को स्वीकार करते हुये विश्वभाषा बनने की ओर अग्रसर हैं। विश्वभाषा की संज्ञा से विभूषित होने की अधिकारिणी, कोई भी भाषा तभी हो सकती हैं जब उसके बोलने वालों की संख्या इतनी अधिक हो कि वह दुनिया के अधिकांश देशों में संवाद का माध्यम बने और उसके अन्य कार्यो में भी प्रयोग में आती हो। इसके अतिरिक्त उस भाषा में वैश्विक भाव संवेदन के अभिव्यक्ति की क्षमता हो और ज्ञान विज्ञान के विविध आयामों के सटीक विश्लेषण करने की भी सामर्थ्य हो। उस भाषा मे साहित्य सृजन की प्रदीर्घ परम्परा हो और उसकी सभी विधाएं विविधता के साथ समृद्ध हो। शब्द सम्पदा विपुल हो, शाब्दी और आर्थी संरचना एवं लिपि, सरल, सुगम और वैज्ञानिक हो। उसमें निरन्तर परिष्कार एवं परिवर्तन की संभावना हो। वह नवीनतम वैज्ञानिक एवं तकनीकी उपलब्धियों के साथ स्वयं को पुरस्कृत एवं समायोजित करने की क्षमता से युक्त हो। वह जनसंचार माध्यमों में देश विदेश में प्रयुक्त हो रही हो। साथ ही वह विश्वचेतना की संवाहिका भी हो।

इन वैश्विक प्रतिमानों के संदर्भ में हिंदी के सामर्थ्यवान होने के बारे  में, यह कहा जा सकता है कि आज वह विश्व के महत्वपूर्ण राष्ट्रों जिनकी संख्या लगभग एक सौ चालीस है, में किसी न किसी रूप में प्रयुक्त होती है। आज वह बोलने वालों की संख्या के आधार पर चीनी भाषा के बाद विश्व की दूसरी सबसे बड़ी भाषा है। इस बात को वर्ष 1999 में मशीन ट्रांसलेशन समिट ( यांत्रिक अनुवाद ) नामक संगोष्ठी में टोक्यो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर होजुमी तनाका ने भाषाई आंकड़े प्रस्तुत करते समय बताया था। उनके द्वारा पेश किये गये आंकड़ों के अनुसार , चीनी भाषा प्रथम हिंदी भाषा द्वीतीय और अंग्रेज़ी तीसरे क्रमांक पर, विश्व भाषाओं के क्रम में आ गयी है। डॉ. जयंती प्रसाद नौटियाल ने भाषा शोध अध्ययन वर्ष 2005 के संदर्भ में लिखा है कि विश्व मे हिंदी बोलने वालों की संख्या, चीनी भाषा बोलने वालों से अधिक है। इन आंकड़ों की सच्चाई बहुत विश्वसनीय न मानने पर भी यह निर्विवाद है कि विश्व की दो बड़ी भाषाओं में हिंदी अपना स्थान बनाने में कामयाब हुई है। किंतु इस तथ्य को भी हमें स्वीकार करना होगा कि अंग्रेजी भाषा के प्रयोक्ता आज भी विश्व के सभी देशों में सबसे अधिक हैं। संप्रति अंग्रेजी प्रशासनिक, व्यावसायिक एवं वैचारिक गतिविधियों को संचालित करने वाली प्रभावशाली भाषा के रूप में प्रयुक्त होती है। इन्हीं संदर्भों में हिन्दी के उन्नयन एवं प्रसार का प्रयास युद्ध स्तर पर होना चाहिये, तभी उसकी गति विश्व भाषा बनने की दिशा में तीव्र होगी।

निस्संदेह, हिंदी आने वाली पीढ़ी की भाषा होगी क्योंकि भारत मे 1980 के बाद जन्म लेने वाले लगभग 65 करोड़ बच्चे विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षित प्रशिक्षित होकर, विश्व के विभिन्न राष्ट्रों में अपनी सेवाएं उपलब्ध करा रहे हैं। जापान की साठ प्रतिशत से अधिक जनसंख्या वृद्ध हो चुकी है। आने वाले समय में अमेरिका और यूरोप की आबादी  भी ऐसी ही होगी। ऐसी स्थिति में विश्व का सबसे युवा मानव संसाधन होने के कारण, भारतीय पेशेवरों की मांग अनेक देशों में बढ़ेगी। जब भारतीय पेशेवरों की बड़ी संख्या दूसरे देशों में जाएगी, तब हिंदी भी वहाँ उनके साथ अपनी गहरी पैठ बनाएगी। इस तरह भारत के आर्थिक महाशक्ति बनने की प्रक्रिया में हिंदी स्वतः ही विश्व मंच पर प्रभावी भूमिका निभाएगी। आज हिंदी जिस गति और आंतरिक ऊर्जा के साथ सम्पूर्ण विश्व मे अपना स्थान बना रही है , उससे प्रतीत होने लगा है कि आने वाले समय में वह दुनिया मे सबसे ज्यादा बोली और समझी जाने वाली भाषा होगी।

हिंदी में साहित्य सृजन की परम्परा, लगभग बारह सौ वर्ष प्राचीन है। यह धारा लगभग आठवीं शती से वर्तमान इक्कीसवीं शती तक, अनाहत अविरल प्रवहमान है। इसकी शब्द सम्पदा विपुल है। इसने अनेक भाषाओं के बहुप्रयुक्त शब्दों को उदारता से ग्रहण किया है और जो शब्द जीवन सन्दर्भो से दूर, अप्रचलित हैं, उनका त्याग भी किया है।आज हिंदी साहित्य का श्रेष्ठ सृजन, विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवाद के माध्यम से उन देशों तक पहुँच रहा है और विश्व की अनेक भाषाओं का महत्वपूर्ण साहित्य अनुसृजनात्मक लेखन के रूप में हिंदी में भी उपलब्ध हो रहा है।

हिंदी की देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता सर्वमान्य है क्योंकि यह उच्चारण पर आधारित लिपि है। हिंदी की सबसे बड़ी विशेषता, उसकी संस्कृत के उपसर्ग तथा प्रत्ययों के आधार पर, नए शब्दों को बनाने की है। हिन्दी और देवनागरी दोनों ही पिछले कुछ दशकों में परिमार्जन और मानकीकरण की प्रक्रिया से गुज़रे हैं, जिससे इसकी संरचनात्मक जटिलता कम हुयी है। विश्व मानव की चिंतन शक्ति और नवीन जीवन स्थितियों की अभिव्यंजना की योग्यता, हिंदी भाषा में है। आवश्यकता है इस दिशा में अपेक्षित बौध्दिक तैयारी व विशेषज्ञता की।

यह सत्य है कि हिंदी में अंग्रेजी के स्तर की, विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर आधारित पर्याप्त सामग्री नहीं है, पर विगत कुछ दशकों में इस दिशा में उचित प्रयास हो रहे हैं। महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय वर्धा द्वारा हिंदी माध्यम से एमबीए पाठ्यक्रम अभी हाल में ही प्रारंभ किया गया है। विभिन्न प्रौद्योगिक संस्थानों में हिंदी भाषा में तकनीक और प्रौद्योगिकी की पुस्तकों को तैयार करने का कार्य हो रहा है। जनसंचार के क्षेत्र में ' इकोनॉमिक टाइम्स ' तथा ' बिजनेस स्टैण्डर्ड : जैसे बड़े नाम वाले अंग्रेजी पत्र हिंदी में प्रकाशित होकर, संभावनाओं के नए द्वार खोल रहे हैं। विदेशी उपग्रह चैनल, टीवी के लिये, अंग्रेजी में प्रारंभ तो हुये, पर पिछले कुछ वर्षों में वे हिंदी के चैनलों में रूपांतरित हो गए। स्टार टीवी के विभिन्न चैनल, हिंदी की सम्प्रेषणीयता के कारण, हिंदी भाषा में अपने कार्यक्रम देने लगे। ई.एस. पी.एन. और अन्य स्पोर्ट्स चैनल भी आज हिंदी में कमेंट्री देने लगे। हिंदी को वैश्विक संदर्भ देने में, उपग्रह चैनल, विज्ञापन एजेंसी, बहुराष्ट्रीय कंपनी एवं यांत्रिक सुविधाओं वाली तकनीक ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह जनसंचार माध्यमों की प्रिय भाषा बन कर निखरी है।

किसी भी भाषा साहित्य के सफर में, नए दौर आते रहते हैं। आज के हिंदी साहित्य में नए दौर के चलन में, एक नई हिंदी गतिमान है। यह समय के साथ आये नए प्रयोगों की अभिव्यक्ति के रूप में है। आज के समय में, नए नए आविष्कार, ग्लोबल होते बाज़ार ने दुनिया की हर भाषा को एक दूसरे से जोड़ा है। इसी कड़ी में, हिंदी में भी कुछ अंग्रेजी के शब्द सहजता से प्रयोग में आ रहे हैं। ये प्रयोग हिंदी को नया कलेवर दे रहे हैं, जो हिंदी को शाब्दिक रूप से समृद्ध और उसकी सम्प्रेषण क्षमता को और प्रभावी बना रहा है। ये हिंदी युवाओं के लिये कथ्यों का नया विस्तार ले कर आयी है। युवा लेखक अब नए विषयों पर लेखन कर रहे हैं। वे अपने समय को अपनी दृष्टि से देख कर दर्ज कर रहे हैं जो अधिक  प्रामाणिक और प्रभावी भी है। विश्व मे उनका एक बड़ा पाठक वर्ग बन गया है, जो उन्हें पसंद भी कर रहा है। हिंदी के नवलेखन में युवा साहित्य नया आकार प्राप्त कर रहा है, जो नये पाठक वर्ग को साहित्य से जोड़ रहा है। इन लेखकों में कई नाम ऐसे हैं, जो परंपरागत साहित्यिक खांचे में नहीं समाते, इनकी पृष्ठभूमि अलग है। इनमे कोई इंजीनियर, कोई एमबीए तो कोई बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम करने वाला विशेषज्ञ है। यह साहित्य और इसके युवा लेखक, बड़े दखल और ईमानदारी के साथ अपने समय को दर्ज कर रहे हैं। किसी भी काल के लेखन का सबसे आवश्यक तत्व यह है कि उसे समकालीन लेखक व्यक्त कर रहे हैं या नहीं। इस तथ्य के परिप्रेेक्ष्य में आज का समय समृद्ध है क्योंकि पूरे विश्व मे हिंदी भाषा में लेखन प्रचुर मात्रा में ,हो रहा है।

आज विश्व मे सबसे अधिक पढ़े जाने वाले समाचार पत्रों में आधे से अधिक हिंदी भाषा के हैं। दक्षिण पूर्व एशिया, मॉरीशस, चीन, जापान, कोरिया, मध्य एशिया, खाड़ी देशों, अफ्रीका, यूरोप, कनाडा और अमेरिका तक हिंदी कार्यक्रम, उपग्रह चैनलों द्वारा, प्रसारित हो रहे हैं, जिनके दर्शकों का एक बड़ा वर्ग है। पिछले कुछ वर्षों से एफएम रेडियो चैनलों के विकास से, हिंदी कार्यक्रमों का अपना श्रोता वर्ग भी बन गया है। हिंदी आज नवीन प्रौद्योगिकी के रथ पर सवार होकर विश्वव्यापी बन रही है। उसे ई मेल, ई कॉमर्स, ई बुक, इंटरनेट एवं वेब की दुनिया मे आसानी से पाया जा सकता है।

इसके अतिरिक्त गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, याहू, आईबीएम एवं ओरेकल जैसी विश्वस्तरीय कम्पनियां, व्यापक बाज़ार और मुनाफा देखते हुये, हिंदी प्रयोग को बढ़ावा दे रही हैं। जिससे हिंदी के पारंपरिक रूप में परिवर्तन तो हो रहे हैं, पर वह अंग्रेजी के दबाव के बावजूद, तेज गति से विश्वमन के सुख, दुःख, आशा, आकांक्षा, को वहन करती हुयी विश्व भाषा की ओर बढ़ रही है। हिंदी के रचनाकार अपनी सृजन शक्ति से उदारतापूर्वक विश्वमन का संस्पर्श कर रहे हैं। हिंदी के नवीन विश्व कोष निर्मित करने में भीआज  विदेशी विद्वान  सहायता कर रहे हैं।

अंतराष्ट्रीय संस्था यूनेस्को के अनेक कार्य अब हिंदी में संपन्न हो रहे हैं। अब तक ' हिंदी विश्व सम्मेलन ' लंदन, न्यूयॉर्क, दक्षिण अफ्रीका, सूरीनाम, त्रिनिदाद, मॉरीशस जैसे देशों में सम्पन्न हो चुके हैं । आठवें विश्व हिंदी सम्मेलन में  न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव, बान की मून ने हिंदी के कुछ वाक्य बोल कर हिंदी की लोकप्रियता को नये आयाम दिए। हिंदी को वैश्विक संदर्भ और व्याप्ति प्रदान करने में, भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद द्वारा, अनेक देशों में स्थापित भारतीय विद्यापीठों की प्रमुख भूमिका रही है। वहां के विश्वविद्यालयों में शोध स्तर तक हिंदी के अध्ययन - अध्यापन की व्यवस्था है, जिसका लाभ विदेशी छात्रों को मिल रहा है। इस इक्कीसवीं सदी में, जहां विश्व की तमाम संस्कृतियां एवं भाषाएं, आदान, प्रदान और संवाद की प्रक्रिया से गुज़र रही हैं, वहां हिंदी, विश्व मनुष्यता को निकट लाने के लिये सेतु का कार्य कर सकती हैं क्योंकि उसके पास पहले से ही बहु सांस्कृतिक परिवेश में सक्रिय रहने का अनुभव है।

आज आवश्यकता इस बात की है कि हम भारतीय एक समवेत प्रयास के साथ विधि, विज्ञान, वाणिज्य एवं नयी प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हिंदी में पाठ्य सामग्री उपलब्ध कराएं। यह तभी संभव है जब सभी देशवासी, सुदृढ इच्छाशक्ति और दायित्वबोध के साथ, हिंदी की विकास यात्रा में सम्मिलित हों ताकि, विभिन्न प्रतिमानों, निकषों से निकल कर, हिंदी विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित हो सके।

( साभार डॉ. विभा सिंह, एसोशिएट प्रोफेसर,
हिंदी विभाग, डीएवी कॉलेज, कानपुर.)
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© विजय शंकर सिंह

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