* इंडियन एक्सप्रेस में सुशांत सिंह के लेख के अनुसार सितंबर 2016 में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और फ्रांस के रक्षा मंत्री के बीच रफाएल क़रार पर दस्तख़त हुए थे, उसके ठीक पहले रक्षा मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने रफाल लड़ाकू विमानों की कीमतों को लेकर सवाल उठाए थे और इसे फाइल में दर्ज़ किया था।
* यह अधिकारी कांट्रेक्ट नेगोशिएशन कमिटी के सदस्य भी थे। रक्षा मंत्रालय में इनका ओहदा संयुक्त सचिव का था। इनका काम था कैबिनेट की मंज़ूरी के लिए नोट तैयार करना।
* संयुक्त सचिव के एतराज़ के कारण कैबिनेट की मंज़ूरी में वक्त लग गया। इनके एतराज़ को दरकिनार करने के बाद ही क़रार पर समझौता हुआ था। जब उनसे वरिष्ठ दर्जे के अधिकारी यानी एक्विज़िशन( ख़रीद-फ़रोख़्त) के महानिदेशक ने उस एतराज़ को दरकिनार कर दिया।
* संयुकत सचिव और एक्विज़िशन मैनेजर ने जिस फाइल पर अपनी आपत्ति दर्ज की थी वो इस वक्त सीएजी के पास है। दिसंबर के शीतकालीन सत्र में सीएजी अपनी रिपोर्ट सौंपने वाली है।
* संयुक्त सचिव की मुख्य दलील 36 रफाल विमानों के बेंचमार्क कीमत को लेकर थी। उनका कहना था 126 रफाल विमानों के लिए जो बेंचमार्क कीमत तय थी उससे कहीं ज़्यादा 36 रफाल विमानों के लिए दी जा रही है।
* यूपीए के समय 126 लड़ाकू विमानों के लिए टेंडर निकला था। इसके बाद भारतीय वायुसेना ने छह विमान कंपनियों के विमान को टेस्ट किया था। ये सभी फाइनल राउंड के लिए चुने गए थे। रफाल के साथ जर्मनी क यूरोफाइटर से भी बातचीत चली थी।
* संयुक्त सचिव ने कहा था कि यूरोफाइटर तो टेंडर में कोट किए गए दाम में 20 प्रतिशत की छूट भी दे रहा है। तो यह काफी सस्ता पड़ेगा। यूरोफाइटर ने यह छूट तब देने की पेशकश की थी जब मोदी सरकार बन चुकी थी।
* संयुक्त सचिव ने लिखा है कि रफाल से भी 20 प्रतिशत की छूट की बात होनी चाहिए क्योंकि उसका कंपटीटर यानी प्रतिस्पर्धी 20 प्रतिशत कम पर जहाज़ दे रहा है। रफाल और यूरोफाइटर दोनों में ख़ास अंतर नहीं है। दोनों ही उत्तम श्रेणी के लड़ाकू विमान माने जाते हैं।
* संयुक्त सचिव के नोट में यह बात भी दर्ज है कि भारतीय वायुसेना के पास सुखोई 30 विमानों का जो बेड़ा है उसका निर्माण हिन्दुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड कर रहा है।
* भारतीय वायसेना इस पैसे में ज़्यादा सुखोई 30 हिन्दुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड से ही ख़रीद सकती है। सुखोई 30 भी उत्तम श्रेणी के लड़ाकू विमानों में है और इस वक्त भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानो का नेतृत्व करता है।
* अगस्त 2016 में रक्षा मंत्री मनोहर परिर्कर ने इस नोट पर विचार किया था। इसके लिए डिफेंस एक्विज़िशन काउंसिल है जिसे DAC कहते हैं। इसी बैठक में 36 रफाल विमानों की ख़रीद की मंज़ूरी दी गई थी और कैबिनट को प्रस्ताव भेजा गया था। इस बैठक में ही संयुक्त सचिव के एतराज़ को खारिज किया गया।
* सितंबर के पहले सप्ताह में DAC ने रफाल डील को मंज़ूरी दे दी।
* पत्रकार रोहिणी सिंह ने ट्विट के अनुसार, एक्विजिशन की महानिदेशक स्मिता नागराज को रिटायर होने के बाद सरकार ने एहसान चुका दिया। उन्हें संघ लोक सेवा आयोग ( यूपीएससी ) का सदस्य बना दिया।
* ऐतराज करने वाले संयुक्त सचिव के छुट्टी पर चले जाने के बाद एक नए अफसर से कैबिनेट के लिए नोट तैयार करवाया गया। जिसे सितंबर 2016 के तीसरे सप्ताह में मंज़ूरी दी गई। 23 सितंबर 2016 को भारत के रक्षा मंत्री और फ्रांस के रक्षा मंत्री के बीच 59,262 करोड़ की डील पर दस्तखत हुआ।
* फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वां ओलांद ने भी कहा था कि मूल सौदा 126 का था। लेकिन भारत में नई सरकार बन गई और उसने प्रस्ताव को बदल दिया, जो हमारे लिए कम आकर्षक था क्योंकि यह सिर्फ 36 विमानों के लिए था।
* रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि भारत की हिन्दुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड कंपनी 126 रफाल नहीं बना सकती थी इसलिए अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस के साथ दास्सो एविएशन ने करार किया। मेरा सवाल यह है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि अनिल अंबानी की नई नई कंपनी 126 विमान नहीं बना सकती थी इसलिए उसे फायदा पहुंचाने के लिए 36 विमानों का करार किया गया?
( श्रोत इंडियन एक्सप्रेस में सुशांत सिंह का लेख और रवीश कुमार का ब्लॉग )
© विजय शंकर सिंह
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