Tuesday, 4 September 2018

फासीवाद मुर्दाबाद और सोफिया की गिरफ्तारी - एक प्रतिक्रिया / विजय शंकर सिंह

क्या आप सोफिया को जानते हैं ? सोफिया मैं भी नही  जानता था। पर आज मैं उसे जान गया हूँ। सोफिया, तमिलनाडु की रहने वाली एक छात्रा है जिसे पुलिस ने तूतीकोरिन एयरपोर्ट पर गिरफ्तार कर लिया है। हालांकि उसे तुरंत ज़मानत भी मिल गयी। ज़ुर्म ? सोफ़िया ने नारा लगाया था,
"Fascist BJP Government, down, down!",
' फासीवादी बीजेपी सरकार मुर्दाबाद । '
इस नारे में ऐसा क्या है, जिससे बीजेपी अध्यक्ष विचलित और पुलिस असहज हो गयी ? क्या बात थी, जिसने पुलिस को सोफिया को गिरफ्तार करने पर बाध्य कर दिया ?
एक शब्द में कहूँ तो, सत्ता का अहंकार। कैसे इतना साहस हुआ कि एक अदना सी लड़की फासीवाद मुर्दाबाद का नारा लगा कर चुपचाप एयरपोर्ट से निकल जाय !

28 वर्षीय सोफिया कनाडा की एक यूनिवर्सिटी में शोध छात्रा हैं। वह तूतीकोरिन एयरपोर्ट पर उतरी थीं। जिस फ्लाइट से वह आयी थी, उसी फ्लाइट से तमिलनाडु बीजेपी के अध्यक्ष, तमिलसाई सुंदरराजन भी थे। सोफिया ने उन्हें देख कर नारा लगाया ' फासिस्ट बीजेपी आरएसएस सरकार मुर्दाबाद। ' अध्यक्ष महोदय की भृकुटि तनी और भ्रू भंग हुआ। वे इस नारे से ही असहज हो गए और अपने सबसे बड़े नेता और प्रधानमंत्री जी की यह सीख जो उन्होंने अभी हाल ही में दी थी, भूल गए कि लोकतंत्र में सरकार की आलोचना की जानी चाहिये। अध्यक्ष महोदय की शिकायत पर सोफिया को पुलिस ने शांति भंग की आशंका पर गिरफ्तार कर लिया। यह अलग बात है कि सोफिया को जमानत पर उसी दिन रिहा कर दिया गया। मेरा अनुमान है कि पुलिस ने अध्यक्ष और बीजेपी के दबाव में ही सोफिया को गिरफ्तार किया होगा। मेरा अनुमान मेरे अनुभव पर आधारित है।

अब थोड़ा अलग एंगल से देखिये । किरदार वही, स्थान वही, पुलिस वही, माहौल वही, बस संवाद बदल कर सोचिये ज़रा। उसी तूतीकोरिन एयरपोर्ट पर अगर बीजेपी अध्यक्ष को देख कर सोफिया ने बीजेपी सरकार ज़िंदाबाद का नारा लगाया होता तो ? क्या तब  भी तमिलनाडु पुलिस उसे गिरफ्तार कर लेती ? क्या तब भी शांति  भंग की आशंका होती ?
आखिरकार, शोर तो तब भी मचता। लोग तो तब भी चौंकते। एयरपोर्ट का आभिजात्य स्वरूप तो तब भी दरकता। पर मेरा अनुभव कहता है शायद तब सोफिया की गिरफ्तारी नहीं होती ।

एक पेशेवर पुलिसजन के रूप में मेरा यह कहना है कि पुलिस का काम किसी समस्या को हल करना है, उसे अनावश्यक रूप से उलझाना नहीं। सोफिया को इस नारेबाज़ी पर पुलिस समझा बुझा कर मामला शांत भी कर सकती थी, बनिस्बत उसे गिरफ्तार करके अपनी प्रशासनिक अपरिपक्वता दिखाने के।

भाजपा अध्यक्ष ने यह आपत्ति जताई कि वह ऐसे कैसे चिल्ला सकती है, यह पब्लिक फोरम नहीं है। जबकि एयरपोर्ट, एक पब्लिक फोरम है। नारेबाजी अशोभनीय तो हो सकती है पर किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं। सोफिया को बाद में जमानत भी मिल गयी। हमारे देश के लोकतंत्र में  नेताओं को यह हो क्या गया है ? आखिर वे कितने सुरक्षित ख्वाबगाह में वे रहना चाहते हैं ?

© विजय शंकर सिंह

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